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असामाजिक तत्व कांवड़ यात्रा की आड़ में कर रहे माहौल खराब

21/07/25
in उत्तराखंड, देहरादून
Reading Time: 1min read
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डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला
भारत जैसे धर्मप्रधान देश में तीर्थयात्राओं और धार्मिक यात्राओं का एक गहरा
सामाजिक, सांस्कृतिक और आध्यात्मिक महत्व रहा है। इन यात्राओं का उद्देश्य
आत्मशुद्धि, समर्पण और शांति की प्राप्ति होता है। परंतु हाल के वर्षों में कुछ तीर्थ
यात्राएँ, विशेषकर कांवड़ यात्रा, अपने मूल स्वरूप से भटक कर हंगामा, शोर-
शराबा और अनुशासनहीनता का पर्याय बनती जा रही हैं।श्रावण मास में
हरिद्वार से लेकर शिवालयों तक कांवड़ यात्रा का दौर शुरू हो चुका है. उत्तराखंड
सरकार ने भी पिछले दिनों कांवड़ यात्रा के रूट पर मौजूद सभी ढाबों और खाने-
पीने की अन्य दुकानों के जाँच के आदेश जारी कर दिये थे. इन सब के बावजूद
कांवड़ यात्रा के नाम पर हुड़दंग थमने का नाम नहीं ले रहा। भक्तों की भीड़ में
कुछ शरारती तत्व भी घुस आए हैं जो भक्ति की आड़ में बवाल काट रहे हैं। आये
दिन हाईवे-सड़को पर शरारती तत्वों का आतंक देखने को मिल रहा है। ताज़ा
मामला हरिद्वार की अपर रोड का है जहां दो कांवड़िए चश्मे की दुकान में घुसे
और जमकर लाठियां बरसा दीं। बताया जा रहा है कि दोनों युवक कांवड़िए के
भेष में चश्मा खरीदने दुकान पहुंचे थे। किसी बात को लेकर हल्की कहासुनी हुई
और देखते ही देखते दोनों ने दुकान में तोड़फोड़ शुरू कर दी। लाठी-डंडों से
काउंटर फोड़ दिया, सामान तहस-नहस कर दिया। दुकानदार ने किसी तरह
भागकर अपनी जान बचाई। घटना में दुकान का हजारों का नुकसान हो
गया। सीसीटीवी फुटेज में पूरी वारदात कैद हो गई है, जिसे खंगालते हुए पुलिस
ने दोनों आरोपियों को अरेस्ट कर लिया है। वही देवभूमि उत्तराखंड में आस्था
और विश्वास की रक्षा को लेकर मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने एक बड़ा कदम
भी उठा चुके है। कांवड़ यात्रा से ठीक पहले राज्य सरकार में ऑपरेशन कालनेमि
शुरू कर दिया है जिसका असर भी अब दिखने लगा है। 300 से ज्यादा फर्जी
बाबाओं को पुलिस ने अपनी गिरफ्त में लिया है. वही विपक्षी पार्टियो ने कावड़
यात्रा के दौरान हो रहे हुड़दंग पर शासन-प्रशासन पर कई सवाल खड़े कर दिए
है।साथ ही सरकार द्वारा प्रदेश में चलाये जा रहे ऑपरेशन कालनेमि पर कांग्रेस
के पूर्व मुख्यमंत्री से राजनीति गरमा गई है।देवभूमि उत्तराखंड. जहां हर सांस में
बसती है आस्था, जहां हर कदम पर रचता है सनातन। लेकिन इसी आस्था की
धरती पर कुछ नकाबपोश ढोंगी, धर्म के वस्त्र पहनकर विश्वास को छलने में जुटे

हुए हैं। ऐसे समय में मुख्यमंत्री ने ऑपरेशन कालनेमि का बिगुल भी बजा दिया
है. ये एक ऐसा अभियान है जो धर्म के नाम पर धोखा देने वालों को बेनकाब कर
रहा है। मुख्यमंत्री ने साफ निर्देश दिए हैं कि जो भी फर्जी साधु धार्मिक भेष में
जनता को गुमराह कर रहे हैं, विशेष रूप से महिलाओं को निशाना बना रहे हैं,
उनके खिलाफ बिना देरी के सख्त कार्रवाई हो। बता दें कि रामायण के अनुसार
कालनेमि एक राक्षस था. राम और लक्ष्मण की शक्ति का पता लगाने के लिए
रावण ने उसे भेजा था राम-रावण युद्ध के दौरान लक्ष्मण घायल होकर अचेत हो
गये थे। उस वक्त हनुमान जी उन्हें बचाने के लिए संजीवनी बूटी लाने हिमालय
पर्वत की ओर जा रहे थे. इस दौरान रास्ते में कालनेमि असुर ने एक साधु का भेष
धारण कर उनको भ्रमित करने की कोशिश की थी. वहीं त्रेता युग के बाद अब
कलयुग में भी कई नकाबपोश ढोंगी, धर्म के वस्त्र पहनकर लोगों के विश्वास को
छलने में जुटे हैं। इसी को देखते हुए उत्तराखंड सरकार ने ऑपरेशन कालनेमि
शुरू किया है। सरकार के इस फैसले का साधु संतों ने भी स्वागत किया है।
ऑपरेशन कालनेमि पर पुलिस प्रशासन ने कार्रवाई भी शुरू कर दी है।  इसके
तहत दून पुलिस ने विभिन्न थाना क्षेत्रों में पुलिस द्वारा साधु-संतों के भेष में घूम
रहे अन्य राज्यों के 20 से अधिक ढोंगी बाबाओं सहित कुल 90 ढोंगी बाबाओं को
गिरफ्तार किया जा चुका है।कावड़ियों के हुए अब तक के उत्पात को लेकर
राजनीत उत्तराखंड से लेकर उत्तरप्रदेश तक गरमा गई है।वहीं दूसरी ओर
मुरादाबाद से इंडियन मुस्लिम लीग के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष ने कांवड़ यात्रा के
दौरान बढ़ते उत्पात और हिंसा को लेकर केंद्रीय गृह मंत्री को पत्र लिखा है. पत्र
में उन्होंने कहा कि कांवड़ यात्रा, जो एक धार्मिक आयोजन है, अब उत्पात और
हिंसा का पर्याय बन गई है. उन्होंने आरोप लगाया कि कांवड़ियों द्वारा मारपीट,
वाहनों को क्षतिग्रस्त करना और अन्य हिंसक गतिविधियां आम हो गई हैं और
यह सब पुलिस की मौजूदगी में हो रहा है. मौलाना ने लिखा, यूपी और
उत्तराखंड सरकारें कांवड़ियों की सुरक्षा और सुविधा के लिए बयान जारी करती
हैं, लेकिन आम नागरिकों की सुरक्षा को पूरी तरह अनदेखा किया जा रहा है.
कानून व्यवस्था पूरी तरह चरमरा गई है. उन्होंने गृह मंत्री से इस मामले में
हस्तक्षेप कर कानून व्यवस्था बहाल करने की मांग की है. कांवड़ यात्रा में जो
देखा जा रहा है, वह भक्ति नहीं, उन्माद है। यह वह धर्म नहीं है जिसकी शिक्षा
भगवान शिव देते हैं। वे तो योगी हैं, शांति और तपस्या के प्रतीक हैं।उन्हीं शिव
के नाम पर सड़कें कब्ज़ा करना, गाड़ियों में तोड़फोड़ करना, दुकानें बंद
करवानायह कहां की भक्ति है? क्या यह ईश्वर को प्रसन्न करता है या समाज को

संकट में डालता है? प्रशासन को राजनीतिक दबाव से ऊपर उठकर कानून का
पालन करवाना चाहिए, चाहे वह कोई भी समुदाय हो।भक्तों को आत्मचिंतन
करना चाहिए कि क्या उनकी यात्रा भगवान शिव को प्रसन्न कर रही है या
बदनाम कर रही है।
सोशल मीडिया पर फालतू दिखावे की प्रवृत्ति को हतोत्साहित करना चाहिए,
और असामाजिक तत्वों की पहचान कर सख्त कार्रवाई होनी चाहिए।परंतु हाल
के वर्षों में कुछ तीर्थ यात्राएँ, विशेषकर कांवड़ यात्रा, अपने मूल स्वरूप से भटक
कर हंगामा, शोर-शराबा और अनुशासनहीनता का पर्याय बनती जा रही हैं।
जहाँ एक ओर लाखों श्रद्धालु राजस्थान के रामदेवरा जैसे स्थानों पर सैकड़ों
किलोमीटर की यात्रा कर शांति और श्रद्धा से पूजा-अर्चना करते हैं,वहीं दूसरी
ओर कांवड़ यात्रा के दौरान अक्सर सड़कों पर कब्ज़ा,डीजे की धुनों पर
नाचना,ट्रैफिक जाम,तोड़फोड़ और मारपीट की खबरें आती रहती हैं। सवाल
उठता है—क्या आस्था का मतलब अराजकता है? कांवडि़ये ही हुड़दंग क्यों करते
हैं, जबकि अन्य तीर्थयात्राएँ शांति से होती हैं? *लेखक विज्ञान व तकनीकी*
*विषयों के जानकार दून विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं।*

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