देहरादून : उत्तराखंड ने खोया था।ख्याति प्राप्त वैज्ञानिक डॉ.रावल क्षेत्र जैवविविधता उच्च हिमालय परिस्थिति तंत्र में विशेषज्ञ के रूप में कार्य करते रहें। उनके सरल स्वभाव ,बेहतर इंसान सहित अच्छे प्रशासक एवम उत्तराखंड में ग्रामीण विकास हेतु डॉ.रावल कुशल वैज्ञानिक के साथ साथ चहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। डॉ. आरएस रावल की प्राथमिक शिक्षा प्राथमिक विद्यालय गंगोलीहाट और इंटर तक की शिक्षा महाकाली राइंका गंगोलीहाट से हुई । बीएससी उन्होंने राजकीय पीजी कालेज पिथौरागढ़ से की है। बाद में एमएससी और पीएचडी नैनीताल से की । इसके बाद 1993 जीबी पंत हिमालयी एवं सतत विकास संस्थान कोसी कटारमल में वैज्ञानिक पद पर नियुक्त हुए। अपनी लगन और परिश्रम से श्री रावल ने संस्थान में अपना अलग स्थान बनाया। मृदुल व्यवहार के डॉ. रावल आम जन से जुड़े हुए हैं और खुद क्षेत्र में जाकर लोगों को वैज्ञानिक सलाह देते हैं। उनके पिता स्व. दिलीप सिंह रावल प्रधानाचार्य रहे। उनके एक भाई हरेंद्र रावल हाईकोर्ट में वकील तो एक भाई एसएस रावल पिथौरागढ़ में शिक्षा विभाग में प्रशासनिक अधिकारी पद पर तैनात हैं।डा.रावल ने 1984 में कुमाऊं विवि से बीएससी तथा सन 1987 में एमएससी की डिग्री तथा 1991 में पीएचडी भी कुमाऊं विश्वविद्यालय नैनीताल से की थी। यंग साइंटिस्ट रहते हुए वह कोसी कटारमल संस्थान से जुड़े एवं इस महत्वपूर्ण राष्ट्रीय संस्थान के निदेशक पद तक पहुंचे। उनके 151 शोध पत्र प्रकाशित हो चुके हैं। साइंस जैसे जर्नल में भी उनके शोध पत्र प्रकाशित हुए हैं। राष्ट्रीय स्तर पालीनेटर तथा सेक्रेड कैलाश फॉरेस्ट पर शोध कार्य कर चुके हैं। उनकी 10 पुस्तकें भी प्रकाशित हो चुकी है। डॉ रावल जैव विविधता ,उच्च हिमालय पारिस्थितिक तंत्र,संरक्षण शिक्षा तथा पौधों के प्राकृतिक आवास एवं जलवायु परिवर्तन के विशेषज्ञ बने।डॉ रावल इंडियन साइंस कांग्रेस के पर्यावरण शाखा के अध्यक्ष रहे तथा जैव विविधता के ब्रुनइ, भूटान, चीन, इटली, जापान, दक्षिण अफ्रीका, स्पेन आदि देशों की यात्रा की। उन्हें आईसीआरआई आरएफआई प्लेटिनम जुबली अवार्ड के साथ-साथ कई पुरस्कार भी मिले।विश्व खाद्य संस्था द्वारा आयोजित वैश्विक परागण परियोजना में डॉ. रावल प्रतिभाग कर चुके हैं। तेरह देशों की ग्लोबल इंवायरमेंट फेसिलिटी के लिए भी डॉ. रावल का चयन हुआ था। डॉ. आरएस रावल बहुत सम्वेदनशील था। विद्यार्थी काल, पंत संस्थान के वैज्ञानिक और फिर निदेशक के रूप में वह हर बार नये सवालों से रूबरू होता था। रणबीर के 150 से अधिक शोधपत्र तथा 10 किताबें प्रकाशित हुई हैं। उसने दो बड़े बहुअनुशासनी परियोजनाओं को सम्पन्न किया। 19 आरडी प्रोजैक्ट किये। 10 शोधार्थियों का पीएचडी का निर्देशन किया। भारतीय विज्ञान कांग्रेस के पर्यावरण शाखा की अध्यक्षता की तथा दर्जनों राष्ट्रीय तथा अन्तर्राष्ट्रीय संगोष्ठियों में भाग लिया। संस्थान के अलग अलग केन्द्रों (श्रीनगर, मनाली, गैंगटोक, इटानगर और लेह) में इस संस्थान ने हिमालय से जुड़े बिषयों पर शोध कार्य तथा विभिन्न परियोजनायें चला कर एक महत्व का कार्य किया। संस्थान ने हिमालय क्षेत्र के विश्वविद्यालयों तथा अन्यत्र हिमालय पर काम कर रहे वैज्ञानिकों को भी जोड़ा। इसीमोड सहित तमाम अन्तर्राष्ट्रीय संस्थानों से रिश्ता कायम रखा। निदेशक के रूप में अपने छोटे से कार्यकाल में उसने लद्दाख में संस्थान की शाखा खोलने में सफलता प्राप्त की। यह एक बड़ी उपलब्धि थी।पहले जब ए.एन. पुरोहित कटारमल परिसर का प्रारम्भिक कार्यकलाप देखने के साथ संस्थान की रूपरेखा को विकसित कर रहे थे, तो अनेक लोग यह नाउम्मीदी जताने लग गये थे कि इतने अन्तर्वर्ती क्षेत्रों में यह संस्थान या इसकी शाखायें सुचारू काम कर पायेंगी कि नहीं। संस्थान को कहीं और ले जाने का प्रयास भी हुआ। पंत संस्थान को इसके तमाम निदेशक और वैज्ञानिक यहाँ तक ले आये हैं। आगे भी इसको अपनी हिफाजत करनी होगी। यह दो तरह से हो सकता है। अपने तमाम मौलिक काम करते हुये। दूसरे अपनी आन्तरिक कमजोरियों पर नियंत्रण कर। तीसरे विज्ञान सम्मत कामों में किसी भी तरह का दबाव अस्वीकार कर। यदि वैज्ञानिक ही सच्चाई नहीं प्रस्तुत नहीं करेंगे और उसके प़क्ष में खड़े नहीं होंगे तो फिर समाज किससे उम्मीद करेंगा? उच्च हिमालयी पारिस्थितिकी, पर्यावरण शिक्षा, बहुदेशीय पवित्र साँस्कृतिक क्षेत्र प्रबन्धन, उच्च हिमालय में वनस्पतियों के स्वरूप, अस्कोट अभयारण्य में संरक्षण तथा विकास, ठण्डे रेगिस्तानी क्षेत्र में संरक्षण प्रबंधन का स्वरूप; जड़ी बूटियों तथा अन्य खाद्य पौघों की पोषक, औषधि महत्ता तथा उत्पादन; पर्यावरण संरक्षण शिक्षा, जल स्रोतों के संरक्षण आदि पर महत्वपूर्ण शोधकार्य के साथ नीति निर्माण तथा कुछ परियोजनाओं के माध्यम से कार्यान्वयन भी शुरू किया।उसने ‘हिमालयन यंग रिसर्चर्स फोरम’ की स्थापना कर उनके बीच सम्पर्क तथा सम्वाद के रास्ते बनाये। अनेक बार अनेक विषयों के अनुभवी विशेषज्ञों को बुला कर उनसे युवा शोधार्थियों का सम्वाद कराया। प्रकृति व्याख्या तथा शिक्षण केन्द्र के विकास में भी उसका योगदान रहा। कटारमल में ‘सूर्यकुंज’ के रूप में यह दर्शनीय केन्द्र देखा जा सकता है। डॉ के साथ काम करने का सौभाग्य मिला, वह उनकी बच्चों जैसी निश्छलता, उनकी बुद्धिमत्ता, ईमानदारी से सनी उनकी खुद्दारी और प्रेम का मुरीद हुए बिना नहीं रहा। निराशा जैसे उनके स्वभाव में थी ही नहीं। चाहे वह रिसर्च का काम हो या फिर कोई सामाजिक सरोकार, सरल स्वभाव ,बेहतर इंसान सहित अच्छे प्रशासक एवम उत्तराखंड में ग्रामीण विकास हेतु योगदान पर प्रकाश डाला डॉ.रावल कुशल वैज्ञानिक के साथ साथ चहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। पंडित गोविंद बल्लभ पंत राष्ट्रीय पर्यावरण संस्थान कोसी कटारमल अल्मोड़ा के निदेशक डा. रणवीर सिंह रावल के निधन एवम जन्मदिन के अवसर पर श्रद्धांजलि. निराशा जैसे उनके स्वभाव में थी ही नहीं।, लेखक दून विश्वविद्यालय कार्यरत हैं।