डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला
समुद्री तूफान के कारण बने पश्चिमी विक्षोभ के असर से उत्तराखंड में लगातार 24 घंटे तक बारिश होती रही। इस दौरान कई जगहों पर भूस्खलन की घटनाएं हुए और नदियां उफान पर आ गई। सबसे बड़ी घटना देहरादून जिले में चकराता ब्लाक के क्वांसी में हुई। जिला आपदा प्रबंधन विभाग के मुताबिक, बादल फटने के कारण हुई अतिवृष्टि से यहां बिजनाड छानी नामक तोक में एक घर और एक गौशाला टूट गई और 3 लोगों की मौत हो गई। हालांकि यहां रेन.गेज न होने के कारण बादल फटने की घटना की पुष्टि नहीं की जा सकी है। उधर, बद्रीनाथ हाईवे पर लामबगड़ में करीब 300 मीटर सड़क बह गई है। उल्लेखनीय है कि मई माह में उत्तराखंड में इस तरह की यह छठी बड़ी घटना है। उत्तराखंड में मई का महीने में अतिवृष्टि से होने वाले नुकसान की 6 बड़ी घटनाएं हो चुकी हैं। इससे पहले 3 मई को रुद्रप्रयाग और उत्तरकाशी जिले में भारी बारिश के कारण मलबा आने से घरों और खेती को भारी नुकसान हुआ था। 4 मई को चमोली जिले के घाट में, 5 मई अल्मोड़ा जिल के चौखुटिया में और 11 मई को टिहरी जिले के देवप्रयाग में इस तरह की घटनाएं हुई थी। देवप्रयाग में दो सरकारी भवनों के साथ ही दर्जनभर दुकानें भी बह गई थी। हालांकि आज से पहले किसी भी घटना में किसी व्यक्ति की मौत नहीं हुई थी।
उत्तराखंड में बारिश का सिलसिला 20 मई 2021 तक 100 मिमी से ज्यादा बारिश दर्ज की गई। इस दौरान में राज्य में भूस्खलन की कई घटनाएं दर्ज की गई। देहरादून जिले के चकराता तहसील में क्वांसी गांव में एक भारी बारिश के दौरान मलबा आने से एक मकान और एक गौशाला पूरी तरह से टूट गये। इस घटना में 3 लोगों की मौत और 4 लोगों के घायल होने की सूचना मिली है। इसके अलावा 20 पशुओं के मारे जाने की खबर भी मिली है।यह घटना सुबह 10 बजे के करीब हुई। जिला आपदा परिचालन केंद्र में सूचना मिलते ही पुलिस, एसडीआरएफ, राजस्व पुलिस और अन्य संबंधित विभागों ने काम शुरू कर दिया। देहरादून की जिला आपदा प्रबंधन अधिकारी के अनुसार घटना में हुए कुल नुकसान का जायजा लिया जा रहा है। उन्होंने कहा कि अब तक मिली खबर के अनुसार एक मकान पर मलबा गिरने से एक युवक और दो बच्चियों की मौत हुई है और चार लोग घायल हुए हैं। राहत और बचाव दल ने ग्रामीणों की मदद से तीनों शव निकाल लिए हैं। घायलों को अस्पताल ले जाया गया है। एक घर के अलावा इस घटना में एक गौशाला भी क्षतिग्रस्त हुई है। घटना के करीब 20 पशुओं की मौत हो जाने की संभावना है। उधर चमोली जिले में बद्रीनाथ राजमार्ग पर लामबगड़ में करीब 200 मीटर सड़क बह गई है। इस घटना में एक ट्रक भी बह गयाए हालांकि ट्रक के ड्राइवर और कंडक्टर छलांग लगाकर सुरक्षित निकलने में सफल रहे।
लामबगड़ में एनएच 58 का यह हिस्सा एक बड़ा स्लाइडिंग जोन रहा है। चारधाम सड़क परियोजना के पर्यावरणीय पक्ष पर सुप्रीम कोर्ट में हुई सुनवाई के दौरान सरकार की ओर से कहा गया था कि इस स्लाडिंग जोन का ट्रीटमेंट कर दिया गया है और अब यहां भूस्खलन की कोई संभावना नहीं है। सुप्रीम कोर्ट में दी गई यह दलील मानसून से पहले हुई बारिश में ही बह गई है और लामबगड़ स्लाइडिंग जोन के एक बार चर्चाओं में आने की संभावना है।
2013 में विनाशकारी बादल फटने की घटना के बाद 5000 लोगों की जान चली गई थी। इसे देखेते हुए डॉप्लर वेदर रडार जैसी चेतावनी प्रणाली को मजबूत करने की बात उठी थी, जिसे अभी तक प्रमुख क्षेत्रों में नहीं लगाया जा सका है। जनवरी 2021 में आईएमडी और राज्य सरकार ने कुमाऊं के मुक्तेश्वर में एक डॉपलर मौसम रडार स्थापित किया, जो कई वर्षों से पाइपलाइन में था। इसकी स्थापना का कारण क्लाउड बर्स्ट और अन्य चरम वर्षा की घटनाओं की भविष्यवाणी करना है। रघु मुर्तुगडे ने बताया कि डॉपलर वेदर रडार संभावित बादल फटने के वास्तविक समय की ट्रैकिंग के लिए आदर्श हैं। खासकर यदि उनके पास एक नेटवर्क है जो उन्हें हवाओं और नमी को ट्रैक करने की अनुमति देता है।हालांकि गढ़वाल क्षेत्र में यह डॉप्लर सिस्टम अभी तक नहीं लग पाए हैं। और वर्तमान रडार उन जगहों से 200-400 किमी दूर है, जहां हाल ही में बादल फटने की घटनाएं हुई हैं। इसलिए उन्हें भविष्यवाणी करने में ज्यादा मदद नहीं मिली। धनौल्टी, टिहरी गढ़वाल जिले और लैंसडाउन, पौड़ी गढ़वाल जिले में दो और डॉप्लर मौसम रडार लगाने की योजना है। सक्रिय पश्चिमी विक्षोभ के कारण राज्य में अन्य लोगों के साथ.साथ चार बादल फटने वाले जिलों को भी को भारी वर्षा के अलर्ट पर रखा गया है।
उत्तराखंड प्राचीनकाल से ही भूकंप, बाढ़, भूस्खलन व अतिवृष्टि जैसी प्राकृतिक आपदाओं की त्रासदी झेलता आ रहा है, मगर सरकार व सरकारी मशीनरी ने अतीत में हुई तबाही से भी कोई सबक नहीं लिया है। पिछले साढे तीन दशक में ही दैवीय आपदा की करीब एक दर्जन घटनाओं ने न सिर्फ उत्तराखंड बल्कि पूरे देश को झकझोर कर रख दिया, लेकिन इसके बावजूद राज्य में आपदा प्रबंधन के ठोस व कारगर इंतजाम अब तक नहीं हो पाए। देवभूमि उत्तराखंड का इतिहास भी दैवीय आपदा से हुई त्रासदी की कई दिल दहला देने वाली दास्तां बयां करता है। बहरहाल, पिछले साढ़े तीन दशक के अतीत पर ही नजर दौड़ाएं, तो प्राकृतिक आपदा की करीब दर्जनभर घटनाएं ऐसी हैं, जिसने उत्तराखंड ही नहीं समूचे देश को भी भीतर तक हिला दिया। दैवीय आपदा की त्रासदी सबसे अधिक उत्तरकाशी जिले को झेलनी पड़ी है।चाहे वह 1978 में आई बाढ़ हो या फिर 1980 की अतिवृष्टिए 1991 का भूकंप या 2012 में भागीरथी व असीगंगा घाटी में हुई तबाही। आपदा की इन सिलसिलेवार घटनाओं में पिछले आठ साल में ही करीब एक हजार जिंदगियां तबाह हो गई, जबकि हजारों घर से बेघर हो गए।
अफसोस यह कि अतीत में हुई इन त्रासदियों से सरकार व सरकारी मशीनरी ने कोई सबक नहीं लिया। हैरत की बात यह कि राज्य आपदा न्यूनीकरण एवं प्रबंधन केंद्र के पास दैवीय आपदा की प्रमुख घटनाओं का ब्योरा तक ठीक से उपलब्ध नहीं है। ऐसे में अंदाजा लगाया जा सकता है कि आपदा प्रबंधन के लिए ठोस कार्ययोजना बनाने या उस पर अमल करने की दिशा में कितनी संजीदगी से काम हो रहा होगा। आपदा से निपटने को अर्ली वार्निग सिस्टम तो दूर, बचाव व राहत कार्य को जरूरी बुनियादी ढांचा तक तैयार नहीं हो पाया है। दैवीय आपदा की ताजा घटनाओं ने भी तंत्र की इस काहिली पर एक बार फिर सवाल खड़े कर दिए हैं।पुनर्निर्माण और पुनर्वास के साथ उत्तराखंड को इन गलतियों को स्वीकार करना होगा और तत्काल सुधार, शुरुआती संचयी प्रभाव आकलन और सभी नदी थालों की क्षमता का अध्य्यन करना होगा और इस बीच निर्माणाधीन और नियोजित परियोजनाओं को रोकनाहोगा।सभी विकासात्मक कार्यों के संबंध में निर्णय लेने में अहम भूमिका वाले सक्रिय आपदा प्रबंधन विभाग को सुनिश्चित करना होगा इसके साथ ही विश्वसनीय पर्यावरणीय शासन और अनुपालन प्रणाली स्थापित करनी होगी। विभिन्न अवसंरचनाओं के प्रभाव का आकलन करना होगा। ठोस चेतावनी, पूर्वानुमान, निगरानी और सूचना प्रसार प्रणाली स्थापित करनी होगी। अगर हम इन न्यूनतम कदमों को नहीं उठाएंगे तो अगली आपदा मौजूदा आपदा की पूर्व कड़ी लगेगी। एक के बाद एक इस तरह की घटनाएं होना अप्रत्याशित है और कहीं न कहीं यह क्लामेट चेंज की प्रक्रिया का असर हैं। इस तरह की घटनाओं को लेकर विस्तृत अध्ययन की जरूरत है। वे कहते हैं कि ये घटनाएं बादल फटने जैसी घटनाएं हैं, लेकिन बारिश को मापने की काई व्यवस्था न होने के कारण पक्के तौर पर नहीं कहा जा सकता कि यह बादल फटने जैसी स्थितियां हैं या नहीं। अतः एक सुनियोजित एवं सामंजस्य पूर्ण विकास एवं सोच की नितांत आवश्यकता है।












