रिपोर्ट: हरेंद्र बिष्ट
थराली। जहां एक ओर राज्य में बहने वाली सभी नदियां बरसात का जोर समाप्त होने के बाद निर्मल एवं स्वच्छ हो कर बहने लगी हैं, वही दूसरी ओर पिछले वर्ष की तरह ही इस बार भी पिंडर नदी बेहद मटमैली ही बह रही हैं। पिंडर इस कदर मटमैली बह रही हैं, कि वह कर्णप्रयाग से लेकर ऋषिकेश तक अन्य नदियों को भी मटमैली किए हुए हैं।
पिछले वर्ष को याद करें तो पिंडर नदी नवंबर तक बेहद गदली बह रही थी। जबकि राज्य की अन्य नदियां बरसात समाप्त होने के बाद से साफ हो कर नीला रूप ले चुकी थी। इस वर्ष भी कमोवेश राज्य की अन्य सभी नदियां साफ एवं निर्मल होने लगी हैं। किंतु पिंडर नदी का पानी अब भी मटमैला, गदला बह रहा हैं। जिससे इस नदी में विचरण करने वाले सैकड़ों जलीय जीवों के जीवन पर विपरीत प्रभाव पड़ना तय माना जा रहा हैं। यही नही पिंडर नदी कर्णप्रयाग से आगे अलकनंदा एवं देवप्रयाग से आगे ऋषिकेश तक गंगा नदी को भी मटमैली किए हुए हैं। इसका सीधा दुष्प्रभाव जलीय जीवों के साथ ही मानव जाति पर भी पड़ना तय माना जा रहा हैं। थराली के चिड़गा से लेकर ऋषिकेश तक इस नदी पर की पंपिंग योजनाएं बनी हुई हैं। जोकि पानी के स्रोतों से विहीन कस्बों,शहरों को पानी की आपूर्ति करतें हैं। नदी में मटमैला पानी बहने से पंपों से भी आवादी क्षेत्रों को भी साफ पानी नही पहुंच रहा है। अब जबकि बारिश कम होने लगी हैं तों कस्बों व शहरों के आसपास बरसाती स्रोत सूखने तय मानें जा रहें हैं ऐसे में पंपों से भी गंदले पानी की सप्लाई होने से लोगों के सामने पानी का संकट गहरा सकता हैं।पिंडर कब तक साफ होगी कोई भी कुछ कहने की स्थिति में नही हैं।बागेश्वर जिले के अंतिम गांव कुंवारी की ग्राम प्रधान धर्मा देवी दानू ने बताया कि पिंडर नदी अपने उद्गम स्थल पिंडारी से ही मटमैली नही बह रही हैं। बल्कि वह कुंवारी गांव से आगे मटमैली हो कर आगे बढ़ रही हैं। दरअसल 2013 की आपदा के बाद से करीब 85 परिवारों का गांव कुंवारी जो कि पिंडर नदी के ऊपर एक पहाड़ी पर बसा हुआ हैं, उसके के नीचे लंबे समय से भूस्खलन, भूकटाव एवं भू-धंसाव हो रहा हैं। सरकार के द्वारा भूस्खलन पीड़ितों को गांव के पास ही बसा दिया गया हैं। बताया कि पिछले वर्ष से इस गांव पर संकट गहराता जा रहा हैं। यहां पर अब 90 प्रतिशत से अधिक मकान एवं जमीन मलुवे में तब्दील हो कर पिंडर नदी में बह चुकी हैं। बताया कि गांव के जलस्रोत के साथ मलुवा बह कर पिंडर में समाता जा रहा हैं। इसी से पिंडर नदी मटमैली हो कर बह रही हैं।पिंडर नदी में वर्षों से मछलियां पकड़ने वाले मछुआरों का कहना है कि पिछले वर्षों से नदी में मछलियों की संख्या काफी घट गई हैं। पहले जहां कुछ ही घंटों में दो से तीन किलो मछली पकड़ में आ जाती थी वही घंटों मेहनत करने पर एक किलो भी मछली नही मिल पाती है।इसका बड़ा कारण नदी का लंबे समय तक मटमैला होना माना जा रहा हैं।