फोटो–राॅच पर ऊनी वस्त्रों को तैयार करती जनजाति की महिलाएं ।
प्रकाश कपरूवाण
हिमालयी जडी-बूटियों और भोजपत्र की भी है डिमाण्ड ।
जोशीमठ। भगवान बदरीविशाल के कपाट खुलने से लेकर अब तक सात लाख से अधिक तीर्थयात्री बदरीनाथ पंहुच चुके है। भगवान नारायण के दर्शन के साथ-साथ यात्री भारत के आखिरी गाॅव माणा जो बदरीनाथ से महज तीन किमी0के फासले पर है को देखने के लिए भी पंहुच रहे है, और यात्रा की सौगात के नाम पर यात्री बदरीनाथ से बदरी प्रसादम तो ले ही जा रहे हैं, हिमालयी हस्तशिल्प की सराहना करते हुए माणा से शुद्ध ऊनी वस्त्रों की खरीददारी भी कर रहे है।
माणा भोटिया जनजाति के लोगो का गाॅव है, कृषि व ऊनी कारोबार यहाॅ के ग्रामीणों का परंपरागत पेशा हैं युवा पीढी शिक्षा के आधार पर भले ही प्रशासन से लेकर चिकित्सा, तथा बैंक समेत विभिन्न सरकारी नौकरियांे पर है। मगर गाॅव की पुरानी पीढी व नई पीढी की बहुए भी ऊनी वस्त्रों के कारोबार से जुडी है। हाथ से बुने ऊनी वस्त्र इस गाॅव की पहचान है।, ऊनी टोपी, दस्ताने, स्वेटर,जुराब ,कालीन, दन्न, मफलर, शाॅल, पंखी, व थुलमा आदि ऊनी वस्त्र महिलाएं आज भी लकडी की राॅच पर बुनती है। प्राचीन हस्तशिल्प कला और शुद्ध ऊनी वस्त्रों की उपलब्धता इस गाॅव की पहचान है। इसीलिए जो भी इस गाॅव मे आता है यहाॅ के हस्तशिल्प को सम्मान देने के लिए कुछ ना कुछ अवश्य खरीदता है।
माणा निवासी गायत्री देवी कहती है कि यात्रियों को जब बताया जाता है कि ऊनी वस्त्र यहाॅ के भेंडो की ऊन से बने है तो लोग जिज्ञासा से अवश्य खरीदते है। माणा गाॅव के पूर्व प्रधान राम सिंह कंडारी कहते है कि यहाॅ के ऊनी वस्त्रों की शुद्धता सबको आकर्षित कर रही है। ऊनी वस्त्रो के साथ ही यहाॅ की जडी बूटियाॅ जिम्बू, फरण, मासी व टगर आदि भी यात्री खूब खरीद रहे है।
हिमालयी क्षेत्र मे ऊनी वस्त्रों को बाजार की मंग के अनुसार नए कलेवर और साज-सज्जा देन के लिए चमोली की डीएम स्वाति एस भदौरिया ने हाल मे संपन्न बैठक मे सुझाव दिया था कि हिमालयी क्षेत्र के बुनकरो को पहाड के हस्तशिल्प को बाजार मे उतारने के लिए प्रतिस्पर्धी होना बेहद जरूरी है, इसके लिए फिनिशिगं व कार्डिगं की नई तकनीकी पर ध्यान दिए जाने की आवश्यकता है।
जनजाति सलाहकार परिषद के उपाध्यक्ष रामकृष्ण ंिसहं रावत कहते है कि उत्तराख्ंाड के परंपरागत ऊनी हस्तशिल्प-हथकरधा उद्यांेग को विस्तृत बाजार मिले इसके लिए प्रस्ताव व सुझाव आंमत्रित किए गए है।जनजाति निदेशाल को प्रस्ताव व सुझाव मिलने पर उत्तराख्ंाड के ऊनी कारोबार को विस्तृत बाजार दिए जाने की दिशा मे कार्य किया जाऐगा।
माणा घाटी की तर्ज पर नीती घाटी मे भी ऊनी कारोबार के बढने की असीम संभावनाएं है। लेकिन नीती घाटी मे दर्जनो पर्यटक व धार्मिक स्थल होने के वावजूद इन स्थलो का विकास नही हो सका। सडक संपर्क व विद्युत से नीती घाटी का अंतिम गाॅव नीती तो जुड चुका है, लेकिन नीती घाटी आजादी के बाद से संचार सुविधा से बंचित है। यदि नीती घाटी के दर्जनो रमणीक पर्यटक स्थलो व धार्मिक स्थलो के विकास के साथ ब्यापक प्रचार-प्रसार हो तो सीमा दर्शन यात्रा के रूप मे भविष्य बदरी से लेकर बर्फानी बाबा टिमर सैण व नीती पास तक आवाजाही हो सकेगी और सैलानियों की आमद बढने से निश्चित ही यहाॅ भी स्वरोजगार के अवसर बढेगे।












