डा.हरीश चंद्र अंडोला
भारत को आजादी दिलाने में हमारे उत्तराखंड वासियों का भी कम योगदान नहीं है, इन्हीं में से एक हैं राम सिंह धौनी। राष्ट्रीय आंदोलन के प्रमुख नारों में से एक जय हिंद नारे का उदघोष इन्हीं के द्वारा किया गया था। साथ की पहाड़ के लोगों को राष्ट्रीय आंदोलन के लिए प्रेरित करने और जागरूक करने का श्रेय भी इन्हीं को जाता है 24 फरवरी 1893 को जन्मे राम सिंह धोनी का जन्म अल्मोड़ा के जैंती तहसील में स्थित तल्ला बिनौला गाँव में हुआ था। राम सिंह धौनी बचपन में पढ़ने लिखने में काफी अच्छे थे। 1911 में इन्होंने मिडिल परीक्षा पास की। जिसमें ये प्रथम श्रेणी से पास हुए। 1919 धौनी जी ने इलाहाबाद से स्नातक की डिग्री हासिल की। एक बार इनके पास कुमाऊं कमिश्नरी से तहसीलदार बनाने का प्रस्ताव भी आया, लेकिन इन्होंने यह प्रस्ताव ठुकरा दिया और राष्ट्रीय आंदोलन में कूद गए। इसके बाद ये होमरूल लीग से जुड़े और राष्ट्रीय आंदोलन में अपना सहयोग देने लगे।
1920 में ये राजस्थान गए और वहां के सूरतगढ़ स्कूल में बच्चों को पढ़ाने लगे। इसी समय इन्होंने जय हिन्द नारा भी दिया ये अपनी बोलचाल में सबसे पहले इसी का इस्तेमाल करते थेण्तत्पश्चात धौनी जी फतेहपुर पहुंचे और वहां कांग्रेस की एक कमेटी गठित की और फतेहपुर में ही इन्होंने अपनी साप्ताहिक पत्रिका बंधु का प्रकाशन किया। इसके बाद राम सिंह धौनी अपनी जन्मभूमि पहुंचे और अल्मोड़ा में इन्होंने शक्ति साप्ताहिक के संपादन का भी कार्य किया। साथ ही अल्मोड़ा जिला परिषद के अध्यक्ष भी रहे।
सालम में राम सिंह धौनी जी ने कताई बुनाई केंद्र और एक पुस्तकालय का भी शुभारंभ कियाण्ये पैदल चलकर युवाओं को और अपने गांव के लोगों को आजादी के लिए जागरूक करने लगे। इसके बाद 1930 में धौनी जी मुंबई गए और वहां फैले चेचक रोग से पीड़ित लोगों की मदद करने लगे, लेकिन वह खुद भी इस रोग की चपेट में आ गए और 12 नवंबर 1930 को इनका देहांत हो गया। इनकी मृत्यु के बाद 1935 में जैंती में इनके नाम से एक आश्रम कि स्थापना की, जो कि आज रखरखाव ना होने के कारण आज जीर्ण शीर्ण हालत में है। ये हैं उत्तराखंड के महान स्वतंत्रता सेनानी राम सिंह धौनी जो गांव के लोगों में स्वतंत्रता पाने की जागरूकता लाए। पहाड़ी क्षेत्र के लोगों को जागरूक करने का कार्य किया और समाज के हित में अनेक कार्य किए उन्होंने 1921 में सर्वप्रथम जयहिंद का उद्बोधन किया। वह साथियों को आजादी के आंदोलन में भाग लेने के लिए सदैव प्रेरित करते रहे और इसके लिए जिसे भी पत्र लिखते, तो उसमें सबसे ऊपर जय¨हद अवश्य लिखते थे।
उनकी कुशाग्र बुद्धि को देखते हुए उन्हें ब्रिटिश सरकार तत्कालीन समय में नायब तहसीलदार बनाना चाहती थी, लेकिन उन्होंने सरकारी पद को ठुकरा दिया। इसके बाद राम सिंह धौनी जयपुर में एक विद्यालय में प्रधानाध्यापक बने। भारत माता को आजाद देखने का सपना साकार करने के लिए उन्हें नौकरी रास नहीं आयी और वह वापस अल्मोड़ा लौट आए। उन्होंने उस दौर में जिले के सालम क्षेत्र समेत अन्य विभिन्न क्षेत्रों में जाकर युवाओं में देश प्रेम की अलख जगाई। नवयुवकों में देश की आजादी के लिए जोश भरा।