डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला
उत्तराखंड राज्य गठन को 25 साल पूरे हो रहे हैं. ऐसे में राज्य सरकार इस 25वें वर्षगांठ को रजत जयंती के रूप में मना रही है. साथ ही राज्य गठन के बाद हुए विकास और भविष्य की चुनौतियों पर रणनीति तैयार कर रही है. हालांकि, इन 25 सालों से भीतर तमाम क्षेत्रों में राज्य ने कई मुकाम हासिल किए हैं. शांत व सुरम्य पहाड़ में बढ़ती नशाखोरी की लत न केवल युवा पीढ़ी को बर्बाद कर रही है बल्कि शुभ कार्यों में विवाद और विध्न का कारण बन रही है। इसी समस्या के समाधान के लिए के लोग एक साथ आगे आए हैं।तय किया है कि गांव में शादी-विवाह समेत अन्य किसी भी समारोह में शराब परोसने वालों का विरोध किया जाएगा। गांव के लोग ऐसे किसी भी समारोह में शामिल नहीं होंगे जहां शराब परोसी जाएगी। शराब परोसने वाले परिवार का सभी गांव वाले सामूहिक बहिष्कार करेंगे और उसके निमंत्रण में भी शामिल नहीं होंगे। उत्तरकाशी जिले में अब लोग खुद अपने स्तर पर नशे के बढ़ते चलन को रोकने के लिए आगे आने लगे हैं। प्रदेश के दुर्गम इलाकों में शराब की खपत धीरे-धीरे सामाजिक बुराई बनती जा रही थी, वहीं अब ग्रामीणों ने इस प्रवृत्ति पर लगाम लगाने के लिए जन जागरूकता और सामाजिक अनुशासन का नया अध्याय शुरू किया है।उत्तरकाशी जिले के डुंडा विकासखंड के लोदाड़ा गांव में ग्राम प्रधान, महिला मंगल दल, युवा मंगल दल और ग्रामीणों ने मिलकर एक सार्वजनिक बैठक आयोजित की। इस बैठक में सर्वसम्मति से निर्णय लिया गया कि अब से गांव में किसी भी शादी, चूड़ाकर्म संस्कार या अन्य सामाजिक समारोह में शराब परोसना पूर्णतः प्रतिबंधित रहेगा। यदि कोई परिवार इस नियम का उल्लंघन करता है, तो उसके ऊपर ₹51,000 का जुर्माना लगाया जाएगा, और उस परिवार का सामाजिक बहिष्कार भी किया जाएगा। यदि किसी भी कार्यक्रम में शराब परोसे जाने या सेवन की शिकायत मिली, तो गांव का कोई भी व्यक्ति उस समारोह में शामिल नहीं होगा।शराब मुक्त गांव बनाने की योजनाग्राम प्रधान ने बताया कि नशामुक्त गांव की दिशा में यह कदम पूरी तरह से सामाजिक सहमति पर आधारित है। यह निर्णय गांव की एकता और सामाजिक मर्यादा को बनाए रखने के उद्देश्य से लिया गया है। गांव के बुजुर्गों और युवाओं का कहना है कि पिछले कुछ वर्षों में जब भी किसी समारोह में शराब परोसी गई, लड़ाई झगड़े और अशांति की घटनाएं बढ़ी हैं। कई बार तो विवाद इस हद तक बढ़ गए कि रिश्तेदारों और पड़ोसियों के बीच कड़वाहट पैदा हो गई। इसीलिए अब ग्रामीणों ने ठान लिया है कि गांव को पूरी तरह शराब मुक्त बनाना ही होगा।ग्रामीणों को चिंता है कि अगर गांव में शराब का चलन इसी तरह बढ़ता रहा, तो युवा रोजगार और शिक्षा से भटककर नशे और अपराध की राह पर जा सकते हैं। महिला मंगल दल की सदस्यों ने कहा कि शराब की लत ने कई घरों की खुशियाँ छीन ली हैं, इसलिए अब गांव की माताएँ और बहनें आगे बढ़कर यह जिम्मेदारी उठा रही हैं। लोदाड़ा गांव की यह पहल अब पूरे जिले के लिए प्रेरणास्रोत बन गई है। ग्रामीणों का कहना है कि यदि प्रत्येक गांव इसी तरह सामूहिक निर्णय ले, तो पूरे उत्तराखंड को नशा मुक्त देवभूमि बनाया जा सकता है। वर्तमान में शादी-समारोह हो या अन्य कोई कार्यक्रम, शराब परोसने का चलन बढ़ता जा रहा है। अब ग्रामीण क्षेत्र भी इससे अछूते नहीं हैं। इससे लड़ाई-झगड़े, अराजकता, मनमुटाव व अपराध बढ़ रहे हैं वहीं युवा पीढ़ी भी नशे के जाल में फंसती जा रही है।इसी को देखते हुए रविवार को सत्यों में ग्रामीणों ने बैठक की। तय किया गया कि ग्राम सभा में अब शुभ कार्यों विवाह, नामकरण, जन्मदिन समारोह के अलावा होली-दीपावली या फिर चुनाव के दौरान कोई भी व्यक्ति शराब परोसेगा तो ग्रामीण उसका सामूहिक बहिष्कार करेंगे। तभी शराब परोसने का चलन बंद होगा। नशा सिर्फ शरीर ही नहीं परिवार भी बर्बाद कर रहा है। नशे के चंगुल में फंसे युवा या तो परिवार में बिखराव की वजह बनते जा रहे हैं या फिर परिजनों को जिंदगी भर का दुख देकर कम उम्र में ही काल के गाल में समा रहे हैं। *लेखक विज्ञान व तकनीकी विषयों के जानकार दून विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं*












