डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला
राज्य में इस सेवा की शुरुआत 19 सितंबर 2011 को की गई थी। उस वक्त योजना किराये के वाहनों के माध्यम से संचालित की जा रही थी। इससे संचालन में कठिनाइयां हो रही थीं। 30 मार्च 2013 को खुशियों की सवारी योजना में 90 नए एंबुलेंस शामिल की गईं। बाद में इसमें सात वाहन और जुड़े। वर्तमान में प्रदेशभर में 97 खुशियों की सवारी संचालित की जा रही हैं।
आम जनता को राहत पहुंचाने के लिए चलाई जा रही 108 एंबुलेंस सेवा के साथ ही धात्री महिलाओं के लिए चलाई गई खुशियों की सवारी सेवा के चक्के भी जाम हैं। गरीब महिलाओं को प्रसव के बाद घर लौटने के लिए टैक्सियां बुक करनी पड़ रही हैं। सरकार ने सुरक्षित प्रसव योजना के तहत सरकारी अस्पतालों में प्रसव कराने वाली महिलाओं को घर तक पहुंचाने के लिए खुशियों की सवारी सेवा शुरू की थी। इस योजना के तहत थल क्षेत्र में नौ वाहनों को हायर किया गया था। इस योजना से दूरदराज के गांवों से प्रसव के लिए आने वाली महिलाओं को खासी सुविधा मिल रही थी। महिलाओं के परिजनों को प्रसव के बाद घर लौटने के लिए इंतजाम करने की चिंता नहीं थी, लेकिन 108 इमरजेंसी सेवा की तरह ही इस सेवा के लिए भी सरकार बजट जारी नहीं कर रही है। जिसके चलते अधिकांश वाहन खड़े हो गए हैं। अस्पताल में प्रसव के लिए आने वाली महिलाओं को घर लौटने के लिए महंगी दरों पर टैक्सियां बुक करनी पड़ रही हैं। इससे गरीब परिवारों को खासी परेशानी झेलनी पड़ रही है।
राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के तहत प्रदेश सरकार की ओर से निशुल्क 108 खुशियों की सवारी एंबुलेंस चलाई गई थी। ये एंबुलेंस इन दिनों खड़े.खड़े धूल फांक रही हैं। खुशियों के सवारियों के पहिए थमने से प्रसूता महिलाओं को काफी परेशानी हो रही है। खुशियों की सवारी की निशुल्क सुविधा न मिलने से गरीब लोग प्रसूता महिलाओं और नवजातों के लिए टैक्सी करनी पड़ती है। खुशियों की सवारी के संचालन को लेकर बड़े.बड़े दावा करने वाला स्वास्थ्य महकमा अब बैकफुट पर है। जल्दबाजी में मुख्य चिकित्साधिकारियों को संचालन का जिम्मा जरूर दिया गया पर योजना पर ब्रेक लगने और संचालन में आ रही दिक्कतों के चलते अधिकारियों ने हाथ खड़े कर दिए। यही वजह है कि संचालन अब फिर पीपीपी मोड पर देने की तैयारी है। इसके लिए टेंडर प्रक्रिया भी शुरू कर दी गई है। इसके चलते तमाम वाहन जिला मुख्यालयों पर ही खड़े रहे। बीते दिनों अधिकारियों ने शासन से इसे लेकर दिशा.निर्देश मांगे, लेकिन शासन ने भी स्थिति स्पष्ट नहीं की इससे संचालन में कठिनाइयां हो रही थीं।
लॉकडाउन के बीच खुशियों की सवारी की कमी अखर रही है। सरकारी सिस्टम की लापरवाही के कारण प्रदेश में अधिकांश जगह खुशियों की सवारी के पहिये जाम पड़े हैं। जिससे उन लोगों को दिक्कत हो रही है जो अस्पताल से लौटते वक्त इन्हीं वाहन पर निर्भर थे। मगर, दुर्भाग्य है कि यहां भी सुविधाओं और योजनाओं के नाम पर महज हवाई बातें हैं। यहां भी स्वास्थ्य सुविधाओं के नाम पर हर वर्ष करोड़ों का बजट खर्च किया जाता है, लेकिन उसके बाद भी एक साल से जच्चा.बच्चा को सुरक्षित घर पहुंचाने वाले वाहन के लिए तेल उपलब्ध नहीं हो पा रहा है। जिसके कारण इस वाहनों के पहियों पर ब्रेक लगा हुआ है। दूरस्थ क्षेत्रों के जच्चा.बच्चा को सुरक्षित घर पहुंचाने के लिए निजी वाहन और एम्बुलेंस के लिए दर.दर भटकना पड़ता है। इन सब समस्याओं के बाद भी स्वास्थ्य विभाग के नीति नियंताओं की नींद नहीं टूट रही है। डीएम का कहना है कि जिला प्रशासन का प्रयास है कि खुशियों की सवारी वाहन को स्थानीय बजट खर्च कर सुचारू किया जायेण् जिससे जच्चा. बच्चा को परेशानियों का सामना न करना पड़े। मगर शासन.प्रशासन ये कब करेगा ये तो आने वाला वक्त ही बताएगा। उत्तराखंड स्वास्थ्य महकमा यू तो मुख्यमंत्री के पास है। बावजूद इसके अधिकारियों की योजनाओं को लेकर हीला हवाली बेहद ज्यादा रही है। माना जा रहा है कि मुख्यमंत्री के दूसरे कामों में व्यस्त होने का फायदा अधिकारी स्वास्थ्य विभाग में तमाम योजनाओं पर लापरवाही के रूप में उठा रहे हैं।