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जंगल में वन महकमे की योजनाएं तलाश रहीं रास्ता

05/10/25
in उत्तराखंड, देहरादून
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डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला
उत्तराखंड में वन्यजीव संरक्षण से जुड़ी योजनाएं सिस्टम के जंगल में रास्ता तलाश रही हैं। योजनाओं का खाका खींचा गया। शिलान्यास का कार्यक्रम भी हुआ पर वर्षों गुजर जाने के बाद योजनाओं का हाल ढाक के तीन पात वाली कहावत के आसपास ही घूम रहा है। इन योजनाओं के लोकार्पण तो दूर की बात कई का काम तक शुरू नहीं हो सका है।वन्यजीवों के इलाज के लिए नहीं बना अस्पताल वन विभाग ने हल्द्वानी में 400 हेक्टेयर में प्रस्तावित अंतरराष्ट्रीय चिड़ियाघर के साथ वन्यजीवों के इलाज के लिए अस्पताल, पशु चिकित्सा कर्मियों के लिए आवास से लेकर मानव वन्यजीव संघर्ष को कम करने के लिए काम करने वाले संस्थान की योजना बनाई। इसके लिए अक्तूबर 2016 में शिलान्यास भी हो गया।इसके बाद बैठक, दिशा-निर्देश जारी होने के साथ निदेशक बदलने का काम ही होता रहा है। हल्द्वानी में बनने वाली इस महत्वाकांक्षी योजना के लिए देहरादून में तैनात अधिकारी को नोडल अधिकारी बनाया गया है। यहां भी काम शुरू नहीं हो सका है। तराई पूर्वी वन प्रभाग के डीएफओ का कहना है कि संबंधित प्रोजेक्ट के लिए पीपीआर तैयार हुई है जिसे शासन को सौंपा जा चुका है। अधिकारियों के अनुसार पीपीआर के डीपीआर गठन का काम होगा।इस पर मोहर लगती है और औपचारिकता पूरी होती हैं तो फिर काम शुरू होने के आसार बन सकेंगे। उत्तरकाशी वन प्रभाग के डीएफओ डीपी बलूनी का कहना है कि इसी अक्तूबर में योजना के तहत पहले चरण का काम पूरा करने का लक्ष्य था, लेकिन धराली आपदा के चलते काम प्रभावित हुआ है। दूसरी ओर बंदर, जंगली सूअर फसलों को नुकसान पहुंचा रहे हैं। इससे लोगों का खेती से मोह भंग हो रहा है। इसके मद्देनजर बंदरबाड़ा बनाने की योजना बनी। इसमें तराई पूर्वी वन प्रभाग के किशनपुर रेंज में सौ हेक्टेयर क्षेत्रफल में चरणबद्ध तरह से बंदर बाड़ा बनाया जाना था। इस योजना का भी शिलान्यास हुआ। पर मामला फाइलों से आगे नहीं बढ़ा है।राजाजी टाइगर रिजर्व में हाथी कैंप है। यहां पर हाथी के बच्चों के लिए नियो नेटल केयर सेंटर बनाने की योजना बनी, पिछले साल घोषणा भी हुई पर काम आज तक शुरू नहीं हो सका है। अब यहां पर नियो नेटल केयर सेंटर के साथ हाथियों की उम्र बढ़ने पर उन्हें अलग अलग जगहों पर रखने के लिए सेंटर बनाने की योजना का प्रारंभिक खाका खींचा गया है। पर यह काम कब शुरू होगा? यह भी बड़ा सवाल है। इस संबंध में राजाजी टाइगर रिजर्व के निदेशक कहते हैं कि संबंधित योजना में भविष्य की जरूरतों को ध्यान में रखकर प्रस्ताव तैयार किया जा रहा है।गंगोत्री धाम के निकट लंका में निर्माणाधीन देश के पहले हिम तेंदुआ संरक्षण केंद्र का निर्माण लक्ष्य एक बार फिर से आगे खिसकेगा। इस बार धराली-हर्षिल क्षेत्र में आई आपदा के चलते इसका निर्माण प्रभावित रहा। बता दें कि देश के पहले हिम तेंदुआ संरक्षण केंद्र (एसएलसीसी) की घोषणा वर्ष 2020 में हुई थी। वन विभाग की ओर से इसके निर्माण के लिए ग्रामीण निर्माण विभाग उत्तरकाशी को कार्यदायी संस्था का जिम्मा सौंपा गया जिसने वर्ष 2020 में ही केंद्र निर्माण के लिए डिजाइन व ड्राइंग का काम पूरा कर लिया था। केंद्र में करीब 4.87 करोड़ की लागत से हिम तेंदुआ संरक्षण केंद्र के साथ कैफेटेरिया का निर्माण प्रस्तावित है। मानव वन्य जीव संघर्ष का सबसे बड़ा कारण जंगलों का सिमटता दयारा है यानी वन्यजीवों का जो घर है इसका दायरा काम होता जा रहा है. इंसान अपनी मानव बस्ती बढ़ाते जा रहे हैं. विकास के नाम पर तो कभी खेती के नाम पर या फिर कभी मानव बस्तियां बसाने के नाम पर जंगलों पर अंधाधुंध कटान हो रहा है. यही वजह है कि मानव वन्य जीव संघर्ष ज्यादा हो गया है. मानव वन्य जीव सह अस्तित्व के प्रमुख मुद्दे आर्थिक नुकसान, सुरक्षा जोखिम, भोजन और जल की कमी, संरक्षण और विकास में टकराव है जिसमें आर्थिक नुकसान में फसल और मवेशियों की क्षति होती है. साथ ही बुनियादी ढांचे को भी नुकसान होता है. वहीं वन्यजीवों के साथ संसाधनों के लिए हमेशा मानव और वन्यजीवों के बीच संघर्ष होता है. विशेष रूप से जल स्रोतों के लिए, जो मानव समाज और वन्यजीवों दोनों को प्रभावित करती है. अब ऐसे में मानव वन्य जीव सह अस्तित्व के समाधान में इसके लिए एक नीतिगत पहल होनी चाहिए जिसमें ग्राम पंचायत को सशक्त बनाना होगा, होने वाले नुकसान के लिए पुख्ता योजनाएं बनानी होंगी और ग्राम स्तर पर ही अंतर विभाग्य समितियां का गठन करना होगा. इसके अलावा प्रौद्योगिकी का भी इस्तेमाल किया जा सकता है जिसमें पूर्व चेतावनी प्रणाली यानी अर्ली मॉर्निंग सिस्टम को लगाया जा सकता है. खासकर यह इंसानी खेती और रेलवे ट्रैक पर कारगर सिद्ध होता है. इसके अलावा निगरानी के लिए ड्रोन और सामुदायिक जन जागरूकता के लिए हॉटलाइन नंबर्स का उपयोग भी किया जा सकता है. इसके अलावा समुदाय आधारित दृष्टिकोण भी रखना होगा यानी स्थानीय समुदायों को संरक्षण में शामिल करना और उनके पारंपरिक ज्ञान को महत्व देना. बुनियादी ढांचे का निर्माण भी पुख्ता किया जाना चाहिए. जानवरों को मानव बस्तियों से दूर रखने के लिए अवरोधों या फिर बाड़ो या सोलर फेंसिंग का निर्माण करना होगा. शहरों के विस्तार के कारण या फिर शहरों की प्लानिंग में पर्यावरण और वन्यजीवों पर पड़ने वाले प्रभावों को ध्यान में रखकर ही इसकी प्लानिंग करनी होगी और सबसे महत्वपूर्ण जन जागरूकता और शिक्षा मानव वन्य जीव अस्तित्व का सबसे महत्वपूर्ण समाधान है. जिसमें लोगों को वन्यजीवों के महत्व और संघर्ष के समाधान के बारे में शिक्षित करना होगा चाहे वह स्कूल हो या फिर गांव.
*लेखक विज्ञान व तकनीकी विषयों के जानकार दून विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं*

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