रिपोर्ट हरेंद्र बिष्ट।
थराली। उत्तराखंड के जंगलों में आग लगने से जहां यहां के तापमान में लगातार वृद्धि हो रही हैं, वही पर्यावरणीय असंतुलन भी बढ़ रहा हैं। यह बात पर्यावरणविद वृक्षमित्र डॉ. त्रिलोक चंद्र सोनी ने विकास खंड देवाल के पूर्णा गांव में आयोजित एक गोष्ठी में कही। पूर्णा गांव में आयोजित एक पर्यावरण गोष्ठी में वृक्षमित्र डॉ. त्रिलोक चंद्र सोनी ने कहा जंगलो से ग्रामीणों की कई मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति होती हैं, जिसमे पशुओं के लिए चारापत्ती, जलाने को लकड़ी, पशुओं में बिछाने के लिए पेड़ो की पत्तियां तथा कई फल, फूल व जड़ी बूटियां मिलती हैं। किंतु प्रति वर्ष जंगलों में वनाग्नि के कारण इन पेड़ पौधों को भारी नुक्सान पहुंचता है। यही नही वनाग्नि से जीव जंतुओं, जंगली जानवरों व पक्षियों की प्रजातियां को भी भारी क्षति पहुंचती हैं। उन्होंने कहा कि जंगलों को दवानल से बचने के लिए आज ही प्रत्येक व्यक्ति को जिम्मेदारी लेनी होगी तभी पार्यावरण को सुरक्षित रखा जा सकता है ।कहा कि जिस तेजी के साथ जंगल दवानल की भेट चढ़ रहें हैं उससे आने वाले समय में पानी की बहुत बड़ी किल्लत होने की आशंका बढ़ती जा रही हैं जिसे वृहद रूप में वृक्षारोपण के जरिए कम की जा सकती हैं।इस मौके पर समाजसेवी कमला देवी ने भी जंगलों को वनाग्नि से बचाने के लिए आम जनता से भागीदारी निभाने की अपील की। इस गोष्ठी में कान्ति देवी, गंगा देवी, लीला देवी, मनीषा देवी, लक्ष्मी देवी, सुपली देवी, सुरेंद्र कुमार, संजय कुमार, मयूर आदि ने विचार व्यक्त किए।