डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला
देश के प्रतिष्ठित विश्वविद्यालयों में शुमार मुंबई यूनिवर्सिटी के डिग्री सर्टिफिकेट के लोगो में ‘मुंबई’ की स्पेलिंग ग़लत होने से यूनिवर्सिटी की साख को बट्टा लगा है। यूनिवर्सिटी प्रशासन की तरफ से इस साल 1 लाख 64 हजार 465 विद्यार्थियों को डिग्री प्रदान करने के लिए हर स्टूडेंट्स से 250 रुपये शुल्क लिया गया था। ऐसे में ग़लत डिग्री सर्टिफिकेट प्रकाशित होने पर यूनिवर्सिटी प्रशासन के 4 करोड़ 11 लाख 16 हजार 250 रुपये बर्बाद होने का दावा किया जा रहा है।ग़ौरतलब है कि यूनिवर्सिटी प्रशासन की तरफ से इस ग़लती के लिए न तो अब तक किसी को जि़म्मेदार ठहराया गया है और ही किसी पर कार्रवाई हुई है। ऐसे में यूनिवर्सिटी के पूर्व सीनेट सदस्यने यूनिवर्सिटी के कुलाधिपति और राज्यपाल सीपी राधाकृष्णन और राज्य सरकार से मामले में हस्तक्षेप कर दोषियों पर कार्रवाई की मांग की है। इससे पहले युवा सेना (UBT) के पदाधिकारियों ने भी कुलपति से मिलकर कार्रवाई की मांग की थी। हालांकि, मामले में यूनिवर्सिटी ने सफाई भी पेश की है।
आरोपी ने क्यों की पुलिस जांच में क्या खुलासा हुआ
घोर लापरवाही का आरोप लगा
वैराल ने कहा, यह सर्टिफिकेट एक प्राइवेट प्रिंटिंग प्रेस में छपवाया गया। यूनिवर्सिटी को ऐसे गोपनीय दस्तावेज़ अपने प्रेस में छापने की व्यवस्था करनी चाहिए। मामले में यूनिवर्सिटी प्रशासन की घोर लापरवाही उजागर हुई है। प्रिंटिंग से पहले मसौदा कुलपति से लेकर रजिस्ट्रार के पास अप्रूवल के लिए जाता है। सर्टिफिकेट पर कुलपति का हस्ताक्षर होता है। इसलिए मामले में कुलपति को जि़म्मेदारी लेनी चाहिए।मसौदा जांचने के बाद ही दी थी छापने की अनुमति
यूनिवर्सिटी प्रशासन ने दावा किया है कि परीक्षा विभाग द्वारा डिग्री सर्टिफिकेट का पूरा मसौदा जांचने के बाद ही उसे छापने की अनुमति दी गई थी। पहले बैच में प्राप्त सभी प्रमाण-पत्र सही थे, लेकिन बाद में प्रिंटिंग के समय कुछ त्रुटि हुई है। भविष्य में ऐसी ग़लती न हो, कड़े गुणवत्ता नियंत्रण उपाय लागू किए जाएंगे। यूनिवर्सिटी प्रशासन ने कहा, इस ग़लती की जानकारी उन्हें 15 दिन पहले ही हो गई थी। जिन स्टूडेंट्स को यह सर्टिफिकेट दिए गए थे, उन्हें वापस मंगाकर नए प्रमाण-पत्र दिए जा रहे हैं। जिन कॉलेजों ने डिग्री वितरण समारोह आयोजित किया था, उन सभी कॉलेजों को प्रमाण-पत्र यूनिवर्सिटी को वापस भेजने के निर्देश दिए गए थे यूनिवर्सिटी ने लाखों रुपये वसूले, फिर भी गुणवत्ता नियंत्रण की सही व्यवस्था नहीं की।
– छपाई से पहले सर्टिफिकेट की अच्छे से जांच नहीं की गई, जिससे इतनी बड़ी ग़लती हुई।
– जब 15 दिन पहले ही ग़लती उजागर हो गई थी, तब यूनिवर्सिटी ने अब तक संबंधित अधिकारियों पर कार्रवाई क्यों नहीं की?
– यूनिवर्सिटी के पास जगह भी है और फंड भी, तब वह अपने प्रिंटिंग प्रेस में ऐसे गोपनीय दस्तावेज़ की छपाई क्यों नहीं कर रही?लेखक वर्तमान में दून विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं।