डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला
अतीत के पन्नों में सितम्बर का महीना उत्तराखंड वासियों के लिए मानों काले दिवसों से कम नहीं है, पहले 1 सितम्बर साल 1994 को खटीमा गोलीकांड और फिर ठीक एक दिन बाद दो सितंबर को हुआ मसूरी गोलीकांड, तब इन दोनों घटनाओं ने उत्तराखंड वासियों को झकझोर कर दिया था। आज मसूरी गोलीकांड की 31 वीं बरषी है। दो सितंबर का दिन आज भी मसूरीवासियों की धड़कनें तेज कर देता है। आंदोलन की अलख जगाने के लिए पुरुषों के साथ महिलायें भी राज्य आंदोलन में कूद पड़ी। 2 सितम्बर को भी उत्तराखंड राज्य प्राप्ति आंदोलन अन्य दिनों की तरह ही शांतिपूर्वक चल रहा था। मसूरी के झूलाघर के पास संयुक्त संघर्ष समिति के कार्यालय में आंदोलनकारी इकठा होकर एक सितंबर को खटीमा में हुए गोलीकांड के विरोध में अनशन कर रहे थे। इस दौरान पीएसी और पुलिस ने मिलकर उत्तराखंड राज्य आंदोलन को आगे बढ़ा रहे मसूरी के निहथे आंदोलनकारियों पर बिना चेतावनी के ताबड़तोड़ गोलियां बरसा दीं। राज्य आंदोलन में भाग लेने महिलाएं आगे आई तो उन्हें भी गोली मार दी गई, जिसमें बेलमति चौहान और हंसा धनैई शहीद हो गईं। इस गोलीकांड में मसूरी के छह आंदोलनकारी बलबीर सिंह नेगी, धनपत सिंह, राय सिंह बंगारी, मदनमोहन ममगाईं, बेलमती चौहान और हंसा धनाई शहीद हो गए, मसूरी के डीएसपी रहे उमाकांत त्रिपाठी ने गोली चलाए जाने का विरोध किया तो उन्हें भी गोली मार दी गई, उन्हें भी बाद में शहीद का दर्जा मिला। इसके बाद पुलिस ने आंदोलनकारियों की धरपकड़ शुरू की। इससे पूरे शहर में अफरातफरी मच गई। क्रमिक अनशन पर बैठे पांच आंदोलनकारियों को पुलिस ने एक सितंबर की शाम को ही गिरफ्तार कर लिया था। जिनको अन्य गिरफ्तार आंदोलनकारियों के साथ पुलिस लाइन देहरादून भेजा गया। वहां से उन्हें बरेली सेंट्रल जेल भेज दिया गया था। वर्षों तक कई आंदोलनकारियों को सीबीआई के मुकदमे झेलने पड़े थे। बाद में फिर आंदोलन ने तेजी पकड़ ली और नौ नवंबर साल 2000 को 42 शहादत के बाद हमें अलग राज्य मिला। दुर्भाग्य है की आज तक खटीमा और मसूरी गोली कांड के दोषियों को सजा तक नहीं मिल पाई है।उत्तराखंड के मुख्यमंत्री ने मसूरी गोलीकांड की 31वीं बरसी पर शहीदों को श्रद्धांजलि देते हुए कई ऐतिहासिक घोषणाएं की। भारी बारिश के बीच आयोजित समारोह में उन्होंने मसूरी की मॉल रोड का नाम बदलकर ‘आंदोलनकारी मॉल रोड’ करने का ऐलान किया। यह सड़क उत्तराखंड राज्य निर्माण के लिए हुए आंदोलन को समर्पित होगी। इस घोषणा से वहां मौजूद लोगों में गर्व के साथ उत्साह व्यक्त किया। मुख्यमंत्री ने शहीद स्मारक पर बलबीर सिंह नेगी, बेलमती चौहान, हंसा धनाई, धनपत सिंह, राय सिंह बंगारी और मदन मोहन ममगई को नमन किया। उन्होंने 2 सितंबर 1994 को उत्तराखंड के इतिहास का ‘काला दिन’ बताया, जब निहत्थे आंदोलनकारियों पर पुलिस ने गोलियां चलाई थी। उन्होंने कहा कि उनकी सरकार शहीदों के बलिदान को कभी नहीं भूलेगी और उत्तराखंड को सशक्त, पारदर्शी व संस्कृति से समृद्ध बनाने के लिए प्रतिबद्ध है। आज की तारीख में इन्हीं बलिदानों की वजह से उत्तराखंड का अस्तित्व हम लोग देख पा रहे हैं। अगर ये लोग नहीं होते, तो आज हम उत्तराखंड का अस्तित्व नहीं देख पाते। मसूरी के पटरी व्यापारियों के लिए भी मुख्यमंत्री ने बड़ी घोषणा की। उन्होंने वेंडर जोन बनाने की घोषणा की, जिससे व्यापारियों को स्थायी जगह, सम्मानजनक आजीविका और सुरक्षा मिलेगी। उन्होंने कहा, “ये व्यापारी हमारे शहर की आत्मा हैं, इनके रोजगार को संरक्षित करना हमारा दायित्व है।” कार्यक्रम में कैबिनेट मंत्री ने मसूरी के विकास के लिए कई मांगें उठाईं। सीएम ने आरक्षण, पेंशन, मुफ्त शिक्षा और नकल विरोधी कानून जैसे कदमों का जिक्र करते हुए कहा कि उनकी सरकार उत्तराखंड को प्रगति के पथ पर ले जा रही है। यह घोषणाएं न केवल शहीदों के बलिदान को सम्मान देती हैं, बल्कि मसूरी के विकास और सामाजिक उत्थान की दिशा में भी महत्वपूर्ण कदमहैं। उत्तराखंड के विकास को लेकर और उनके द्वारा प्रदेश को विकसित किए जाने को लेकर चलाई जा रही विभिन्न योजनाओं का बखान करते हैं. दुर्भाग्य से जिस सपनों को उत्तराखंड के शहीदों और आंदोलनकारियों ने देखा था, वह उत्तराखंड नहीं बन पाया है. पहाड़ों से पलायन जारी है. गांव-गांव खाली हो गए हैं. उन्होंने कहा कि सरकार द्वारा प्रदेश के विकास के लेकर विभिन्न योजनाओं के तहत कार्य तो किये जा रहे हैं, परन्तु पहाड़ के विकास को लेकर सरकार के पास कोई ठोस नीति नहीं है. पहाड़ खाली हो गए हैं, युवा पलायन कर चुके हैं.
दुर्भाग्य है की आज तक खटीमा और मसूरी गोली कांड के दोषियों को सजा तक नहीं मिल पाई है। जुल्म सहने के बाद जिन सपनों के लिए राज्य की लड़ाई लड़ी गई, वो अब तक पूरे नहीं हुए हैं। दो सितंबर की घटना को कभी भुलाया नहीं जा सकता।
*लेखक विज्ञान व तकनीकी विषयों के जानकार दून विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं।*