डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला
लैवेंडर, लैवेन्डुला पुदिना परिवार लैमिआसे के 39 फूल देने वाले पौधों में से एक प्रजाति है। एक पुरानी विश्व प्रजाति मकारोनेसिया केप वर्डे और कैनरी द्वीप और मैदेरा, अफ्रीका, भूमध्यसागरीय, दक्षिणी पश्चिमी एशिया, अरब, पश्चिमी ईरान और दक्षिण पूर्व भारत के पार से वितरित हुई। ऐसा सोचा जाता है कि यह प्रजाति एशिया में उत्पन्न हुई, लेकिन यह अपने पश्चिमी वितरण में अधिक विविधता लिए हुए है। देशी प्रकार कैनरी द्वीप, उत्तरी और पूर्वी अफ्रीका, दक्षिणी यूरोप और भूमध्य सागर, अरब और भारत के पार तक फैला है। चूंकि दुनिया भर में इसकी खेती हो रही है और उद्यान लगाए जा रहे हैं तो ये जंगलों में अपनी प्राकृतिक सीमा से परे बहुत कम ही पाए जाते हैं। हालांकि, जब से लैवेंडर का प्रतिकूल.परागण आसान हो गया तब से इस प्रजाति में अनगिनत विवधिता पाई जाने लगी है।
कुछ प्रकार के फूलों के रंग को लैवेंडर कहा जाता है। फूलों में प्रचुर मात्रा में अमृत होता है जिससे मधुमक्खियां उच्च गुणवत्ता वाली शहद बनाती हैं। मोनोफ्लोरल शहद का उत्पादन भूमध्यसागरीय क्षेत्र के आसपास मुख्य रूप से होता है और इस विशेष उत्पाद का विपणन दुनिया भर में किया जाता है। कभी कभी फूल को चीनी में पका कर केक पर सजावट के लिए इस्तेमाल किया जाता है। लैवेंडर के जायके का इस्तेमाल बेक्ड व्यंजन और मिठाईयों में होता है इसकी जोड़ी चॉकलेट के साथ बहुत अच्छी होती है और साथ ही साथ लैवेंडर सुगर के लिए इसका इस्तेमाल किया जाता है। लैवेंडर के फूल का मिश्रण कभी कभी काले, हरे या हर्बल चाय के साथ ताजेपन, सुगंध और स्वाद के लिए किया जाता है। हालांकि दक्षिणी फ्रांस में इसके कई पारंपरिक उपयोग हैं, लेकिन दक्षिणी फ्रांस के पारंपरिक व्यंजनों में इसका प्रयोग नहीं किया जाता है।
1970 के दशक में एक जड़ी बूटी मिश्रण हेर्बेस डे प्रोवेंस कहा जाता था आमतौर लैवेंडर के साथ मिश्रण का आविष्कार एक थोक मसाले के व्यापारी द्वारा किया गया था और हाल ही में लैवेंडर रसोई में बहुत लोकप्रिय हो गया। लैवेंडर से व्यंजनों में फूल की खुशबू और थोड़ी मिठास आ जाती है और कभी कभी इसे भेड़ के दूध और बकरी के दूध से बनी चीज़ के साथ मिलाया जाता है। अधिकतर रसोई के अनुप्रयोगों में इसकी सूखी कलियां फूल के रूप में भी उपयोग में लाई जाती हैं, हालांकि कुछ रसोइये इसके पत्तों का भी उपयोग करते हैं। केवल कलियों में ही लैवेंडर के आवश्यक तेल होते हैं, जहाँ से लैवेंडर का सबसे अच्छा स्वाद और सुगंध प्राप्त होता है। फ्रांसिसि अपने लैवेंडर सिरप के लिए भी जाने जाते हैं, जो सामान्यतः लैवेंडर के उद्धरण से बनाया जाता है। संयुक्त राज्य अमेरिका में फ्रेंच लैवेंडर सिरप और सूखे लैवेंडर की कलियों से लैवेंडर स्कोन्स और मार्शमेलो बनाए जाते हैं। तेल का उत्पादन होता है जिसमें तारपीन और कपूर की मात्रा होती है जिसका उपयोग तेज खुशबू के लिए किया जाता है। मैक्सिकन लैवेंडर, लैवेनड्युला स्टेकस, का उपयोग औषधि के लिए नहीं बल्कि मुख्य रूप से भूनिर्माण के लिए किया जाता है। लैवेंडर के तेल के आवश्यक गुण हैं एंटीसेप्टिक और सूजन को कम करना। इसका इस्तेमाल अस्पताल में डब्लू डब्लू आई के दौरान फर्श और दीवारों को कीटाणुरहित करने के लिए किया जाता है। इन तत्त्वों का उपयोग स्नान उत्पादों के सुगंध के लिए किया जाता है। लोक ज्ञान के अनुसार, लैवेंडर के कई उपयोग हैं। लैवेंडर की सुई लेने से कीड़े के काटने और जलन से आराम है। लैवेंडर की गंध से कीड़े दूर भागते हैं। सिर पर लैवेंडर तेल लगाने से सिर दर्द में आराम मिलता है। तकिए में लैवेंडर के फूलों और बीजों को डालने से अच्छी नींद और विश्राम मिलता है। एक कप उबलते पानी में तीन फूलों का अर्क डालने से सोते समय आराम मिलता है। लैवेंडर तेल या लैवेंडर के उद्धरण से मुँहासे ठीक हो जाते हैं, हाल ही में नैदानिक अध्ययन से पता चला है कि बेचैनी के समय में नींद पर प्रभाव डालती है। कैप्सूल के रूप में उच्च प्रतिशत के लैवेंडर के तेल के साथ, एसीटेट लिनाल्य्ल और लिनालूल आम तौर पर अच्छी तरह से बर्दाश्त किया गया था।
नींद संबंधित गड़बड़ी और चिंता को समाप्त करने में इसका सार्थक प्रभाव दिखाई पड़ता है।जर्मनी मेंए यह कैप्सूल लासी के व्यापारिक नाम से उपलब्ध हैं। लैवेंडर को तरोताजा प्रयुक्त पाउच हर्बल पूरक के रूप में बड़े पैमाने पर इस्तेमाल किया जाता है। सूखे और पाउच में बंद, लैवेंडर फूल कीट की रोकथाम करते हैं और कपड़ों में खुशबू फैलाते हैं। सूखे लैवेंडर फूल हाल ही में शादी कंफ़ेद्दी के लिए लोकप्रिय हो गए हैं। लैवेंडर पाउच और सुगंधित पानी में लोकप्रिय हो गए हैं। लैवेंडर आयल एक ऐसा आयल है जो सभी तरह के तेलो में सबसे लाभदायक है। इसके बहुत से फायदे है। लैवेंडर आयल की खुशबु इतनी अच्छी होती है जिससे आपको शांति और आराम मिलता है। यह बहुत सी चीज़ों में दवाई की तरह भी इस्तेमाल किया जाता है रासायनिक रूप से यह
ट्रांसडीहाइड्रोकार्वोंन, लीमोनेनेऑक्साइडरासायनिक यौगिक बहुतायत से मिलते हैं। लिनाइल एसीटेट लिनेनूल, टेर्पिनियल का एसीटेट एस्टर है किसानों की खुशहाली से देश की तरक्की का रास्ता निकलता है, लेकिन शायद ही कभी सुनने को मिलता है कि देश का अन्नदाता खुशहाल हो रहा है।
अब कुछ किसान परंपरागत खेती से दूरी बनाकर तरक्की का रास्ता निकाल रहे हैंण् इसकी एक बानगी देखिए। अतीश, कुठ, कुटकी, करंजा, कपिकाचु और शंखपुष्पी जैसे हर्बल पौधों की खेती से किसानों का एक छोटा समूह 3 लाख रुपये प्रति एकड़ तक की कमाई कर रहा है। किसान जब गेहूं या धान की खेती करते हैं तो महज 30,000 रुपये प्रति एकड़ से कम कमाई होती है। हर्बल पौधों का इस्तेमाल आयुर्वेदिक दवाइयों और पर्सनल केयर उत्पाद बनाने में होता है। इन आयुर्वेदिक दवाओं और पर्सनल केयर प्रोडक्ट्स को डाबर, हिमालया, नेचुरल रेमिडीज और पतंजलि जैसी कंपनियां बेचती हैं। इनमें से कई जड़ी.बूटियों के नाम काफी आकर्षक हैं। शहरी उपभोक्ताओं के लिए अतीशए कुठए कुटकीए करंजाए कपिकाचु और शंखपुष्पी जैसे पौधों की शायद ही कोई अहमियत होण् लेकिन ये पौधे किसानों की जिंदगी बदल रहे हैंण् एक आकलन के मुताबिकए देश में हर्बल उत्पादों का बाजार करीब 50ए000 करोड़ रुपये का हैए जिसमें सालाना 15 फीसदी की दर से वृद्धि हो रही हैण् जड़ी.बूटी और सुगंधित पौधों के लिए प्रति एकड़ बुआई का रकबा अभी भी इसके मुकाबले काफी कम हैण् हालांकि यह सालाना 10 फीसदी की दर से बढ़ रहा हैण् सरकारी आंकड़ों के मुताबिकए देश में कुल 1ए058ण्1 लाख हेक्टेयर में फसलों की खेती होती हैण् इनमें सिर्फ 6ण्34 लाख हेक्टेयर में जड़ी.बूटी और सुगंधित पौधे लगाए जाते हैंण् उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश के ऊंचाई वाले इलाके में किसान इसकी खेती कर रहे हैंण् लैवेंडर की खेती करने वाले किसानों को आसानी से 1ण्2.1ण्5 लाख रुपये प्रति एकड़ मिल जाते हैंण् लैवेंडर से तेल निकाला जाता हैण् इनसे कई तरह के सुंगधित उत्पाद बनाए जाते हैंण्जड़ी.बूटियों को बहुत अधिक पानी या खाद की जरूरत नहीं पड़ती हैण् कम पानी में भी ये फसलें लगाई जा सकती हैंण्ष् पहले कम वर्षा के कारण सालाना एक फसल भी कठिन थीण् डाबर इंडिया राजस्थान के बाड़मेर में शंखपुष्पी जैसे औषधीय पौधों की खेती के लिए किसानों के साथ काम करती हैण् नैचुरल रेमेडीज के निदेशक अमित अग्रवाल कहते हैंएष्अतीशए कुठए कुट्टी जैसी जड़ी बूटी की सप्लाई कम होने से काफी अच्चे दामों पर बिक जाती हैण्ष्
वह कहते हैं कि एक किसान जड़ी बूटी बेचकर औसतन 60ए000 रुपये प्रति एकड़ कमा सकता हैण् नैचुरल रेमेडीज करीब 1ए043 एकड़ भूमि पर जड़ी बूटियों से जुड़ी कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग कर रही हैण् पतंजलि के सीईओ आचार्य बालकृष्ण का कहना है कि कंपनी किसानों को 40ए000 एकड़ जमीन पर जड़ी.बूटियों की खेती करने में मदद कर रही हैण् कुट्टीए शतावरीए और चिरायत कमाई में सबसे ऊपर हैंण् उनका कहना है कि भारत में इस व्यवसाय को बढ़ाने की काफी संभावना हैए क्योंकि चीन के बाद भारत ही सबसे ज्यादा इन फसलों का उत्पादन करता हैण् इनकी घरेलू और वैश्विक मांग काफी ज्यादा हैण्लैवेंडर आवश्यक तेल आज दुनिया में सबसे ज्यादा इस्तेमाल किया जाने वाला आवश्यक तेल हैए लेकिन लैवेंडर के लाभ वास्तव में 2ए500 साल पहले खोजे गए थे। इसके शक्तिशाली एंटीऑक्सीडेंटए एंटीमिक्राबियलए शामकए शांत और एंटीड्रिप्रेसिव गुणों के कारणए लैवेंडर तेल लाभ बहुत अधिक हैं और सदियों से कॉस्मेटिक और चिकित्सकीय दोनों का उपयोग किया जाता है। लैवेंडर के फूलों से किसान कई तरह से कमाई कर सकता हैंण् इसके फूलों को बाज़ार में सजावट के रूप में बेचकर नगद लाभ कमा सकता हैंण् इसके अलावा इसके फूलों से तेल निकालकर उसे बेचकर लाभ कमा सकता हैंण् इसके तेल का बाज़ार में काफी महँगा बिकता हैंण् जिससे किसान अच्छी आमदनी कमा सकता हैंण् जहां पर किसानों उगाने की कोशिश की और उसी तकनीक की मदद उत्तराखंड के पहाड़ी इलाकों में भी केसर की खेती करने के लिए ली जा सकती हैण्लेकिन अब जल्द ही उत्तराखंड में को मिल सकते हैंण् ऐसी को यदि बागवानी रोजगार से जोड़े तो अगर ढांचागत अवस्थापना के साथ बेरोजगारी उन्मूलन की नीति बनती है तो यह पलायन रोकने में कारगर होगी उत्तराखण्ड हिमालय राज्य होने के कारण बहुत सारे बहुमूल्य उत्पाद जिनकी अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में अत्यधिक मांग हैण् इस कड़ी में कुछ लैवेंडर की पौध तैयार कर वितरित कर लेकिन इसे विस्तार मिलना अभी बाकी है। उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्रों में उगाने की मुहिम शुरू की तो किसानों ने इसे हाथों हाथ लिया।