डा. हरीश चंद्र अन्डोला
पहाड़, पानी, वनों का ही हिस्सा समझते हुए व्यवहार किया गया, जबकि हिमालय वेद पुराण के अनुसार तब भी आध्यात्मिक महत्त्व ज्यादा रखता था और आज भी उसी तरह से रखता है। हिमालय को हमेशा एक पूजनीय स्थल समझा गया और यही कारण है कि सभी तरह के देवी.देवताओं का यह वास बना। कोई भी धर्म हो, हिमालय उसका केन्द्र बना पहाड़ी क्षेत्रों देवभूमि उत्तराखंड में पाये जाने वाले पोष्टिक एवं औषधीय गुणों से भरपूर एक फल के जिसे उत्तराखंड में तिमला कहते है।
इस फल को हिन्दी में अंजीर के नाम से भी जाना जाता है। खासबात ये है कि ये उत्तराखंड में एग्रो फोरेस्ट्री के अन्तर्गत आता है। मतलब ये अपने आप ही खेतो में लग जाते है। उत्तराखंड में न तो इसका उत्पादन किया जाता है और न ही खेती की जाती है। इस फल का वैज्ञानिक नाम है फिकस ऑरिकुलाटा। रिसर्च से पता चला है कि तिमला का फल खाने से शरीर की कई सारी बीमारियों के निवारण होता है और शरीर में आवश्यक पोषकतत्व की भी पूर्ति होती है। पक्षियों द्वारा इस तिमला का सेवन बहुत अधिक मात्रा में किया जाता है जिससे तिमले के बीज को एक जगह से दूसरी जगह फैलाती हैं। तिमले का उपयोग सब्जीए जैमए जैली तथा फार्मास्यूटिकल, न्यूट्रास्यूटिकल एवं बेकरी उद्योग में भी किया जाता है।
तिमला में वैसीसिनिक एसिड, लाइनोलेनिक एसिड, फॉलिक एसिड पाये जाते हैं। वैसीसिनिक एसिड से कैंसर जैसी बड़ी बीमारी को रोकने की क्षमता होती है। अतः इससे कैंसर जैसी बड़ी बीमारी का इलाज संभव है। लाइनोलेनिक एसिड दिल की विभिन्न धमनियों में ब्लोकेज होने से रोकता है। लाइनोलोनिक एसिड भी तिमला के फल में प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। ऑलिक एसिड शरीर में मौजूद लो.डेंसिटी लाइपो प्रोटीन की मात्रा को कम करता है। जिससे कोलेस्ट्रोल भी कम करता है। इससे शरीर की कई बीमारियों को दूर करता हैं। विभिन्न प्रकार के खाद्य पदार्थो के निर्माण में इसका उपयोग किया जाता है जैसे जैम, जैली, विनेगर, चटनी व वाइन आदि में। साइट्रिक एसिड, टाइट्रिक एसिड, का काफी अच्छा स्रोत इसे माना गया है।
इस फल की मांग अब दवाई कंपनियों द्वारा अधिक मात्रा में की जा रही है। उत्तराखंड में इसका इस्तेमाल दवा के तौर पर भी किया जाता है। ऐसी वनस्पतियों को यदि रोजगार से जोड़े तो शायद इसमें मेहनत भी कम हो सकती है क्योंकि यह स्वतः ही पैदा हो जाने वाली जंगली वनस्पति है। क्या ऐसी ही वनस्पतियों को यदि रोजगार से जोड़ा जाए तो कुछ तो फायदे होंगे। ऐसी वनस्पतियों को यदि रोजगार से जोड़े तो शायद इसमें मेहनत भी कम हो सकती है क्योंकि यह स्वतः ही पैदा हो जाने वाली जंगली वनस्पति है।
जहां एक ओर विभिन्न औषधीय गुणों की वजह से समूचे विश्व में आधुनिक औषधि निर्माण एवं न्यूट्रास्यूटिकल कम्पनियों मंे इन औषघीय पौधांै की माॅग दिनों दिन बढ रही है वही लोगों तथा सरकार द्वारा इनके आर्थिक महत्व पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया जा रहा है। यदि इन वहुउद्ेशीय पादपों के आर्थिक महत्व पर गहनता से कार्य किया जाता है तो पहाड़ो से पलायन जैसी समस्या से काफी हद तक निजात पाया जा सकता है