डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला
उत्तराखण्ड मुक्त विश्वविद्यालय हल्द्वानी में प्रो. नवीन चंद्र लोहनी को कुलपति के पद पर नियुक्त किया गया है। उत्तराखण्ड के बागेश्वर निवासी प्रो. नवीन चंद्र लोहनी कई महत्वपूर्ण जिम्मेदारियों का निर्वहन कर चुके हैं। प्रोफेसर लोहनी मूल रूप से उत्तराखंड के बागेश्वर जिले के पचार गांव के रहने वाले हैं. वह स्विट्जरलैंड के मशहूर विश्वविद्यालय में विजिटिंग प्रोफेसर भी रह चुके हैं. साथ ही यूनिवर्सिटी शंघाई में भी विजिटिंग प्रोफेसर रह चुके हैं. प्रोफेसर लोहनी को चीनी साहित्य की भी गहरी समझ है. शिक्षा जगत में प्रो. लोहनी को शैक्षिक प्रशासक के रूप में जाना जाता है. उन्होंने 12 पुस्तकें प्रकाशित करने के साथ कई शोध पत्र और आलेख भी लिखे हैं। हाल ही में उन्हें अंतरराष्ट्रीय प्रेमचंद आलोचना सम्मान तथा उत्तर प्रदेश भाषा संस्थान द्वारा शब्द शिल्पी सम्मान से अलंकृत किया गया है। प्रो. लोहनी द्वारा हिंदी की अंतरराष्ट्रीय उपस्थिति तथा शैक्षणिक कार्यक्रम को आगे बढ़ाने के लिए चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय मेरठ में प्रवासी साहित्य पाठ्यक्रम के रूप में 2009-10 से प्रारंभ किया गया। उनके द्वारा स्थानीय भाषा एवं साहित्य को महत्व देने के लिए विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के सहयोग से वृहद शोध परियोजनाओं शोध कार्य संपन्न किए गए। वह विदेश मंत्रालय द्वारा आयोजित विश्व हिंदी सम्मेलनों में न्यूयॉर्क, जोहानसवर्ग, भोपाल तथा मारीशस एवं फीजी में प्रतिभागी रहे हैं तथा ब्रिटेन, स्विट्ज़रलैंड, हंगरी, स्पेन, अमेरिका, चीन, दक्षिण अफ्रीका सहित विश्व के अनेक देशों में संगोष्ठी, कार्यशालाओं में प्रतिभागिता कर चुके हैं। बेल्जियम, फ्रांस, ऑस्ट्रिया, स्पेन, ऑस्ट्रेलिया, मलेशिया, इंडोनेशिया सहित कई देशों की यात्राएं भी कर चुके हैं। रेडियो, टेलीविज़न और मुद्रित सोशल मीडिया,जनसंचार माध्यमों में भी लंबे समय से निरंतर सक्रिय हैं। प्रो. लोहनी द्वारा चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय मेरठ में प्रवासी साहित्य पाठ्यक्रम के रूप में 2009-10 से प्रारंभ किया गया। प्रो. लोहनी द्वारा चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय मेरठ में कौरवी लोक साहित्य पाठ्यक्रम के रूप में 2008-09 से प्रारंभ किया गया। अन्तरराष्ट्रीय एवं राष्ट्रीय स्तर पर हिंदी प्रचार के लिए सक्रिय हैं। प्रोफेसर लोहनी के 80 से अधिक शोध पत्र तथा 12 पुस्तकें प्रकाशित हैं । व्यंग्य, कहानी लेखन एवं समीक्षात्मक लेखन में महत्वपूर्ण कार्य है।भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद द्वारा शंघाई अंतरराष्ट्रीय अध्ययन विश्वविद्यालय चीन में आईसीसीआर चेयर और स्विट्जरलैंड के लौजान विश्वविद्यालय में गुरुदेव रविंद्र नाथ टैगोर चेयर पर विजिटिंग प्रोफेसर के रूप में नियुक्त किया गया । चीन में “हिंदी इन चाईना” नामक समूह बनाकर और चीन में पहली हिंदी पत्रिका “समन्वय हिंची” प्रकाशन कार्य किया,जो चीन में और भारत ही नहीं वैश्विक स्तर पर लोकप्रिय हुईं। सिसु द्वारा प्रकाशित हिंदी-चीनी-अंग्रेजी शब्दकोश संपादन मंडल के सदस्य हैं। चीन तथा स्विट्जरलैंड में भी उन्होंने इन माध्यमों का प्रयोग भारतीय शिक्षा, संस्कृति और भाषा प्रचार में किया है। प्रो• लोहनी के निर्देशन में 26 विद्यार्थियों ने पीएच.डी. उपाधि प्राप्त की है और 99 से अधिक विद्यार्थी एम. फिल. उपाधि प्राप्त कर चुके हैं। विदेश मंत्रालय द्वारा आयोजित विश्व हिंदी सम्मेलनों में न्यूयॉर्क, जोहान्सवर्ग, भोपाल तथा मारीशस, फिजी में प्रतिभागी रहे हैं तथा ब्रिटेन, स्विट्ज़रलैंड, हंगरी, स्पेन, अमेरिका ,चीन, दक्षिण अफ्रीका सहित विश्व के अनेक देशों में संगोष्ठी, कार्यशालाओं में प्रतिभागिता कर चुके हैं। बेल्जियम, फ्रांस, ऑस्ट्रिया, स्पेन, ऑस्ट्रेलिया, मलेशिया, इंडोनेशिया सहित कई देशों की यात्राएं भी कर चुके हैं । अंतरराष्ट्रीय अध्ययन विश्वविद्यालय के एक प्रोग्राम के तहत विजिटिंग प्रोफेसर के पद पर चीन में दो साल सेवा देने के बाद भारत लौटे प्रोफेसर नवीन चन्द्र लोहनी ने चीन की रणनीति का खुलासा किया. प्रो. लोहनी ने बताया कि चीन हिंदी को लेकर अब सजग होने लगा है. मौजूदा समय में चीन के 15 विश्वविद्यालयों में हिंदी पढ़ाई जा रही है. एक यूनिवर्सिटी में हिंदी पर शोध पाठ्यक्रम भी चलाया जा रहा है. उन्होंने बताया कि ये सब महज पिछले पांच सालों में हुआ है. प्रो. लोहनी ने बताया कि हिंदी और संस्कृत को लेकर चीन में रोजगार के अवसर भी तैयार किये जा रहे हैं. मीडिया से लेकर सामान्य व्यापारिक नौकरियों में अनुवादकों के लिये रोजगारपरक संभावनाओं को विकसित किया जा रहा है. चीन का मकसद व्यापार में अधिक से अधिक हिंदी बोली और भाषा के अनुवादकों की नियुक्ति करना है. व्यापारिक तौर पर चीन का मानना है कि पाकिस्तान, नेपाल, बांग्लादेश, अरब और एशियाई देशों में भारतीय लोगों की अच्छी खासी संख्या में हैं. इसके अलावा चीन भारत को एक बड़े बाजार के तौर पर भी देखता है. जिसके कारण चीन ने ये फैसला लिया है. अपने दो साल के अनुभव को साझा करते हुये प्रो. लोहनी ने बताया कि चीन सभी देशों में अपने व्यापारिक प्रतिष्ठान खोलकर वहां एक हिंदी भाषा कर्मचारी की तैनाती की योजना तैयार कर रहा है ताकि उसे एक बड़ा बाजार मिल सके. प्रोफेसर नवीन चंद्र लोहनी ने बताया कि अभी हिंदी को लेकर सरकारी नौकरी में स्थान उस प्रकार नहीं मिलता. जिस प्रकार स्थान मिलना चाहिए.इसी वजह से युवा हिंदी के तरफ कम रुख करतें हैं. अगर सभी सरकारी नौकरियों में हिंदी को प्रमुखता दी जाए तो बदलाव की प्रबल संभावना है. प्रोफेसर नवीन चंद्र लोहनी ने हिंदी को आगे ले जाने में महत्वपूर्ण प्रयास किए हैं। विदेशी विश्वविद्यालय से एमओयू किए जाने चाहिए। जिससे छात्र-छात्राओं को आपसी मेल मिलाप का लाभ मिलेगा। विश्वविद्यालय 10 विद्यार्थियों को विदेश में शिक्षा प्राप्ति के लिए छात्रवृत्ति प्रदान कर रहा है। हमें इसका लाभ लेना चाहिए। प्रोफेसर संजीव कुमार शर्मा ने कहा कि विश्वविद्यालय में ऐसे पाठ्यक्रम चलाए जा रहे हैं जिनसे प्रवासी साहित्य का अध्ययन हो रहा है। प्रवासी साहित्य पर दो राष्ट्रीय पुरस्कार भी प्रदान किए जाते हैं। संगोष्ठियां विद्यार्थियों, शोधार्थियों, शिक्षकों के आपसी मेल मिलाप को मंच प्रदान करती है और अध्ययन अध्यापन को उच्च आयाम प्रदान करती है। इस नियुक्ति के साथ ही विश्वविद्यालय को एक अनुभवी शैक्षिक नेतृत्व मिलने की उम्मीद है, जो गुणवत्तापरक उच्च शिक्षा और नवाचार को गति देगा। हिंदी पूरे भारत की भाषा है। करीब 200 देशों में हिंदी पढ़ाई जा रही है। उन्हें बधाई एवं शुभकामनाएं *लेखक विज्ञान व तकनीकी विषयों के जानकार दून विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं।*