डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला
सनातन धर्म में कैलाश पर्वत का खास महत्व है. पौराणिक ग्रंथों में इसे भगवान शिव का स्थान बताया गया है. यह बर्फ का पर्वत है और यह सालों भर बर्फ की मोटी चादरों से ढका रहता है. लेकिन, यह स्थान पर बीते कुछ समय में व्यापक बदलाव देखने को मिला है. तिब्बत के भूभाग में स्थित यह पवित्र पर्वत शिखर 6,638 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है. यहां की एक तस्वीर सामने आई है, जिसमें इसकी पहाड़ियों पर बर्फ का अभाव साफ दिखाई दे रहा है.बर्फ विहीन कैलाश का यह दृश्य न केवल पर्यावरणविदों को चिंतित कर रहा है, बल्कि उन लाखों श्रद्धालुओं के मन में भी सवाल पैदा कर रहा है, जो इसे अपने आध्यात्मिक केंद्र के रूप में देखते हैं. क्या यह जलवायु परिवर्तन का एक और गंभीर संकेत है, या फिर यह किसी अनहोनी की ओर इशारा कर रहा है? पिछले महीने स्थानीय गाइड और पर्यटकों ने देखा कि कैलाश के उत्तरी ढलान जो आमतौर पर बर्फ से ढके रहते थे, अब लगभग बर्फ विहीन हो चुके हैं.दुनिया की सबसे रहस्यमयी और पूजनीय पर्वत श्रृंखला में से एक कैलाश पर्वत इन दिनों जलवायु परिवर्तन की मार झेल रहा है. ताज़ा जानकारी के अनुसार, कैलाश पर्वत के दक्षिणी हिस्से से इस बार बर्फ पूरी तरह गायब हो गई है, जिससे वैज्ञानिकों और पर्यावरणविदों के बीच गंभीर चिंता पैदा हो गई है. जयपुर निवासी ने भी इस बदलाव की पुष्टि करते हुए कहा कि कैलाश पर्वत के बाकी हिस्सों में भी बर्फ की मात्रा काफी कम दिखी, जो पहले की तुलना में असामान्य है. यह पहली बार नहीं है जब हिमालयी क्षेत्र के पवित्र स्थलों में बर्फ की कमी दर्ज की गई है. अगस्त 2024 में ओम पर्वत भी बर्फ पिघलने के कारण पहली बार काला नजर आया था. यद्यपि कुछ दिनों में वहां फिर से बर्फबारी हो गई थी, लेकिन इस तरह के बदलाव अब लगातार सामने आ रहे हैं. विशेषज्ञों का मानना है कि यह बदलाव सामान्य नहीं है. कैलाश पर्वत की ऊंचाई करीब 21,778 फीट है, और इसकी चोटी पर पूरे वर्ष बर्फ जमी रहती है. दक्षिणी हिस्से से बर्फ का गायब होना इस बात की चेतावनी है कि जलवायु परिवर्तन का प्रभाव अब उन क्षेत्रों तक भी पहुंच रहा है, जिन्हें अब तक सुरक्षित माना जाता था. वैज्ञानिकों का मानना है कि कैलाश जैसे ऊंचाई वाले क्षेत्रों से बर्फ का पिघलना वैश्विक तापमान में हो रही वृद्धि का सीधा संकेत है. यदि यही स्थिति बनी रही तो भविष्य में मानसरोवर यात्रियों के अनुभव ही नहीं, बल्कि पूरे हिमालयी पारिस्थितिकी तंत्र पर खतरा मंडरा सकता है. श्रद्धालु मानते हैं कि कैलाश की बर्फ में शिवजी का वास है. अब वह बर्फ गायब हो रही है. तो क्या यह भगवान का क्रोध है? तमाम सनातनी लोग इस प्राकृतिक बदलाव को अलौकिक संकेत मान रहे हैं. स्थानीय निवासियों का कहना है कि उन्होंने बचपन में पूरा पर्वत बर्फ से ढका देखा. अब तो बच्चे पूछते हैं कि बर्फ कहां गई? हमारा जीवन इस पर्वत से जुड़ा है. अगर यह सूख गया, तो हमारा क्या होगा?उनके शब्दों में न केवल पर्यावरण की चिंता है, बल्कि एक संस्कृति और जीवनशैली के विलुप्त होने का डर भी झलकता है. वैज्ञानिकों और पर्यावरणविदों का कहना है कि यह स्थिति जल्द ही नियंत्रित नहीं की गई तो हिमालयी क्षेत्र में पानी की भारी कमी हो सकती है, जो नदियों और पारिस्थितिकी तंत्र को प्रभावित करेगा. लेकिन श्रद्धालुओं के लिए यह सिर्फ पर्यावरण का मुद्दा नहीं, बल्कि उनकी आस्था का सवाल है. वे प्रार्थना कर रहे हैं कि भगवान शिव इस पवित्र स्थान को फिर से अपनी शीतल बर्फ से आच्छादित करें. क्या यह प्रकृति का संदेश है या मानव की लापरवाही का परिणाम, इसका जवाब समय ही देगा. यह वास्तव में चिंता का विषय है. बर्फ का अभाव स्पष्ट रूप से जलवायु संकट का संकेत है. कैलाश क्षेत्र में तापमान में वृद्धि और ग्लेशियरों के पिघलने से यह स्थिति उत्पन्न हुई है. उनके अनुसार पिछले दशक में हिमालय क्षेत्र में औसत तापमान 0.6 डिग्री सेल्सियस बढ़ा है, जो ग्लेशियरों को तेजी से कम कर रहा है. लेकिन यह बदलाव केवल वैज्ञानिकों के लिए नहीं है; बल्कि यह आध्यात्मिक रूप से भी गहरा असर डाल रहा है. श्रद्धालु मानते हैं कि कैलाश की बर्फ में शिवजी का वास है. अब वह बर्फ गायब हो रही है. तो क्या यह भगवान का क्रोध है? तमाम सनातनी लोग इस प्राकृतिक बदलाव को अलौकिक संकेत मान रहे हैं. स्थानीय निवासियों का कहना है कि उन्होंने बचपन में पूरा पर्वत बर्फ से ढका देखा. अब तो बच्चे पूछते हैं कि बर्फ कहां गई? हमारा जीवन इस पर्वत से जुड़ा है. अगर यह सूख गया, तो हमारा क्या होगा?उनके शब्दों में न केवल पर्यावरण की चिंता है, बल्कि एक संस्कृति और जीवनशैली के विलुप्त होने का डर भी झलकता है. वैज्ञानिकों और पर्यावरणविदों का कहना है कि यह स्थिति जल्द ही नियंत्रित नहीं की गई तो हिमालयी क्षेत्र में पानी की भारी कमी हो सकती है, जो नदियों और पारिस्थितिकी तंत्र को प्रभावित करेगा. लेकिन श्रद्धालुओं के लिए यह सिर्फ पर्यावरण का मुद्दा नहीं, बल्कि उनकी आस्था का सवाल है. वे प्रार्थना कर रहे हैं कि भगवान शिव इस पवित्र स्थान को फिर से अपनी शीतल बर्फ से आच्छादित करें. क्या यह प्रकृति का संदेश है या मानव की लापरवाही का परिणाम, इसका जवाब समय ही देगा. प्रधानमंत्री ओम पर्वत के दर्शन के लिए गए और जिस तरह से राष्ट्रीय स्तर पर इसका प्रचार किया गया, उससे कुमाऊं के पिथौरागढ़ क्षेत्र में एकाएक पर्यटकों की आवाजाही तेजी से बढ़ी है और जिसके कारण इस क्षेत्र में तापमान बढ़ा है। उन्होंने कहा कि तेजी के साथ जलवायु परिवर्तन हो रहा है और गर्मी बढ़ रही है। ऋतुओं के चक्र में परिवर्तन हो रहा है। ओम पर्वत से बर्फ का गायब होना यह भी एक प्रमुख कारण है। पिछले सीजन में गर्मियों में गर्मी अत्यधिक पड़ी और बरसात और सर्दियां कम हुई। खने में आया है कि बारिश कम पड़ रही है और सर्दियों का अवधि काल पहले के मुकाबले लगातार घट रहा है। उत्तराखंड के चारों धामों के लिए खास तौर से बद्रीनाथ और केदारनाथ के लिए जो हेलीकॉप्टर सेवा युद्ध स्तर पर शुरू की गई है। उससे पर्यावरण को बहुत नुकसान हो रहा है क्योंकि इन हेलीकॉप्टर सेवाओं से वायु प्रदूषण और ध्वनि प्रदूषण तेजी से बढ़ रहा है, जीव जंतुओं का रहना इस क्षेत्र में मुश्किल हो गया है। उन्होंने कहा कि इस तरह की गतिविधियों को तुरंत रोका जाना चाहिए और अंधाधुंध तरीके से सड़कों, सुरंगों और मकानों के निर्माण पर रोक लगाई जानी चाहिए। उत्तराखंड में पर्यटन के नाम पर तीर्थाटन के नाम पर अंधाधुंध निर्माण कार्यों पर रोक लगाने की है। केवल कैलाश ही नहीं, बल्कि सदैव बर्फ से ढकी रहने वाली चोटियां जैसे ओम पर्वत और आदि कैलाश पर भी या तो बहुत कम बर्फ थी या बिल्कुल नहीं। उन्होंने इसे जलवायु परिवर्तन का चिंताजनक संकेत बताया। *लेखक विज्ञान व तकनीकी विषयों के जानकार दून विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं।*