रिपोर्ट:हरेंद्र बिष्ट
थराली। सिद्वपीठ कुरूड से शुरू हुई श्री राजराजेश्वरी नंदादेवी की लोकजात यात्रा वेदनी बुग्याल में जात (नंदा भगवती की विशेष पूजा) के बाद 6 माह के नंदा शिद्वपीठ देवराड़ा थराली के लिए लौटने के पहले पड़ाव बांक गांव पहुंच गई हैं।इस मौके बांक गांव के नंदा भक्तों ने यात्रा का भव्य रूप से स्वागत किया।शुक्रवार को तड़के नंदादेवी की लोकजात यात्रा अपने गैरोलीपातल पड़ाव से वेदनी बुग्याल पहुंची जहां पर देव डोली ने निशानो छंतोलियों के साथ वेदनी कुंड की परिक्रमा की इसके बाद नंदा की डोली को यहां पर स्थापित शिव पार्वती मंदिर के चबूतरे पर विराजमान किया गया। यहां पर लाटू नंदा के मुख्य पुजारी कुनियाल जाती के पंडित उमेश चंद्र कुनियाल, रमेश चंद्र कुनियाल ने देवी की जात पुजा शुरू करवाई। इसी दौरान कुरूड मंदिर कमेटी के अध्यक्ष नरेश गौड़, पूर्व अध्यक्ष मंशा राम गौड़, पुजारी राजेश गौड़, योगंबर गौड़, किशोर गौड़, दयाराम गौड़, सुनील गौड़,रिंकू गौड़, लक्ष्मी गौड़, अनसुया प्रसाद गौड़ ने मां नंदा भगवती के झोड़े (देव स्तुति गीत) गायें जिससे कई महिलाओं एवं पुरुषों पर देवी भगवती,लाटू,काली सहित अन्य देवी देवता अवतारित हुए अवतारित पश्वावों ने नाचते हुए देवी भक्तों को आशीर्वाद दिया।इसी दौरान कई भक्तों ने वेदनी कुंड में अपने पितरों के मोक्ष के लिए तर्पण किया।देव पुजारियों ने यात्रा रूट के गांव से प्राप्त नंदा भेटोली की वेदनी में समर्पित कर एक तरह से देवी नंदा को कैलाश के लिए विदा करते हुए उत्सव डोली को वापस ले आएं। वापसी के तहत उत्सव डोली अपने वापसी के पहले पड़ाव बांक गांव पहुंच गई हैं।वेदनी बुग्याल में नंदा भगवती ब्रहम कमल से पूजा अर्चना करने के बाद भक्तों में इसे प्रसाद के रूप में वितरित किया गया।नंदा पुजारी उमेश चन्द्र कुनियाल ने बताया कि मां भगवती एवं भोले शंकर को ब्रहम कमल बेहद पसंद हैं।इसी लिए वेदनी में पूजा के दौरान पुष्प के रूप में ब्रहम कमल का उपयोग कर उसे प्रसादी के रूप में वितरित किया जाता हैं।