———- प्रकाश कपरुवाण ———–।
ज्योतिर्मठ।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की चीन यात्रा से एक बार फिर नीती-माणा घाटियों से भारत-तिब्बत ब्यापार की राह खुलने का आस जगी है। इसका एक प्रमुख कारण यह भी है कि प्रधानमंत्री श्री मोदी की चीन यात्रा से एक पखवाड़ा पूर्व चीन के विदेश मंत्री वांग यी की भारत यात्रा के दौरान भारत के विदेश मंत्री एस जय शंकर व राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल के साथ हुई उच्चस्तरीय वार्ता मे दोनों पक्षों के बीच स्थिर, सहयोगात्मक व दूरदर्शी सबंधों के लिए जिन उपायों की घोषणा की गई है उनमे विवादित सीमा पर सयुंक्त रूप से शाँति बनाए रखना एवं सीमाओं को ब्यापार के लिए खोलना भी शामिल है।
विदेश मंत्री स्तर पर सीमाओं को ब्यापार के लिए खोलने की सहमति के बाद भारत-चीन युद्ध “1962” के बाद बन्द हुए ब्यापार को नीती-माणा दर्रो से लगी सीमा को भी ब्यापार के लिए खोले जाने की उम्मीद जगी है, जिसका कारण यह भी है कि अंतर्राष्ट्रीय ब्यापार स्पर्धा के लिए दोनों देशों के बीच सड़क नेटवर्क का होना भी जरुरी होता है और उत्तराखंड के चमोली जनपद के नीती-माणा दर्रो से माणा पास व नीती पास तक सड़क बनकर तैयार हो चुकी है, जो न केवल ब्यापार बल्कि कैलाश मानसरोवर यात्रा के लिए भी सुगम होगा।
1962 भारत-चीन युद्ध से पूर्व नीती घाटी से घोड़े-खच्छरों से माल ढोया जाता था, जो अब व्यवहारिक नहीं है, इसलिए ब्यापार मे अपेक्षित बृद्धि के लिए जरुरी है कि दोनों देशों के बीच ऐसा मोटर मार्ग हो जिसकी दूरी कम से कम हो,और ऐसा मोटर मार्ग उत्तराखंड मे नीती-माणा पास बनकर तैयार है।
वर्ष 2002–2003 मे तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की चीन सदभावना यात्रा के दौरान दोनों देशों के बीच सिक्किम के नाथुला दर्रे से भारत-तिब्बत ब्यापार पर सहमति बनी थी, और इस समझौते से यदि किसी राज्य को त्वरित वाणिज्यक लाभ मिला तो वह सिक्किम ही था, क्योंकि सिक्किम को आर्थिक विकास के लिए अंतर्राष्ट्रीय बाजार भी मिला।
उत्तराखंड की सरकारें पिछले 25 वर्षों से यह तो कह रही है कि उत्तराखंड राज्य अंतर्राष्ट्रीय सीमाओं से घिरा है, लेकिन राज्य को अंतर्राष्ट्रीय ब्यापार का लाभ कैसे मिले इस ओर न प्रदेश का ना ही देश की सरकारों ने ध्यान दिया।
भारत और चीन की बढ़ती हुई आर्थिक शक्ति ने भारत-तिब्बत सीमा को अपार संभावनाओं वाली सीमा बना दिया है, और उत्तराखंड के आर्थिक विकास को मजबूत करने के लिए आवश्यकता है राज्य के चमोली, पिथौरागढ़ व उत्तरकाशी जनपदों की सीमा से भारत-तिब्बत ब्यापार शुरू करने की।
हालांकि वर्ष 2014 मे नरेन्द्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद उत्तराखंड के सीमावर्ती जनपदों से भारत-तिब्बत ब्यापार शुरू होने की उम्मीदें थी, लेकिन हाल के वर्षों मे गलवान सहित कुछ अन्य घटनाओं के कारण संभवतः शुरू ना हो सका हो परन्तु अब विदेश मंत्री स्तर की द्विपक्षिय वार्ता एवं प्रधानमंत्री श्री मोदी की चीन यात्रा से नीती-माणा दर्रो से भी भारत-तिब्बत ब्यापार पुनः शुरू होने की एक नई उम्मीद जगी है।
अब देखना होगा कि उत्तराखंड के आर्थिक विकास के लिए अंतर्राष्ट्रीय बाजार उपलब्ध कराने मे भारत की सरकार किस प्रकार की पहल करती है इस पर अंतर्राष्ट्रीय सीमाओं से घिरे उत्तराखंड राज्य के सीमावर्ती जनपदों के सीमांतवासियों की भी निगाहेँ टिकी रहेंगी।