डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला
चमोली जनपद में समुद्र तल से 11479 फुट की ऊंचाई पर स्थित विश्व धरोहर फूलों की घाटी नेशनल पार्क को लेकर उत्तराखंड अब संजीदा हुआ है। घाटी की सैर के मद्देनजर वन महकमे ने गाइडलाइन जारी की है। सैलानियों की संख्या नियंत्रित करने के लिए रोजाना 300 का कोटा निर्धारित किया गया है। यही नहीं, संपूर्ण पार्क क्षेत्र को प्लास्टिक मुक्त किया गया है। पर्यटकों को केवल पानी की बोतल ले जाने की इजाजत होगी, जो उसे वापसी में जमा करानी होगी। घाटी में पाई जाने वाली वनस्पति, जीव-जंतु और पर्यावरण को क्षति पहुंचाने पर 10 हजार रुपये का जुर्माना लगाने का भी प्रावधान किया गया है।चमोली जिले के जोशीमठ ब्लाक में पुष्पावती नदी के ऊपरी क्षेत्र पर 87.5 वर्ग किमी क्षेत्र में फैली है फूलों की घाटी। 600 से अधिक प्रजातियों के फूल और वनस्पतियों से गुलजार रहने वाली इस धरोहर को संरक्षित रखने के मकसद से छह नवंबर 1982 को नेशनल पार्क का दर्जा दिया गया। 2005 में यूनेस्को ने इसे विश्व धरोहर स्थल घोषित किया। यह घाटी का ही आकर्षण है कि सीजन (जून से अक्टूबर) में फूलों का दीदार करने के लिए देशी-विदेशी सैलानियों का खूब जमावड़ा रहता है। फूलों की घाटी में बढ़ते मानव दबाव और सैलानियों की ओर से वहां छोड़े जाने वाले प्लास्टिक समेत अन्य कचरे से यहां की जैव विविधता पर भी संकट के बादल मंडराने लगे थे। इसे देखते हुए अब वन महकमे ने गाइडलाइन जारी की है। प्रमुख वन संरक्षक (वन्यजीव बताते हैं कि अब रोजाना 300 सैलानियों को ही जाने की इजाजत दी जाएगी। सैलानी अपने साथ पानी की बोतल ले जा सकेंगे, लेकिन इसके लिए उन्हें 500 रुपये की धरोहर राशि जमा करानी होगी। वापसी में प्लास्टिक की बोतल जमा करने पर यह पैसा संबंधित पर्यटक को लौटा दिया जाएगा।खाती के अनुसार वनस्पति, जीव-जंतु व पर्यावरण को क्षति पहुंचाने पर वसूले जाने वाले अर्थदंड की राशि का उपयोग उद्यान में पर्यावरण संरक्षण के कार्यों पर व्यय किया जाएगा। उन्होने कहा कि फूलों की घाटी पार्क प्रशासन को नई गाइडलाइन का कड़ाई से अनुपालन सुनिश्चित कराने को कहा गया है। फूलों की घाटी में कुछेक स्थानों पर पॉलीगोनम नामक खरपतवार ने डेरा डाला है। यह वनस्पति अपने आसपास दूसरी वनस्पतियों को नहीं उगने देती। उन्होंने बताया कि इसे हटाने की कवायद शुरू कर दी गई है। इसके अलावा एकाध जगह पॉलीगोनम के गुण जैसी गोल्डन फर्न भी दिखी, जिसे हटाया जा रहा है। सैलानियों की सुविधा के लिए फूलों की घाटी को ऑनलाइन किया जा रहा है। नेशनल इन्फार्मेशन सेंटर (एनआइसी) उत्तराखंड से इसके लिए वेबसाइट तैयार कराई जा रही है। यह कार्य पूरा होते ही सैलानी फूलों की घाटी की सैर के लिए ऑनलाइन बुकिंग करा सकेंगे। दूसरे देशों की सीमाओं के नजदीक स्थित वह क्षेत्र, जो सामरिक दृष्टि से महत्व रखता हो, इनर लाइन घोषित किया गया है। इस क्षेत्र में सिर्फ स्थानीय लोग ही प्रवेश कर सकते हैं। उत्तराखंड में उत्तरकाशी जिले के अलावा चमोली व पिथौरागढ़ जिलों में भी चीन सीमा से लगे इनर लाइन क्षेत्र हैं। वनस्पति शास्त्री फ्रेक सिडनी स्माइथ जब कामेट पर्वतारोहण से वापस आ रहे थे, तो रास्ते में भटक गए, भटकते हुए वो फूलों की घाटी पहुंचे। फूलों से खिली सजी इस जन्नत जैसी घाटी को देख वो मंत्रमुग्ध हो उठे। 1937 में फ्रेक एडिनेबरा बाटनिकल गार्डन की तरफ से फिर से इस घाटी में आए और तीन महीने तक यहां रहे। उन्होंने वैली और फ्लावर्स पर एक किताब भी लिखी, इस तरह पूरे विश्व को इस घाटी के बारे में पता चला। रोचक बात तो ये है, हर 15 दिन में आपको इस घाटी का रंग बदलता हुआ दिखाई देगा। फूलों की घाटी में आपको 500 से अधिक प्रजातियां देखने को मिलेंगी, यहां मतलब जैव-विविधता का खजाना है। यहां पोटोटिला, प्राइमिला, एनिमोन, एमोनाइटम, ब्लू पापी, मार्स मेरी गोल्ड, फैन कमल जैसे कई तरह के फूल उगते हैं। बता दें, अगस्त-सितंबर के महीने में तो यहां सबसे ज्यादा फूल खिलते हैं। घाटी में दुर्लभ प्रजाति के जीव जंतु, वनस्पति, जड़ी बूटियों का संसार बसता है। घाटी जून से लेकर अक्टूबर तक खुली रहती है। फूलों के बारे में कुछ ऐसा है, जिसे अगर आप एक बार देख लें तो तन और मन दोनों को एक अलग ही सुकून पहुंचता है। वैसे आपने अभी तक सिर्फ एक फूल या फ्लावर का गुच्छा देखा होगा, लेकिन कभी फूलों की घाटी के बारे में सुना है, जहां दूर-दूर तक बस आपको रंग-बिरंगे फूल दिखाई दे रहे हो? जी हां, उत्तराखंड में एक ऐसी जगह है यूनेस्को स्वरा विश्व धरोहर घोषित किया गया था। बता दें, ये घाटी 87.5 वर्ग किमी में फैली हुई है, जो न केवल भारत के लोगों को बल्कि दुनियाभर के पर्यटकों को आकर्षित करती है। देश में आज से सिंगल यूज प्लास्टिक से बनी चीजों पर प्रतिबंध लग गया है. सरकार ने अभी सिंगल यूज प्लास्टिक से बनी 19 चीजों पर रोक लगाई है. 1फूलों की घाटी पार्क प्रशासन को नई गाइडलाइन का कड़ाई से अनुपालन सुनिश्चित कराने को कहा गया है। संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक, दुनियाभर में हर एक मिनट में 10 लाख प्लास्टिक बोतल खरीदी जाती है. जबकि, 5 लाख करोड़ प्लास्टिक बैग का इस्तेमाल हर साल होता है। *लेखक विज्ञान व तकनीकी विषयों के जानकार दून विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं।*