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कढ़ी पत्ता स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद

01/11/19
in उत्तराखंड, हेल्थ
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डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला
कढ़ी पत्ते का पेड़ मुराया कोएनिजी, अन्य नाम बर्गेरा कोएनिजी, चल्कास कोएनिजी उष्णकटिबंधीय तथा उप.उष्णकटिबंधीय प्रदेशों में पाया जाने वाला रुतासी परिवार का एक पेड़ है, जो मूलतः भारत का देशज है। अकसर रसेदार व्यंजनों में इस्तेमाल होने वाले इसके पत्तों को कढ़ी पत्ता कहते हैं। कुछ लोग इसे मीठी नीम की पत्तियां भी कहते हैं। इसके तमिल नाम का अर्थ है, वो पत्तियां जिनका इस्तेमाल रसेदार व्यंजनों में होता है। कन्नड़ भाषा में इसका शब्दार्थ निकलता है काला नीम, क्योंकि इसकी पत्तियां देखने में कड़वे नीम की पत्तियों से मिलती.जुलती हैं। लेकिन इस कढ़ी पत्ते के पेड़ का नीम के पेड़ से कोई संबंध नहीं है। असल में कढ़ी पत्ता, तेज पत्ता या तुलसी के पत्तों, जो भूमध्यसागर में मिलने वाली ख़ुशबूदार पत्तियां हैं, से बहुत अलग है।
भारतीय साहित्य मे कढी पत्ते का प्रारम्भि उल्लेख एक शताब्दी ईसा पूर्व के तमिल ग्रथो मे मिलता है, जहा खास तौर पर उनके उपयोग और महत्व का बखान किया गया है। प्राचीन कन्नड़ साहित्य मे भी इसका उल्लेख मिलता हैै। भारत के साथ ही पड़ोसी देशो और इंडोनेशियाए थाईलैण्ड जैसे पूर्वी एशियाई देशो मे भी इसका बहुतायत से उपयोग होता है। श्रीलंका मे भी खाना मीठे नीम के बिना अधुरा माना जाता है। यह भारतीय उपमहाद्वीप का मूल निवासी पौधा है। मीठी नीम को कई जगह कड़ी पत्ते के नाम से भी जाना जाता है। भारत के कई राज्यों में इसका इस्तेमाल खाने के स्वाद को बढ़ाने के लिए किया जाता है। ज्यादातर इसका इस्तेमाल साउथ की मशहूर डिश डोसा.सांबर में किया जाता है कड़ी पत्ता यानी मीठी नीम सिर्फ खाने के स्वाद दोगुना ही नहीं करती बल्कि स्वास्थ के लिए फायदेमंद भी होती है। इससे लीवर से जुड़ी बीमारियां, मघुमेह जासे रोग भी दूर हो जाते है। इस बात से शायद बहुत कम लोग अवगत होंगे कि इससे वजन भी घटाया जा सकता है। अगर बात दक्षिण भारत की बात करें तो वहां कई खाने के व्यंजन में इन पत्तियों का इस्तेमाल होता है। सिर्फ इतना ही नहीं इसका उपयोग आयुर्वेद में जड़ी.बूटियों के रूप में भी किया जाता है। मीठी नीम में ऐंटी.डायबिटीक, ऐंटीऑक्सीडेंट जैसे गुण पाए जाते है मीठा नीम बहु उपयोगी मीठे नीम का छोटा वृक्ष झाड़ बडे गमले में आसानी से उगाया जा सकता है। कढ़ी, दाल, सब्जी, पुलाव, नमकीन आदि भोज्य पदार्थो में इसके ताजे हरे पत्ते छोंक देते समय तप्त घी या तेल में डाल कर भून कर मिला लें तो सब्जी में सुगंध आने लगती है व आहार में अत्यधिक बीटा कैरोटीन, प्रोटीन, लोह, फासफोरस, विटामिन ष्सी आदि पोषक तत्व सहज ही प्राप्त हो जाते है। मीठे नीम की पत्तियों में हर्बल टानिक के गुण पाये जाते हैं, ये शरीर की पाचन क्रिया को मजबूती देती है तथा शरीर को स्वस्थ रखने में सहायता प्रदान करती है अतः इसको हर घर में लगाना उपयुक्त है। करी पत्ते में भरपूर मात्रा में आयरन और फॉलिक एसिड होता है। आयरन जहां शरीर के लिए एक प्रमुख पोषक तत्व है, वहीं फॉलिक एसिड इसके अवशोषण में सहायक होता है। इस वजह से यह खून की कमी से बचाव करने में कारगर है। भारत में दो प्रजाति के नीम पाए जाते है, कडवे नीम एवं मीठे नीम। मीठा नीम अक्सर करी में उपयोग किये जाने की वजह से उसे करी पत्ते के नाम से जाना जाता है।
बहुत से लोगो का ये मानना है कि करी पत्ते केवल खाने का स्वाद बढ़ाते है और इसी वजह से खाते समय वह उन पत्तो को निकालकर फेंक देते है। जबकि खाने का स्वाद बढाने के अलावा इनसे होने वाले बहुत से स्वास्थ लाभ है कैंसर करी पत्ते में जाए जाने वाले केमिकल तत्व जैसे फिनॉल विविध प्रकार के कैंसर जैसे लेकिमियाए प्रोस्टेट कैंसर और कोलोरेक्टल कैंसर से लड़ने में सहायक है। डायरिया करी पत्ते में पाए जाने वाले कार्बजोल अल्कालॉयड में डायरिया को दूर करने की क्षमता होती है। करी पत्ते में से कार्बजोल निकालने के बाद उसके पेस्ट या ज्यूस का सेवन करने से डायरिया को दूर किया जा सकता है। मधुमेह, डायबिटीज करीपत्ता हमारे खून में पायी जाने वाली मधुमेह की मात्रा को केवल कम ही नही करता बल्कि इसे नियंत्रित भी रखा है। इन्सुलिन लेने की वजह से हमारे शरीर पर होने वाले हानिकारक प्रभाव को भी कड़ीपत्ता दूर करता है। साथ में पत्तो में पाए जाने वाले महत्वपूर्ण फाइबर हमारे शरीर से मधुमेह की मात्रा को कम करने में सहायक है। यदि आप मधुमेह की बीमारी से जूझ रहे हो तो कड़ीपत्ता आपके लिए एक प्राकृतिक औषधि है, जिससे आप इसकी मात्रा को नियंत्रित कर सकते हो और स्वस्थ रह सकते हो। त्वचा की देखभाल त्वचा में देखभाल में भी करी पत्ता सहायक है। मीठे नीम की पत्तियों से बने ज्यूस को चेहरे के जलेए कटे या प्रभावित भाग पर लगाने से हमें राहत मिलती है। करी पत्ते के वृक्ष की जड़ो का उपयोग शरीर में हो रहे दर्द का इलाज करने और साँप के काटने पर जहर को निकालने के लिए भी किया जाता है।कोलेस्ट्रॉल की मात्रा को कम करे करी पत्ते हमारे शरीर में पाए जाने वाले हानिकारक एलडीएल कोलेस्ट्रॉल की मात्रा को कम करने में सहायक है। नजरो के लिए लाभदायक करी पत्ते में उच्च मात्रा में विटामिन । पाया जाता हैए जो हमारी दृष्टि को बढ़ाने में सहायक है। विटामिन । में कैरोटेनोइड्स पाया जाता है, जो आँखों के कॉर्निया को सुरक्षित रखता है। शरीर में विटामिन । की कमी से रतौंधी, आँखों के सामने बादल गठन और दृष्टी खोने जैसी समस्याए हो सकती है। बालो को सफ़ेद होने से रोकता है। कड़ीपत्ता हमेशा बालों के सफ़ेद होने की समस्या से हमें बचाता है। यह रूखे.सूखे बालो की समस्या को दूर करने में भी सहायक है। बालो को मुलायम करने, जुओ से मुक्त कराने और बालो से जुडी हुई बहुत सी समस्याओ को दूर करने में नीम की पत्तियाँ सहायक है। करी पत्ताध्मीठा नीम दक्षिण भारतीय के प्रसिद्ध तड़को में से एक है, यह गुजरात में भी प्रसिद्ध है। ढोकला, खम्मन जैसे कई व्यंजनों में करी पत्ता का तड़का अवश्य होता है। एक प्रसिद्ध तड़के के अलावा करी पत्ता के कई स्वास्थ्य लाभ भी हैं। मीठा नीम ;करी पत्ता एक प्रकार का स्वादिष्ट व्यंजन हैए जिसका प्रयोग सब्जी में तड़का लगाने मेंए अन्य प्रकार की पत्तियों मेंए चटनी पाउडर और चटनी बनाने के लिए भी किया जाता है। कढ़ी पत्ते का पेड़ ;मुराया कोएनिजी, अन्य नामः बर्गेरा कोएनिजी, चल्कास कोएनिजी उष्णकटिबंधीय तथा उप.उष्णकटिबंधीय प्रदेशों में पाया जाने वाला रुतासी परिवार का एक पेड़ हैए जो मूलतः भारत का देशज है। अकसर रसेदार व्यंजनों में इस्तेमाल होने वाले इसके पत्तों को कढ़ी पत्ता कहते हैं। कुछ लोग इसे ष्मीठी नीम की पत्तियां भी कहते हैं। इसके तमिल नाम का अर्थ है, वो पत्तियां जिनका इस्तेमाल रसेदार व्यंजनों में होता है। कन्नड़ भाषा में इसका शब्दार्थ निकलता है काला नीम, क्योंकि इसकी पत्तियां देखने में कड़वे नीम की पत्तियों से मिलती.जुलती हैं। लेकिन इस कढ़ी पत्ते के पेड़ का नीम के पेड़ से कोई संबंध नहीं है। असल में कढ़ी पत्ता, तेज पत्ता या तुलसी के पत्तों, जो भूमध्यसागर में मिलनेवाली ख़ुशबूदार पत्तियां हैं, से बहुत अलग है। उत्तराखंड में इसका इस्तेमाल दवा के तौर पर भी किया जाता है। ऐसी वनस्पतियों को यदि रोजगार से जोड़े तो शायद इसमें मेहनत भी कम हो सकती है क्योंकि यह स्वतः ही पैदा हो जाने वाली जंगली वनस्पति है। लगभग पूरे भारत मेंए 1500 मीटर तक की तुंगता तक करी पत्ता पाया जाता है । इसके सगन्ध पत्तों के लिए इसको बहुतायत बढाया जाता है। दक्षिण भारत में विभिन्न प्रकार के व्यंजनों में प्राकृतिक सुवासकारक के रूप में इसके पत्तों का प्रयोग किया जाता है। साबुनी सुगन्ध में स्थिरीकारक के रूप में इसके वाष्पशील तेल का प्रयोग किया जाता है। इस पौधे के पत्तेए छाल और जडों का प्रयोग देशी दवाइयों में टॉनिकए उत्तेजकए वातहर और क्षुधावर्धक के रूप में किया जाता है।
उच्च हिमालयी क्षेत्रों में रहने वाले लोग माइग्रेशन के समय इन जड़ी.बूटियों को घाटी में लाते थे। अधिक दोहन होने के कारण जड़ी.बूटियों के संकट में पड़ने के बाद सालमपंजाए जटामासी सहित कुछ अन्य जड़ी.बूटियों के दोहन व बिक्री को पूरी तरह से प्रतिबंधित कर दिया गया। इनका दोहन केवल नाप भूमि में खेती करने के बाद ही किया जा सकता है। ताकि इस बहुमूल्य सम्पदा को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आर्थिकी का जरिया बनाया जा सके। करी पत्ता का उत्तराखंड में न तो इसका उत्पादन किया जाता है और न ही खेती की जाती है। उत्तराखंड में इसका इस्तेमाल न तो दवा के तौर पर भी किया जाता है। ऐसी वनस्पतियों को यदि रोजगार से जोड़े तो शायद इसमें मेहनत भी कम हो सकती है क्योंकि यह स्वतः ही पैदा हो जाने वाली जंगली वनस्पति है। अत्यन्त प्राचीन काल से भारत में मीठे नीम का उपयोग किया जा रहा है। कई टीकाकारों ने इसे पर्वत निम्ब तथा गिरिनिम्ब आदि नाम दिए हैं। इसके गीले और सूखे पत्तों को घी या तेल में तल कर कढ़ी या साग आदि में छौंक लगाने से ये अति स्वादिष्टएसुगन्धित हो जाते हैं। दाल में इसके पत्तों का छौंक देने से दाल स्वादिष्ट बन जाती है, चने के बेसन में मिलाकर इसकी उत्तम रुचिकर पकौड़ी बनाई जाती है। आम-इमली आदि के साथ इसके पत्तों को पीसकर बनाई गई चटनी अत्यंत स्वादिष्ट व सुगन्धित होती है द्य इसके बीजों तथा पत्तों में से एक सुगन्धित तेल निकला जाता ही जो अन्य सुगन्धित तेलों के निर्माण कार्यों में प्रयुक्त होता है द्य इसका पुष्पकाल एवं फलकाल क्रमशः फ़रवरी से अप्रैल तक तथा अप्रैल से अगस्त तक होता है। इसकी पत्तियों में ओक्सालिक अम्ल, कार्बोहाइड्रेट, कैल्शियम, फॉस्फोरस, अवाष्पशील तेल,लौह, थाइमिन,राइबोफ्लेविन, तथा निकोटिनिक अम्ल पाया जाता है। लेखक द्वारा शोध पत्रों में प्रकाशित किये शोध पत्रों शोध पत्रों कार्य किये गये हैं। ऐसी वनस्पतियों को यदि रोजगार से जोड़े तो शायद इसमें मेहनत भी कम हो सकती है क्योंकि यह स्वतः ही पैदा हो जाने वाली जंगली वनस्पति है। लेखक द्वारा शोंध के अनुसार वैज्ञानिक शोंध पत्र वर्ष ,2014 भारतीय प्राकृतिक उत्पाद और संसाधन जर्नल पत्रिका में प्रकशित हुआ हैं,

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