जौरासी, पिथौरागढ़। हर साल नवरात्र की द्वादसी को संपन्न होने वाला सुप्रसिद्ध जौरासी कौतिक संपन्न हो गया। आठाबीसी के नौ गांव के नौ परंपरागत नगारों की धमक के बीच बालक देव के प्रांगण में हर साल आयोजित होने वाला कौतिक नई उमंगें नये रंग भरकर चार चांद लगा गया।
पिथौरागढ़ जिले के डीडीहाट विकासखंड के अंतर्गत जौरासी क्षेत्र तल्ला और मल्ला आठाबीसी का केंद्र बिंदु रहा है। दो पट्यिों के केंद्र बिंदु में स्थित जौरासी का यह कौतिक कब से आयोजित हो रहा होगा, इसकी पूरी जानकारी नहीं है, लेकिन देवदार, बांज, र्यांज के सैकड़ों साल पुराने पेड़ों के बीच स्थित बालक देव की खली में यह कौतिक पहले रात्रि में आयोजित होता था। बढ़ते शराब के प्रचलन और कई तरह की प्रतिद्वद्विता के बीच अक्सर जौरासी कौतिक में मारपीट हो जाया करती थी। इसी वजह से कहावत भी बन गई कि यदि कहीं कुछ लोग आपस में लड़ने झगड़ने लगते तो कहा जाता कि जौरासी कौतिक हो रहा है क्या? कई लोग मारपीट के लिए घिंगारू की गांठ वाले डंडों का प्रयोग भी करने लगे थे।
करीब चार दशक पहले क्षेत्र के जागरूक लोगों ने इस कौतिक का आयोजन दिन में करने का निर्णय लिया। जो बेहतर रिजल्ट लेकर आया। रात में शराब के नशे में खुन्नस निकालने वाले दिन के उजाले में ऐसा करने की हिम्मत नहीं जुटा पाते हैं। इसलिए कौतिक के आयोजन को अधिक रोचक बनाया जाने लगा है। परंपरागत तौर पर आठाबीसी के नौ गांव के नौ बूढ़ों के नेतृत्व में नगाड़ों की प्रदर्शनी हुआ करती थी। जिसके लिए बालक देवता मंदिर में स्थान भी तय किए गए थे। लेकिन अब स्थानीय युवाओं की पहल पर बालक देवता की झांकी भी निकाली जा रही है। कौतिक का विधिवत उद्घाटन किया जा रहा है। और भी बहुत सारी रचनात्मक चीजें जौरासी कौतिक से जोड़ने का प्रयास हो रहा है। यह बेहतरी की ओर बढ़ता हुआ कदम है। जो परंपरागत कौतिक कभी मारपीट के लिए कुख्यात था, वह आज आठाबीसी के गांवों के बीच रचनात्मकता के लिए जाना जा रहा है। नई पीढ़ी का यह योगदान सराहनीय कदम है।
द्वादशी के दिन सम्पन्न हुए जौरासी कौतिक के आयोजन में अब प्रवासी लोग भी बड़ी मात्रा में सिरकत कर रहे हैं, इसी बहाने अपनी जन्मभूमि से पलायन कर चुके लोग वापस आ रहे हैं, अपने गांव पहुंच रहे हैं, इसे जौरासी कौतिक की उपलब्धि ही कहा जाना चाहिए।
बालक देवता मंदिर के चारों पर नौ गांव के नगाड़ों के आयोजन के लिए भूमि आवंटित की गई है। सामने हिनौल लगा हुआ है। इस पहाड़ी झूले पर बच्चे खूब खेलते हैं। बालक देवता की इस भूमि का रंग ही अजब है। जौरासी कौतिक के दिन तो इसमें चार चांद ही लग जाते हैं।