रिपोर्ट:हरेंद्र बिष्ट
थराली। आज गुरूवार को बधाण की मां राजराजेश्वरी नंदादेवी की वांण स्थिति लाटूधाम में बहिन,भाई का भावपूर्ण मिलाप होगा। भाई लाटू एवं बहिन नंदा की इस भेट के साक्षी बनने के लिए सैकड़ों की संख्या में नंद एवं लाटू भक्त वांण गांव पहुंच चुके हैं। लाटूधाम वांण प्रतिवर्ष आयोजित होने वाले लोकजात यात्रा एवं 12 वर्षों में होने वाली राजजात यात्रा का अंतिम आवादी वाला पड़ाव हैं। यहां से आगे के पड़ावों के लिए श्रद्धालुओं एवं यात्रियों को पैदल ही आगे की यात्रा करनी पड़ती हैं।नंदा सिद्वपीठ कुरूड से चली श्री नंदादेवी राजराजेश्वरी लोकजात राजजात यात्रा बुधवार को अपने 11पड़ाव मंदोली को छोड़ लाटूधाम वांण जोकि यात्रा का 12 वां है पहुंच गई हैं। वांण में ही लाटू देवता जिसे कि नंदा भगवती का मुख्यगण अथवा मुंह बोला भाई माना जाता हैं। का प्रसिद्ध मंदिर स्थापित हैं।हर साल नंदा की कैलाश यात्रा के दौरान नंदा की उत्सव डोली यहां पर रूकती हैं।और नंदा लाटू की भेट होती हैं। भाई,बहिन जब आपस में एक वर्ष बाद मिलते हैं तों उनके भेटाभाटी का दृश्य किसी को भी भावविभोर कर रख देता है। यहां पर अन्य देवी देवताओं के अलावा नंदा भगवती एवं लाटू देवता के पश्वावों जब आपसे में एक दूसरे से भेट करते हैं उस दृश्य को देख कर महिला पुरुषों की आंखें छलछला उठती। यहां का माहौल इस लिए भी और अधिक भावुक हो जाता हैं कि वांण गांव यात्रा का अंतिम आवादी पड़ाव हैं। इसके बाद यात्रा घनघोर जंगल के बीच स्थित गैरोली पातल पहुचती हैं जो कि एक निरजन पड़ाव हैं। लोकजात में दूसरे दिन यात्रा वेदनी बुग्याल पहुंच कर वहां नंदा, शिव, गणेश आदि देवताओं के मंदिरों में जात अर्थात पूजा अर्चना कर नंदा सिद्वपीठ देवराड़ा के लिए लौट पड़ती हैं। किंतु राजजात में यात्रा 6 से 7 निर्जन पड़ावों में चलती रहती हैं। देवी एवं लाटू की पूजा-अर्चना के लिए सैकड़ों की संख्या में श्रद्धालु वांण गांव में डेरा जमा चुके हैं।
रूपकुंड में बिखरे पड़े नरकंकालों की तरह ही ,लाटू का अस्तित्व भी हैं रहस्यमई
लाटू देवता कौन हैं,वे कहां से आए वांण गांव एवं उत्तराखंड की अधिष्ठात्री नंदा से गहरा संबंध क्या हैं आदि कई प्रश्न रूपकुंड क्षेत्र में बिखरे पड़े नरकंकालों के आज तक भी अनसुलझी पहेलियों की ही तरह बनी हुई हैं। लाटू देवता को लेकर कई मान्यताएं प्रचलित है किस पर विश्वास किया जाए काफी मुश्किल है। बावजूद इसके नंदा देवी की ही तरह लाटू भक्तों में अपने देव पर अटूट आस्था बनी हुई हैं। सदियों से लाटू की शक्तियों पर बने लोक देव गीतों में अलग-अलग तरह से गाया जाता हैं।आज भी लाटूधाम वांण में स्थित लाटू मंदिर के आसपास में तों जमकर सौंदर्यीकरण के काम किए जा चुके हैं,और लगातार प्रयास भी चल रहें हैं। किंतु लाटू को आधुनिक एवं भव्य बनाने की किसी ने मांग तक नही उठाई। उठाएं भी तो कैसे।जब इस मंदिर के गर्भगृह में ही पूजा के लिए जाने वाला पूजारी आंखों एवं मुंह पर पट्टी बांध कर करता है। तों फिर इस मंदिर को भव्य रूप दिए जाने की कौन मांग करेगा। हालांकि कल्याणी जिला पंचायत वार्ड के सदस्य एवं वांण गांव के निवासी कृष्णा बिष्ट ने बताया कि लाटू मंदिर के बहारी प्रवेश में कुछ काम किए गए हैं। किंतु मंदिर के अंदरुनी भाग सदियों पूराना जिस रूप में था आज भी उसी रूप में हैं।