देहरादून, 27 सितम्बर। दून विश्वविद्यालय में इंटीग्रेटेड माउंटेन इनिशिएटिव (आईएमआई) द्वारा आयोजित 12वें सस्टेनेबल माउंटेन डेवलपमेंट समिट (SMDS-XII) सम्मलेन के दूसरे दिन हिमालयी राज्यों के जनप्रतिनिधियों, वैज्ञानिकों, विशेषज्ञों द्वारा सतत विकास की चुनौतियों और समाधानों पर गहन विचार-विमर्श हुआ. द्वितीय दिवस पर्वतीय विधायकों का सम्मलेन (MLM) हुआ, जिसकी अध्यक्षता
विधानसभा अध्यक्ष उत्तराखंड श्रीमती ऋतु खंडूरी भूषण ने की. इस अवसर पर सम्मेलन में श्री नबाम टुकी (पूर्व मुख्यमंत्री, अरुणाचल प्रदेश), श्री मुन्ना सिंह चौहान, श्री किशोर उपाध्याय, श्रीमती सविता कपूर, श्री बृजभूषण गैरोला, श्रीमती आशा नौटियाल (विधायक, उत्तराखंड), सुश्री अनुराधा राणा (विधायक, हिमाचल प्रदेश), श्रीमती हेकिनी जखालू एवं श्री वांगपांग कोन्याक (नागालैंड) तथा श्री टिकेन्दर एस. पंवार (पूर्व महापौर, हिमाचल प्रदेश) समेत आईएमआई अध्यक्ष श्री रमेश नेगी (से.नि. आईएएस), श्री पीडी राय, पूर्व अध्यक्ष आईएमआई एवं पर्वतीय विधायकों की वार्ता (MLM) वार्ता के संयोजक श्री अनूप नौटियाल मंच पर उपस्थित रहे.
इस अवसर पर विधान सभा अध्यक्ष श्रीमती ऋतु खंडूरी ने कहा कि हिमालय अत्यंत संवेदनशील क्षेत्र है और यहां जीवन-यापन के लिए विशेष जीवटता की आवश्यकता होती है। उन्होंने जोर देते हुए कहा कि “हमें ऐसी नीतियाँ बनानी होंगी जिनमें स्थानीय समुदायों की सक्रिय भागीदारी सुनिश्चित हो। विज्ञान और परंपरागत ज्ञान को साथ लेकर ही आने वाली पीढ़ियों के लिए सुरक्षित और समृद्ध हिमालय आँचल संभव है।”
उन्होंने आगे कहा कि हिमालय पर किए जा रहे अध्ययनों, शोध कार्यों और नवीन विचारों को समन्वित ढंग से समझने और उन पर ठोस कार्ययोजना बनाने की आवश्यकता है। सभी हिमालयी राज्यों के लिए एकीकृत नीति-निर्माण ही सही दिशा में सार्थक पहल होगी। यदि हम सब मिलकर प्रयास करें तो इस दिशा में निश्चित ही सफलता प्राप्त होगी।
कार्यक्रम में विशिष्ट अतिथि सांसद एवं पूर्व मुख्यमंत्री श्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने कहा कि हिमालय का विकास केवल सड़कों और इमारतों से नहीं मापा जा सकता। इसके लिए आवश्यक है कि प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण हो और विकास स्थानीय समुदायों की आजीविका से जुड़ा हो। उन्होंने इस दिशा में चल रहे प्रयासों की गति को और तेज करने पर बल दिया।
सम्मेलन के दौरान विभिन्न वक्ताओं ने हिमालय क्षेत्र के संरक्षण और सतत विकास पर अपने विचार साझा किए।
पूर्व मुख्यमंत्री अरुणाचल प्रदेश, श्री नबाम टुकी ने पर्वतीय क्षेत्रों में विज्ञानसम्मत निर्माण की आवश्यकता पर बल दिया। श्री मुन्ना सिंह चौहान ने कहा कि हमारे पूर्वजों ने बसावट और घर निर्माण के जो आदर्श स्थापित किए थे, हमें आज पुनः उसी लोक विज्ञान को अपनाने की आवश्यकता है।
श्री किशोर उपाध्याय ने हिमालय क्षेत्र के लिए नीति-निर्माण में वैज्ञानिकों, नीति-निर्माताओं और जनता की सहभागिता को जोड़ने की बात रखी। श्री बृजभूषण गैरोला ने ऐसे सम्मेलनों से प्राप्त ज्ञान को विद्यार्थियों और आम जन तक सरल भाषा में पहुँचाने पर बल दिया।
सुश्री अनुराधा राणा ने कहा कि बढ़ती जनसंख्या की तुलना में घर निर्माण हेतु सुरक्षित भूमि लगातार कम होती जा रही है। इस संदर्भ में जंगलों के सुरक्षित हिस्सों को बसावट के लिए उपलब्ध कराने की दिशा में नीतिगत पहल आवश्यक है।
श्रीमती हेकिनी जखालू ने कहा कि सम्मेलन ने यह स्पष्ट कर दिया है कि हिमालय के संरक्षण के लिए हमें सामूहिक रूप से आगे बढ़ना होगा। साथ ही बिना वैज्ञानिक प्रमाणिकता के किसी भी निर्माण कार्य को अनुमति नहीं दी जानी चाहिए।
श्री वांगपांग कोन्याक (नागालैंड) ने कहा कि हिमालय को समझने की क्षमता यहाँ के स्थानीय लोगों में निहित है। उन्होंने स्थानीय ज्ञान और अनुभव को जीवन शैली में शामिल करने पर बल दिया।
श्री टिकेन्दर एस. पंवार ने विकास की परिभाषा, अभिलाषा और आवश्यकता को पुनः पहचानने और गढ़ने की जरूरत पर जोर दिया।
इस अवसर पर यूकॉस्ट (UCOST) के महानिदेशक डॉ. दुर्गेश पंत ने सम्मेलन से मिली सीख साझा की, वहीं पर्यावरणविद् डॉ. रवि चोपड़ा ने जलवायु परिवर्तन और अनुकूलन पर किए गए अपने अध्ययन और शोध को विस्तार से प्रस्तुत किया।
कार्यक्रम की शुरुआत में श्रीमती बिनीता शाह ने अतिथियों का स्वागत किया और आईएमआई के उद्देश्यों के बारे में जानकारी दी। श्री अनूप नौटियाल ने हिमालयी राज्यों के लिए नीति-निर्माण हेतु आठ सूत्रीय एजेंडा प्रस्तुत किया। सत्र के अंत में श्री रमेश नेगी ने सभी का धन्यवाद ज्ञापित किया।
आज तीन समान्तर सत्र भी संपन्न हुए.
दो दिवसीय सम्मेलन में लगभग 250 प्रतिभागियों ने हिस्सा लिया, जिनमें वैज्ञानिक, नीति-निर्माता, सामाजिक फिर कार्यकर्ता, विद्यार्थी और हिमालयी राज्यों से आए किसान शामिल रहे। कार्यक्रम स्थल पर स्थानीय उत्पादों की प्रदर्शनी भी प्रतिभागियों के आकर्षण का केंद्र रही।