डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला
हिमालय की ऊँची चोटियाँ और हरी-भरी घाटियाँ हमेशा से ही प्रकृति का
अद्भुत नज़ारा रही हैं। लेकिन आजकल यह क्षेत्र हर दिन आपदाओं का
शिकार हो रहा है। भूस्खलन, बादल फटना, अचानक बाढ़ जैसी घटनाएँ
हिमालय को तबाह करने के लिए तैयार हैं। यह तबाही खासकर मानसून के
मौसम में और भी तेज़ हो जाती है। उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश और जम्मू-
कश्मीर जैसे पश्चिमी हिमालयी राज्य सबसे ज़्यादा प्रभावित होते हैं। 2025
का यह मानसून रिकॉर्ड तोड़ रहा है।2025 का मानसून: बर्बादी का एक नया
रिकॉर्ड इस साल मानसून जल्दी आ गया और इसके साथ ही आपदाओं का
सिलसिला शुरू हो गया। जनवरी से अगस्त 2025 तक, हिमालयी राज्यों में
हर दिन कोई न कोई आपदा आ रही है। डीटीई के विश्लेषण के अनुसार, 1
जनवरी से 18 अगस्त तक कम से कम 632 लोग मारे गए। लेकिन अब
सितंबर में भी बारिश जारी है, इसलिए यह संख्या और बढ़ सकती है। कुल
मिलाकर, भारत में जून से सितंबर तक 743.1 मिमी बारिश हुई, जो
सामान्य से 6.1% अधिक है। उत्तर-पश्चिम भारत में अगस्त में 265 मिमी
बारिश दर्ज की गई, जो 2001 के बाद से सबसे ज़्यादा है। भारतीय मौसम
विज्ञान विभाग) ने सितंबर में 109% ज़्यादा बारिश की चेतावनी दी
है।हिमाचल प्रदेश में सबसे ज़्यादा नुकसान हुआ है। राज्य आपदा प्रबंधन
प्राधिकरण के अनुसार, 20 जून से अब तक 340 लोगों की मौत हो चुकी है –
182 लोग भूस्खलन, अचानक बाढ़, बादल फटने और डूबने जैसी बारिश से
जुड़ी घटनाओं में मारे गए, जबकि 158 लोग सड़क दुर्घटनाओं में मारे गए।
उत्तराखंड में कम से कम 145, जम्मू-कश्मीर में 122 और पंजाब में 29 मौतें
हुईं। कुल नुकसान 20,000 करोड़ रुपये से ज़्यादा होने का अनुमान है। सड़कें,
बिजली, पानी की आपूर्ति सभी बाधित हो गई हैं। हिमाचल प्रदेश में 4
राष्ट्रीय राजमार्गों सहित 1,334 सड़कें बंद हैं। मंडी ज़िले में 281 सड़कें
अवरुद्ध हैं।आपदाओं के मुख्य कारण हिमालयी त्रासदी के कई कारण हैं,
लेकिन जलवायु परिवर्तन और मानवीय गतिविधियाँ सबसे बड़ी हैं। जहाँ
पहले उच्च हिमालयी क्षेत्रों में कम वर्षा होती थी, अब वहाँ लगातार भारी
वर्षा हो रही है। ग्लेशियरों के पास मलबा (बर्फ या हिमोढ़) जमा हो रहा है।
जब यह मलबा बारिश से भीग जाता है, तो पानी संतृप्त हो जाता है। इससे
पानी एक तेज़ धारा बनकर संकरी घाटियों में बहने लगता है। भूस्खलन शुरू
हो जाता है। यह श्रृंखलाबद्ध प्रतिक्रिया अचानक बाढ़ में बदल जाती
है।उत्तराखंड का धराली: 5 अगस्त 2025 को उत्तरकाशी ज़िले के धराली
गाँव में अचानक बाढ़ आ गई। शुरुआती जाँच से पता चला है कि हिमोढ़ के
कारण ग्लेशियर झील फट गई थी। 4 लोगों की मौत, 70 से ज़्यादा लोग
लापता, 40-50 घर और होटल बह गए। सेना के शिविर भी प्रभावित हुए।
मुख्यमंत्री ने कहा कि बारिश न रुकने के कारण बचाव कार्य मुश्किल होता
जा रहा है। हिमाचल का मंडी 28-29 जुलाई 2025 को बादल फटने से
मंडी शहर में अचानक बाढ़ आ गई। समुद्र तल से 3300 मीटर की ऊँचाई
पर, शिकारी माता मंदिर के आसपास इतनी भारी बारिश हुई कि कई गाँव
और बाज़ार बह गए। 3 लोगों की मौत हो गई। अकेले जुलाई में कुल 51
मौतें हुईं।अन्य घटनाएँ: 14 अगस्त को जम्मू-कश्मीर के किश्तवाड़ के
चशोती में बादल फटने से 44 लोग मारे गए, जिनमें ज़्यादातर तीर्थयात्री
थे। 27 अगस्त को वैष्णो देवी मार्ग पर भूस्खलन से 34 मौतें हुईं। पंजाब में
1,400 गाँव जलमग्न हो गए, 3 लाख एकड़ फसलें नष्ट हो गईं। बादल फटने
की घटनाओं में वृद्धि हो रही है, हालाँकि आईएमडी के अनुसार बड़े बादल
फटने की घटनाएँ नहीं, बल्कि छोटे बादल फटने की घटनाएँ ज़्यादा हो रही
हैं। मानवीय कारक भी कम नहीं हैं पहाड़ों पर अनियोजित सड़कें, सुरंगें,
होटल बनाना, वनों की कटाई, कंक्रीट का अत्यधिक उपयोग – ये सभी पहाड़
कमजोर कर रहे हैं। बड़ी परियोजनाओं को मुख्य केंद्रीय थ्रस्ट ज़ोन
(विवर्तनिक रूप से संवेदनशील) में धकेलना आपदा को आमंत्रित करना है।
सर्वोच्च न्यायालय की समिति ने चेतावनी दी थी, लेकिन कोई सुधार नहीं
हुआ। रोकथाम और बचाव के उपाय इन आपदाओं से बचने के लिए तत्काल
कदम उठाए जाने चाहिए। सबसे पहले, अचानक बाढ़ के रास्तों की पहचान
करें और उन इलाकों को साफ़ रखें। आईएमडी की चेतावनियों का पालन
करें – जैसे रेड अलर्ट पर स्कूल बंद करना, यात्रा पर रोक लगाना। सेना,
एनडीआरएफ, एसडीआरएफ ने हज़ारों लोगों को बचाया है। 5000 से
ज़्यादा लोगों को बचाया जा चुका है। केंद्र सरकार ने नुकसान का आकलन
करने के लिए एक अंतर-मंत्रालयी टीम भेजी है। लेकिन दीर्घकालिक
दृष्टिकोण से: पर्यावरण के अनुकूल विकास, वन संरक्षण और मौसम
पूर्वानुमान को मज़बूत करना ज़रूरी है। स्थानीय लोगों का कहना है कि यह
प्राकृतिक आपदा नहीं, बल्कि मानव निर्मित है। जागने का समय आ गया है
हिमालय हमारा प्राकृतिक खजाना है, लेकिन अगर हम अभी नहीं सुधरे, तो
यह तबाही और बढ़ेगी। जलवायु परिवर्तन और गलत विकास मॉडल के
कारण ये आपदाएँ बढ़ रही हैं।ये सभी घटनाएँ क्रमिक आपदाएँ हैं, और
इनकी घटनाएँ बढ़ती ही जा रही हैं। ऐसे मामलों में, एक आपदा अन्य
आपदाओं को जन्म दे सकती है, और इनका संचयी प्रभाव एकल आपदा से
कहीं अधिक हो सकता है। ये क्रमिक आपदाएँ दर्शाती हैं कि ऊँचे पहाड़ों से
शुरू होने वाली एक छोटी सी आपदा भी ऊपरी और निचले दोनों क्षेत्रों में,
एक बड़े क्षेत्र को नुकसान पहुँचा सकती है।भूटान, भारत, नेपाल और
पाकिस्तान जैसे पर्वतीय देशों में, बहु-विनाशकारी रूप में ऐसी क्रमिक
आपदाओं के घटित होने की संभावना अपेक्षाकृत अधिक होती है। भूस्खलन,
बाढ़, हिमनद झीलों के फटने से होने वाली बाढ़ और हिमस्खलन, जो ऊपरी
इलाकों में होते हैं, संपत्ति को नुकसान पहुँचा सकते हैं और निचले इलाकों में
स्थानीय जीवन और आजीविका को प्रभावित कर सकते हैं। वार्षिक बाढ़ की
तुलना में, ऐसी आपदाएँ कई वर्षों के अंतराल पर आती हैं, इसलिए क्षति की
प्रकृति अक्सर अधिक बड़ी और अप्रत्याशित होती है। इसी प्रकार, पर्वतीय
क्षेत्रों में बुनियादी ढाँचा ऐसी जटिल चुनौतियों के लिए डिज़ाइन नहीं किया
गया है। सरकार, वैज्ञानिकों और हम सभी को मिलकर काम करना होगा।
सतर्क रहें, चेतावनियों का पालन करें।हिमालय क्षेत्र भूकंपीय दृष्टि से भी
बेहद संवेदनशील है, ऐसे में ये खतरा और बढ़ जाता है. ऊंचे हिमालयी क्षेत्रों
के बीच बनी इन झीलों को गंभीरता से लेना होगा. *लेखक विज्ञान व*
*तकनीकी विषयों के जानकार दून विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं*












