डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला
उत्तराखण्ड में पाई जाने वाली ढेरों वनस्पतियों में से ज्यादातर औषधीय गुणों से युक्त हैं। बीते समय में इनमें से कई का इस्तेमाल कई बीमारियों के इलाज के लिए या उनसे बचने के लिए भी होता हैं। पुरातन काल से ही ऋषि मुनियों एवं पूर्वजों द्वारा पौष्टिक तथा रोगों के इलाज के लिए विभिन्न प्रकार के जंगली पौधों का उपयोग किया जाता रहा है। वैसे तो बहुत सी पहाड़ी सब्जियां खायी हैं, जिनमें से लिंगुड़ा भी एक है। कुछ लोगों ने इस सब्जी का आनन्द जरूर लिया होगा। यह जंगलों में स्वतः ही उगने वाली फर्न है, जिसका उपयोग हम ज्यादा से ज्यादा सब्जी बनाने तक ही कर पाते हैं। जबकि विश्व में कई देशो में लिंगुड़ा की खेती वैज्ञानिक एवं व्यवसायिक रूप से भी की जातीहै। विश्वभर में लिंगुड़ा की लगभग 400 प्रजातियां पाई जाती हैं। लिंगुड़ा उत्तराखंड में ही नहीं अपितु एशिया, चाइना तथा जापान में भी खूब पाया जाता है।
लिंगुड़ा एक फर्न है विश्वभर में लिंगुड़ा की लगभग 400 प्रजातियां पाई जाती हैं। लिंगुड़ा उत्तराखंड में ही नहीं अपितु एशिया, चाइना तथा जापान में भी खूब पाया जाता है। लिंगुड़ा एक फर्न है जिसका वैज्ञानिक नाम डिप्लाजियम एसकुलेंटम है तथा एथाइरिएसी फैमिली से संबंधित है। अलग.अलग जगह पर इसे विभिन्न नामों से जाना जाता है जैसे निंगरू सिक्किम में, लिंगरी हिमाचल प्रदेश में, लिंगुड़ा उत्तराखण्ड में पाया जाता है यह सामान्यतः नमी वाली जगह पर मार्च से जुलाई के मध्य लगभग 1900- 2900 समुद्र तल से ऊपर की ऊचांई पर पाया जाता है। लिंगुड़े का उपयोग सामान्यतः सब्जी बनाने में ही किया जाता है मगर अन्य देशों में लिंगुड़े को सब्जी के साथ.साथ अचार तथा सलाद के रूप में बहुत पसंद किया जाता है।
कुछ प्रसिद्ध सालादों में लिंगुड़े को मुख्य घटक के रूप में प्रयोग किया जाता है लेकिन पहाड़ी सब्जी वो भी लिंगुड़ाए मजा ही कुछ और है। पुरातन काल से ही ऋषि मुनियों एवं पूर्वजों द्वारा पौष्टिक तथा रोगों के इलाज के लिए विभिन्न प्रकार के जंगली पौधों का उपयोग किया जाता रहा है। वैसे तो बहुत सी पहाड़ी सब्जियां खायी हैं, जिनमें से लिंगुड़ा भी एक है, कुछ लोगों ने इस सब्जी का आनन्द जरूर लिया होगा। यह जंगलों में स्वतः ही उगने वाली फर्न है, जिसका उपयोग हम ज्यादा से ज्यादा सब्जी बनाने तक ही कर पाते हैं। जबकि विश्व में कई देशो में लिंगुड़ा की खेती वैज्ञानिक एवं व्यवसायिक रूप से भी की जाती है। लिंगड़े मे कैल्शियम, पौटेशियम तथा आयरन प्रचुर मात्रा होने के कारण इसे एक अच्छा प्राकृतिक स्रोत भी माना जाता है। सामान्यतः इसमें प्रोटीन 54 ग्राम, लिपिड 0.34 ग्राम, कार्बोहाइड्रेट 5.45 ग्राम, फाइबर 4.45 ग्राम 100 ग्राम, विटामिन 23.59 मिलीग्राम पाया जाता है। इसके अलावा इसमें मिनरल्स इसमें पौटेशियम और कैल्शियम विटामिन.ए, बी.सी., खनिज तत्व, कार्बोहाइड्रेट एवं औषधीय गुणों से भरपूर है। इसमें पौटेशियम और कैल्शियम की प्रचुर मात्रा होने के कारण इसकी भरपाई के लिए इसका उपयोग किया जाता है।
लिंगुड़ा मधुमेह के लिये अत्यंत लाभकारी फर्न है। अफ्रीकन जरनल ऑफ फार्मेसी 2015 में प्रकाशित लेख के अनुसार लिंगुड़ा में फ्लेवोनोइड्स तथा स्टेरॉल की वजह से बेहतर गुण पाए जाते है। लिंगुड़ा में गुण तथा गुण भरपूर पाए जाते है। मलेशिया जरनल ऑफ माइक्रोबायोलॉजी के 2011 के अध्ययन के अनुसार अगर लिंगुड़ा को के साथ मिलाया जाय तो यह में सूक्ष्म जीवाणुओं द्वारा जनित बीमारियों को कम कर देता है। लिंगुड़ा की पत्तियों का पाउडर औद्योगिक रूप से बायोसेन्थेसिस ऑफ सिल्वर नैनो पार्टीकल्स के लिए प्रयुक्त किया जाता है क्योंकि लिंगुड़ा की पत्तियां तथा स्टेबलाइजर का कार्य करती हैं। राज्य के परिप्रेक्ष्य में अगर लिंगुड़ा की खेती वैज्ञानिक तरीके और व्यवसायिक रूप में की जाए तो यह राज्य की आर्थिकी का एक बेहतर पर्याय बन सकता है। विश्लेषक के पेड़ को संरक्षित नहीं किया गया तो यह अतीत बन जायेगा। पलायन रोकने के लिए सबसे बड़ा जरिया बन सकता है। सरकार को इस ओर सोचने की जरूरत है। समय रहते इन पेडों का सरंक्षण उच्च स्तर पर नहीं किया गया तो आने वाले दिनों में वैज्ञानिक और इतिहासकार इसे इतिहास के पन्नों में ढूंढते रह जाएंगे। वहीं जिलाधिकारी मंगेश घिल्डियाल का कहना है कि ऐसे काश्तकारों की सरकारी स्तर से भी मदद की जायेगी, जिससे लिंगुड़ा जैसे लाभकारी फर्न का संरक्षण किया जा सके। उत्तराखण्ड में वर्ष 2022 तक किसानों की आय दोगुना करने के लिए ष्मिट्टी से बाजार तकष् की रणनीति पर काम किया जा रहा है।
उत्तराखंड के किसानों के लिए बाज़ार तक पहुंचना ही बड़ी समस्या है। खेती से मुंह मोड़ रहे युवाओं को यदि उनके उत्पाद का बेहतर मूल्य मिले, तभी वे खेतों की ओर लौटेंगेण्वृक्षावरण में वृद्धि कर भूमि एवं जल संरक्षण व पर्यावरण संतुलन स्थापित करने के साथ ग्रामीण आंचल में उद्यमियों को प्रोत्साहन तथा वन आधारित लघु व कुटीर उद्योग की अर्थव्यवस्था को सशक्त किया जा सकता है। एक प्रगतिशील के रूप में प्रतिष्ठित करता है। यह पलायन रोकने में कारगर होगी उत्तराखण्ड हिमालय राज्य होने के कारण बहुत सारे बहुमूल्य उत्पाद जिनकी अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में अत्यधिक मांग रहती है। वर्तमान समय में राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर हर्बल उत्पादों एवं जड़ी बूटियों की बढ़ती जा रही मांग, हर्बल उत्पाद के प्रति लोगों के पुर्नझुकाव तथा इनकी व्यवसायिक स्तर पर खेती के अत्यधिक लाभकारी होने जैसी विशेषताओं ने विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में यह सर्वाधिक संभावना संपन्न व्यवसाय क्षेत्र को जन्म देता है। तो यह पलायन रोकने में कारगर होगी उत्तराखण्ड हिमालय राज्य होने के कारण बहुत सारे बहुमूल्य उत्पाद जिनकी अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में अत्यधिक मांग रहती है। उत्तराखंड के साथ.साथ देश के पर्यावरण के प्रति असंवेदनशीलता दर्शाता हैण् कायदे से बाँजए कौव्ए काफलए उतीसए बुरांश और अन्य चौड़ी पत्तियों के पेड़ों से आच्छादित डाँनों.कानों को रकबे की सीमा से मुक्त करके वन की श्रेणी में रखा जाना चाहिए। भू उपयोग और ख़रीद की सीमा को लेकर हाल में लागू उदार नीतियों के चलते उत्तराखंड की जमीनों.जंगलों पर बहुत दबाव आया है। ये वक़्त हरित बोनस कमाने का है, जंगलों को गँवाने का नहीं है। लिंगुड़ा का विस्तृत व्यवसायिक क्षमता का आंकलन कर यदि व्यवसायिक खेती की जाय तो यह प्रदेश की आर्थिकी का बेहतर साधन बन सकती है। बाजारीकरण, काश्कारों को न्यून प्रोत्साहनए जनमुखी भेषज नीति के अभाव आदि ने हिमालय की इन सौगातों का अस्तित्व संकट में डाल दिया है। आज इन पादपों को इसलिए भी जानने की जरुरत है क्योंकि जिस गति से हम विकास नाम के पागलपन का शिकार हो रहे हैं, आने वाली पीढ़ियों के लिए यह केवल कहानी बन कर रह जाएँगी। सख्त नियमों द्वारा इन गैर.कानूनी गतिविधियों व दोहन पर लगाम लगायें। प्राकृतिक जैव.संसाधनों व पारंपरिक ज्ञान का संरक्षण मानव जाति को सतत विकास की राह प्रदर्शित करता है। ये संसाधन, अनुसंधान हेतु आवश्यक व महत्त्वपूर्ण आगत के रूप में प्रयोग किये जाते हैं। अतः विकास की अंध.आंधी से पूर्व इनका संरक्षण करना चाहिए।
सांसद बलूनी की माने तो अगर ढांचागत अवस्थापना के साथ बेरोजगारी उन्मूलन की नीति बनती है तो यह पलायन रोकने में कारगर होगी उत्तराखण्ड हिमालय राज्य होने के कारण बहुत सारे बहुमूल्य उत्पाद जिनकी अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में अत्यधिक मांग रहती है। प्राकृतिक रूप से जंगलों में पाये जाते है। हिमालयी क्षेत्र में रह रहे लोगों की आजीविका का जरिया भी बन सकती हैं।