डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला
सेमल के पेड़ को साइलेंट डाक्टर कहा जाए तो अनुचित नहीं होगा। इसके फूल,
फल, छाल आदि कई बीमारियों से निजात दिलाने में कारगर होते हैं। सेमल
महिलाओं के लिए तो किसी वरदान से कम नहीं होता है। इसके पत्ते रक्तशोधन
का बेहतर जरिया होते हैं, जबकि जड़ को ल्यूकोरिया की बेहतर औषधि माना
गया है। सेमल के पेड़ को न सिर्फ वनस्पति जगत में महत्वपूर्ण माना गया है
बल्कि इसके सांस्कृतिक और सामाजिक महत्व को भी खूब इज्जत बख्शी गई है।
जिन कुछ पेड़ों में हिंदू, धर्मशास्त्रों के मुताबिक देवताओं का वास होता है, उसमें
यह पवित्र सेमल का पेड़ भी शामिल है। इसका रिश्ता मालवेशी परिवार से है
और इसका वैज्ञानिक नाम बॉम्वैक्स सेइबा है। अंग्रेजी में इसे कॉटन ट्री के साथ
मालाबार कॉटन ट्री या रेड सिल्क कॉटन के नाम से भी जाना जाता है। आमतौर
पर इस पेड़ की ऊंचाई 30 से 50 मीटर तक होती है, लेकिन कुछ पेड़ों की ऊंचाई
50 मीटर से भी ऊपर पायी गई है।सेमल की पत्तियां छह से सात के समूह में
होती हैं और बेहद स्वस्थ और हरी होती हैं। इसलिए इसकी पत्तियां पतझड़ में
गिरने के पहले घनी छाया देती हैं। इसमें लाल रंग के फूल खिलते हैं और इन
फूलों में फल भी लगते हैं, जो छोटे केले के आकार के होते हैं। ये फल शुरु में हरे
और फिर भूरे या काले होने लगते हैं। सेमल का कई दूसरे पेड़ों की तरह हर
हिस्सा इंसान के लिए बहुत उपयोगी है। आयुर्वेद में सेमल बहुत महत्वपूर्ण पेड़ है।
क्योंकि इसमें सैकड़ों औषधीय प्रॉपर्टी पायी जाती हैं। सेमल में एस्ट्रिंजेंट कंपाउंड
होता है, जिससे त्वचा में कसावट आ जाती है। शरीर को चुस्ती फुर्ती देने के लिए
इसमें स्टीमुलेंट का गुण होता है। सेमल में कामोत्तेजना बढ़ाने वाला ऐफ्रडिजी
एक गुण होता है और अपने एंटीइंफ्लेमेटरी प्रभाव के कारण यह सूजन कम
करता है। इसके सेवन से शरीर का दर्द कम होता है और रक्तचाप में कमी होती
है। यह शुगर को भी नियंत्रित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। जिन
महिलाओं का सही से मासिक धर्म न होता हो, उनके लिए सेमल के फल का
सेवन लाभदायक होता है। सेमल की जड़ों का सेवन करके दूध पिलाने वाली मांएं
अपने दूध में इजाफा सदियों से करती रही हैं। इसके फूल से लेकर इसकी पत्तियां
और उन पत्तियों का रस त्वचा के लिए फायदेमंद होता है। इससे झुर्रियां कम
होती हैं, कील मुहांसों की समस्या से भी छुटकारा मिलताहै। सेमल का पेड़ पूरे
भारत में पाया जाता है। बहुत ऊंचे पहाड़ों में यह नहीं मिलता। सेमल एक
ऊष्णकटिबंधीय वृक्ष है, जिसमें ऊपर की ओर मजबूत तना होता है। यह बसंत के
मौसम में फूलता है और मई, जून में इसके फल पक जाते हैं या कहें उनसे
निकलने वाली रूई पक जाती है। सेमल के पेड़ में बड़े-बड़े और मोटे तथा बहुत
तीक्ष्ण कांटे भी होते हैं, जो एक समय तक इसकी सुरक्षा में मददगार होते हैं,
लेकिन बाद में इनका सुरक्षा के लिहाज से कोई अर्थ नहीं रह जाता। पूरी दुनिया
में सेमल की गिनती सुंदर वृक्षों में होती है। भारत के अलावा यह ऑस्ट्रेलिया,
हांगकांग, अफ्रीका और हवाई द्वीप में भी पाया जाता है। घनी पत्तियों का स्वामी
यह पर्णपाती पेड़ अपने पुंकेसरों की संख्या और रचना के कारण सेविंग ब्रश भी
कहलाता है। आम किसानों और आदिवासी समाज के लोगों के लिए सेमल का
पेड़ रोज़गार का भी अच्छा खासा जरिया है। एक ठीक ठाक आकार का सेमल का
पेड़ साल में 30 से 50 हजार रुपये तक की कमायी का जरिया हो सकता है।
क्योंकि इसके फूल बिकते हैं, इसके फल सब्जी के लिए बिकते हैं, इसके फल के
रेशों से बनने वाली रूई बहुत महंगी और पवित्र समझी जाती है। मध्य प्रदेश,
छत्तीसगढ़ और उत्तराखंड में भी इसने लाखों लोगों को रोज़गार दिया है। सेमल
के पेड़ को न सिर्फ वनस्पति जगत में महत्वपूर्ण माना गया है बल्कि इसके
सांस्कृतिक और सामाजिक महत्व को भी खूब इज्जत बख्शी गई है। जिन कुछ
पेड़ों में हिंदू, धर्मशास्त्रों के मुताबिक देवताओं का वास होता है, उसमें यह पवित्र
सेमल का पेड़ भी शामिल है। इसका रिश्ता मालवेशी परिवार से है और इसका
वैज्ञानिक नाम बॉम्वैक्स सेइबा है। अंग्रेजी में इसे कॉटन ट्री के साथ मालाबार
कॉटन ट्री या रेड सिल्क कॉटन के नाम से भी जाना जाता है। आमतौर पर इस
पेड़ की ऊंचाई 30 से 50 मीटर तक होती है, लेकिन कुछ पेड़ों की ऊंचाई 50
मीटर से भी ऊपर पायी गई है।सेमल की पत्तियां छह से सात के समूह में होती हैं
और बेहद स्वस्थ और हरी होती हैं। इसलिए इसकी पत्तियां पतझड़ में गिरने के
पहले घनी छाया देती हैं। इसमें लाल रंग के फूल खिलते हैं और इन फूलों में फल
भी लगते हैं, जो छोटे केले के आकार के होते हैं। ये फल शुरु में हरे और फिर भूरे
या काले होने लगते हैं। सेमल का कई दूसरे पेड़ों की तरह हर हिस्सा इंसान के
लिए बहुत उपयोगी है। आयुर्वेद में सेमल बहुत महत्वपूर्ण पेड़ है। क्योंकि इसमें
सैकड़ों औषधीय प्रॉपर्टी पायी जाती हैं। सेमल में एस्ट्रिंजेंट कंपाउंड होता है,
जिससे त्वचा में कसावट आ जाती है। शरीर को चुस्ती फुर्ती देने के लिए इसमें
स्टीमुलेंट का गुण होता है। सेमल में कामोत्तेजना बढ़ाने वाला ऐफ्रडिजी एक गुण
होता है और अपने एंटीइंफ्लेमेटरी प्रभाव के कारण यह सूजन कम करता है।
इसके सेवन से शरीर का दर्द कम होता है और रक्तचाप में कमी होती है। यह
शुगर को भी नियंत्रित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। जिन महिलाओं का
सही से मासिक धर्म न होता हो, उनके लिए सेमल के फल का सेवन लाभदायक
होता है। सेमल की जड़ों का सेवन करके दूध पिलाने वाली मांएं अपने दूध में
इजाफा सदियों से करती रही हैं। इसके फूल से लेकर इसकी पत्तियां और उन
पत्तियों का रस त्वचा के लिए फायदेमंद होता है। इससे झुर्रियां कम होती हैं,
कील मुहांसों की समस्या से भी छुटकारा मिलताहै। सेमल का पेड़ पूरे भारत में
पाया जाता है। बहुत ऊंचे पहाड़ों में यह नहीं मिलता। सेमल एक ऊष्णकटिबंधीय
वृक्ष है, जिसमें ऊपर की ओर मजबूत तना होता है। यह बसंत के मौसम में फूलता
है और मई, जून में इसके फल पक जाते हैं या कहें उनसे निकलने वाली रूई पक
जाती है। सेमल के पेड़ में बड़े-बड़े और मोटे तथा बहुत तीक्ष्ण कांटे भी होते हैं,
जो एक समय तक इसकी सुरक्षा में मददगार होते हैं, लेकिन बाद में इनका
सुरक्षा के लिहाज से कोई अर्थ नहीं रह जाता। पूरी दुनिया में सेमल की गिनती
सुंदर वृक्षों में होती है। भारत के अलावा यह ऑस्ट्रेलिया, हांगकांग, अफ्रीका और
हवाई द्वीप में भी पाया जाता है। घनी पत्तियों का स्वामी यह पर्णपाती पेड़ अपने
पुंकेसरों की संख्या और रचना के कारण सेविंग ब्रश भी कहलाता है।
आम किसानों और आदिवासी समाज के लोगों के लिए सेमल का पेड़ रोज़गार का
भी अच्छा खासा जरिया है। एक ठीक ठाक आकार का सेमल का पेड़ साल में 30
से 50 हजार रुपये तक की कमायी का जरिया हो सकता है। क्योंकि इसके फूल
बिकते हैं, इसके फल सब्जी के लिए बिकते हैं, इसके फल के रेशों से बनने वाली
रूई बहुत महंगी और पवित्र समझी जाती है। मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और
उत्तराखंड में भी इसने लाखों लोगों को रोज़गार दिया है। सेमल के पेड़ को न
सिर्फ वनस्पति जगत में महत्वपूर्ण माना गया है बल्कि इसके सांस्कृतिक और
सामाजिक महत्व को भी खूब इज्जत बख्शी गई है। जिन कुछ पेड़ों में हिंदू,
धर्मशास्त्रों के मुताबिक देवताओं का वास होता है, उसमें यह पवित्र सेमल का पेड़
भी शामिल है। इसका रिश्ता मालवेशी परिवार से है और इसका वैज्ञानिक नाम
बॉम्वैक्स सेइबा है। अंग्रेजी में इसे कॉटन ट्री के साथ मालाबार कॉटन ट्री या रेड
सिल्क कॉटन के नाम से भी जाना जाता है। आमतौर पर इस पेड़ की ऊंचाई 30
से 50 मीटर तक होती है, लेकिन कुछ पेड़ों की ऊंचाई 50 मीटर से भी ऊपर
पायी गई है।
सेमल की पत्तियां छह से सात के समूह में होती हैं और बेहद स्वस्थ और हरी
होती हैं। इसलिए इसकी पत्तियां पतझड़ में गिरने के पहले घनी छाया देती हैं।
इसमें लाल रंग के फूल खिलते हैं और इन फूलों में फल भी लगते हैं, जो छोटे केले
के आकार के होते हैं। ये फल शुरु में हरे और फिर भूरे या काले होने लगते हैं।
सेमल का कई दूसरे पेड़ों की तरह हर हिस्सा इंसान के लिए बहुत उपयोगी है।
आयुर्वेद में सेमल बहुत महत्वपूर्ण पेड़ है। क्योंकि इसमें सैकड़ों औषधीय प्रॉपर्टी
पायी जाती हैं। सेमल में एस्ट्रिंजेंट कंपाउंड होता है, जिससे त्वचा में कसावट आ
जाती है। शरीर को चुस्ती फुर्ती देने के लिए इसमें स्टीमुलेंट का गुण होता है।
सेमल में कामोत्तेजना बढ़ाने वाला ऐफ्रडिजी एक गुण होता है और अपने
एंटीइंफ्लेमेटरी प्रभाव के कारण यह सूजन कम करता है। इसके सेवन से शरीर
का दर्द कम होता है और रक्तचाप में कमी होती है। यह शुगर को भी नियंत्रित
करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। जिन महिलाओं का सही से मासिक धर्म
न होता हो, उनके लिए सेमल के फल का सेवन लाभदायक होता है। सेमल की
जड़ों का सेवन करके दूध पिलाने वाली मांएं अपने दूध में इजाफा सदियों से
करती रही हैं। इसके फूल से लेकर इसकी पत्तियां और उन पत्तियों का रस त्वचा
के लिए फायदेमंद होता है। इससे झुर्रियां कम होती हैं, कील मुहांसों की समस्या
से भी छुटकारा मिलताहै। सेमल का पेड़ पूरे भारत में पाया जाता है। बहुत ऊंचे
पहाड़ों में यह नहीं मिलता। सेमल एक ऊष्णकटिबंधीय वृक्ष है, जिसमें ऊपर की
ओर मजबूत तना होता है। यह बसंत के मौसम में फूलता है और मई, जून में
इसके फल पक जाते हैं या कहें उनसे निकलने वाली रूई पक जाती है। सेमल के
पेड़ में बड़े-बड़े और मोटे तथा बहुत तीक्ष्ण कांटे भी होते हैं, जो एक समय तक
इसकी सुरक्षा में मददगार होते हैं, लेकिन बाद में इनका सुरक्षा के लिहाज से कोई
अर्थ नहीं रह जाता। पूरी दुनिया में सेमल की गिनती सुंदर वृक्षों में होती है।
भारत के अलावा यह ऑस्ट्रेलिया, हांगकांग, अफ्रीका और हवाई द्वीप में भी पाया
जाता है। घनी पत्तियों का स्वामी यह पर्णपाती पेड़ अपने पुंकेसरों की संख्या और
रचना के कारण सेविंग ब्रश भी कहलाता है।
आम किसानों और आदिवासी समाज के लोगों के लिए सेमल का पेड़ रोज़गार का
भी अच्छा खासा जरिया है। एक ठीक ठाक आकार का सेमल का पेड़ साल में 30
से 50 हजार रुपये तक की कमायी का जरिया हो सकता है। क्योंकि इसके फूल
बिकते हैं, इसके फल सब्जी के लिए बिकते हैं, इसके फल के रेशों से बनने वाली
रूई बहुत महंगी और पवित्र समझी जाती है। मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और
उत्तराखंड में भी इसने लाखों लोगों को रोज़गार दिया है। उत्तराखंड के पर्वतीय
क्षेत्रों में सेमल आय का जरिया बन गया है। ग्रामीण सेमल से एक सीजन में
30 से 40 हजार रुपये तक कमा लेते हैं। सेमल की सब्जी व अचार बनाया
जाता है, जिस कारण यह बाजार में आसानी से बिक जाता है। आयुर्वेदिक
औषधि निर्माता भी इसे खरीदते हैं। इससे निकलने वाली रूई भी कपास का
एक अच्छा विकल्प है जिस वजह से इसे ’कॉटन ट्री’ भी कहा जाता है। इसके
फेब्रिक पर यू0एस0 पेटेंट भी किये गये है। यह कपास का एक अच्छा विकल्प
होने के कारण वर्तमान में अमेरिकी देशों में इसका उत्पाद भी किया जाने लगा
है। इसके एक टन रूई की कीमत 750 से 950 यू0एस0 डालर है जबकि कपास
की कीमत लगभग 1,600 से 1,850 यू0एस0 डालर प्रति टन तक है।जर्नल में
प्रकाशित एक शोध के अनुसार सेमल फूल के पेट्रोलियम तथा डाईइथाइल ईथर
एक्सट्रेक्ट में अच्छी एंटी-प्रोलिफेरेटिव एक्टिविटी पायी गयी तथा साथ ही दोनों
एक्सट्रेक्ट अच्छे एंटीऑक्सीडेंट पाये गये। विभिन्न प्रकाशित शोधपत्रों के अनुसार
इसमें अनेकों एल्केलोइड्स, टेनिक्स, सेपोनिन्स, ग्लाइकोसाइड्स, स्टेरोइड्स,
फ्लेवोनोइड्स तथा फीनॉल्स पाये जाते है। विभिन्न परम्परागत औषधीय गुणों के
अलावा इसमें ब्लड प्यूरिफिकेशन, ल्यूकोरिहया उपचार तथा विभिन्न स्त्री रोगों
को ठीक करने की भी क्षमता पायी गयी है।सामान्यतःइसको सब्जी तथा अचार
के रूप में प्रयोग किया जाता है लेकिन इसकी पोष्टिकता को देखते हुए इसे
पशुचारे के रूप में भी अच्छा उपयोग में लाया जाता है। इसमें प्रोटीन-1.56
प्रतिशत, फाइबर-15.95 प्रतिशत, वसा-1.30 प्रतिशत, कार्बोहाइड्रेट-6.80
प्रतिशत, कैल्शियम-2.85 प्रतिशत, मैग्नीशियम-3.65 प्रतिशत, पोटेशियम-1.05
प्रतिशत तथा फास्फोरस-0.8. प्रतिशत तक पाया जाता है।सेमल के पोषक तथा
औषधीय होने के साथ-साथ पर्यावरण की दृष्टि से काभी महत्वपूर्ण है, इसमें
सल्फर डाइऑक्साइड को अवशोषित करने की प्रबल क्षमता होती है जिस वजह
से इसे रोड के किनारे तथा औद्योगिक क्षेत्रों में लगाया जाता है।उत्तराखण्ड में
स्वतः उगने वाले सेमल वृक्ष की उपयोगिताओं को देखते हुए इसके अधिक से
अधिक रोपण की आवश्यकता है जिससे इसके फार्मा तथा फेब्रिक उद्योगों में कच्चे
माल के रूप में होने वाली आवश्यकता को प्रदेश से पूरा किया जा सके तथा
दुनिया पर जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों को कम करने में प्रदेश का अहम
योगदान दिया जा सके। दिलचस्प तथ्य यह है कि सेमल का उपयोग लोग
पहले तो करते थे, लेकिन उस समय इसे व्यावसायिक रूप में प्रयोग नहीं
किया जाता था। सेमल से कुछ समय के लिए लोगों को रोजगार भी मिल
जाता है। इसके फूल बाज़ार में 15 से 20 रुपये कि.ग्रा. तक बिकते हैं। इसके
अतिरिक्त फल भी 10 से 15 रुपये और बीज तो 50 से 70 रुपये कि.ग्रा.
तक आसानी से बेचे जा सकते हैं। सेमल वृक्ष से व्यवसाय करने वाले लोग
एक सीजन में तीस से चालीस हज़ार रुपया तक कमा लेते हैं। सेमल केवल
सब्जी तक सीमित नहीं है, उसका औषधीय उपयोग भी है, जिस कारण
इसकी बड़े बाज़ारों में भारी माँग है!. *लेखक विज्ञान व तकनीकी विषयों के*
*जानकार दून विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं।*












