डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला
जड़ी.बूंटियों में शक्तिशाली औषधीय गुण होते हैं, इसलिए बहुत सारी बीमारियों को ठीक करने के लिए जड़ी.बूंटियों का सेवन करना लाभकारी होता है। भारत में आयुर्वेद के अनुसार प्राचीन काल से ही हर्ब्स का उपयोग बीमारियों को ठीक करने में किया जाता रहा है। कुट्की एक शक्तिशाली हर्ब है जो कि स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद होता है। कुट्की का सेवन करने से पेट की बीमारियां ठीक होती हैं, इम्यून सिस्टम बूस्ट होता है कुटकी इसे तिक्त संस्कृत, कुटकी हिन्दी, कटकी बंगला, काली कुटकी मराठी, कडू गुजराती, कडुगुरोहिणी तमिल, कटुकी तेलुगु, खरबके हिन्दी अरबी तथा पिक्रोराईजाकुरो लैटिन कहते हैं।
कुटकी बरसात में होनेवाला छोटा पौधा है। कुटकी के पत्ते 2.4 इंच लम्बे, अण्डाकार, जड़ की अपेक्षा आगे की ओर कुछ चौड़े, चिकने, झालरदार होते हैं। पौधे के बीच से निकले डंठल पर नीले या सफेद रंग के अनेक फूल लगते हैं। कुटकी के फल आकार और रंग में कुछ जौ से मिलते.जुलते होते हैं। कुटकी का जड़ बहुत कड़वी, 6.7 इंच तक लम्बी, अंगुली की तरह मोटी, खुरदरी, सूक्ष्म ग्रन्थियुक्त और भूरे रंग की होती है। यह हिमालय पर 6.14 हजार फुट की ऊँचाई पर कश्मीर से सिक्किम तक प्राप्त होती हैं। रासायनिक संघटन इस प्रकार इसकी जड़ में एक कड़वा सत्त्व पिक्रोराइजिन 15 प्रतिशत, केथेर्टिक एसिड 9 प्रतिशत, कुल ग्लूकोज, मोम आदि पदार्थं होते हैं। यह स्वाद में कड़वी, पचने पर कटु तथा रूखी, हल्की और शीतल है। इसका मुख्य प्रभाव पाचन.संस्थान पर भेदक दस्त लाने वाला और विरेचक रूप में पड़ता है। यह अग्निदीपक, यकृत उत्तेजक, हृदय बलदायक, रक्तशोधक, शोथहर, रक्त भारवर्धक ब्लडप्रेशर बढ़ानेवाला, स्त्रीदुग्धशोधक, मेदहर, कफनि सारक कटु.पौष्टिक, दाहशामक, ज्वरहर तथा कुष्ठहर है।कुटकी के लाभ इस प्रकार सफेद दाद नीम की छाल, गिलोय, हल्दी, बच, त्रिफला और कुटकी इन्हें बराबर मात्रा में लेकर कूटपीस कर लेप बना लें। दाद वाले जगह पर इस लेप को लगाने से सफेद दाद चले जाते हैं।मासिक धर्म में कष्ट माशा कुटकी चूर्ण शहद के साथ देने से मासिक धर्म में होने वाला दर्द दूर हो जाता है।
एक्जिमा में फायदेमंद कुटकी और चिरायता को मिलाकर उसका लेप लगाने से एक्जिमा ठीक हो जाता है।गठिया रोग माशा खुरासानी कुटकी को शहद के साथ रोजाना सेवन करने से गठिया रोग दूर हो जाता है। पित्तज्वर कुटकी चूर्ण 2 माशा, शर्करा 6 माशा मिलाकर देने से रेचन होकर ज्वर शान्त होता है। हृदय रोग 2 माशा कुटकी चूर्ण के साथ मुलेठी का चूर्ण 3 माशा मिलाकर मिश्री के शर्बत के साथ देने से हृदय की गति कम होती है, पर शक्ति बढ़ती है। रक्तचाप ब्लडप्रेश बढ़ता है एवं दीपन, पाचन होकर दस्त होते हैं। यकृत.विकार या हाथ.पैरों की सूजन में कुटकी का प्रयोग उदर कृमि, पित्त तथा कफ विकारों में कुटकी बहुत लाभ करती है। जलोदर खुरासानी कुटकी 2 से 3 माशा शहद के साथ सेवन करने से जलोदर का रोग दूर हो जाता है। उच्च हिमालयी क्षेत्रों में पाई जाने वाली कुटकी नामक जड़ी बूटी का उत्पादन कपकोट के कर्मी, गोगिना गांवों में होगा।
कुटकी के उत्पादन के लिए गढ़वाल विश्वविद्यालय आगे आया है। प्रथम चरण में इन दो गांवों को चयनित किया गया है। 10 हजार प्रति किलो में बिकने वाली कुटकी उत्पादन से किसानों की तकदीर बदल सकती है। भारत सरकार के नेशनल मिशन ऑन हिमालयन स्ट्डीज परियोजना के तहत यह योजना संचालित की जा रही है। इस योजना के तहत विलुप्त हो रही जड़ी बूटियों को पुनर्जीवित करने के साथ ही किसानों को जड़ी बूटी उत्पादन के लिए प्रेरित किया है।