डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला
ज़ैतून अँग्रेजी नाम ओलिव वानस्पतिक नाम ओलेआ एउरोपैआ प्रजाति ओलिया, जाति थूरोपिया कुल ओलियेसी एक वृक्ष है, जिसका उत्पत्तिस्थान पश्चिम एशिया है। यह प्रसिद्ध है कि यूनान के ऐटिका एथेंस प्रांत की पहाड़ियों में चूनेदार चट्टानों द्वारा बनी हुई मिट्टी में ज़ैतून के वृक्ष सर्वप्रथम पैदा किए गए। ये अब भूमध्य सागर के आस.पास के देशों, जैसे स्पेन, पुर्तगाल, ट्यूनीशिया और टर्की आदि में भली भाँति पैदा किए जाते हैं। यूनान के पर्वतीय प्रांतों में ज़ैतून की खेती व्यापारिक अभिप्राय से की जाती है। अफ्रीका के केप उपनिवेशए चीन तथा न्यूज़ीलैंड में भी इसकी खेती सफलता पूर्वक की जाती है इनकी कई किस्में हैं। इस वृक्ष के फल से व्यापारिक महत्व का तेल प्राप्त किया जाता है।
इसके फल में सूखे पदार्थ के आधार पर 50 से 60 प्रतिशत तक तेल रहता है। इसे भली भाँति कुचल करए दबाकर या दाबक से तेल निकालते हैं। फल का अचार बनाया जाता है। जैतून का तेल सर्वाधिक स्वास्थ्यवर्धक खाद्य तेल है। इस तेल के उपयोग से हृदय रोग और मधुमेह जैसी बीमारियों से रक्षा हो सकती है। इस तेल के नियमित उपयोग से इन दोनों बीमारियों के अलावा कई और बीमारियों से लड़ने में भी मदद मिलती है।जैतून के तेल में फैटी एसिड की पर्याप्त मात्रा होती है जो हृदय रोग के खतरों को कम करती है। मधुमेह रोगियों के लिए यह काफी लाभदायक है। शरीर में शुगर की मात्रा को संतुलित बनाए रखने में इसकी खास भूमिका है।विशेषज्ञों के मुताबिक भूमध्य सागरीय देशों में हृदय रोगियों और मधुमेह रोगियों की कम तादाद होने की प्रमुख वजह यह है कि जैतून का तेल वहाँ नियमित खाद्य तेल के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है। अन्य देशों की तुलना में इन देशों के लोगों की औसत उम्र भी अधिक होती है। मैक्सहार्ट एंड वास्क्यूलर इंस्टीट्यूट के वरिष्ठ हृदय रोग विशेषज्ञ ने कहा कि बाजार में कोई भी ऐसा तेल नहीं है जो हृदय के लिए सौ फीसदी उपयुक्त हो, लेकिन इनमें जैतून का तेल सबसे अच्छा है। जैतून के तेल में संतृप्त वसा की मात्रा कम होती है जिससे शरीर में कॉलेस्टेरोल की मात्रा को भी संतुलित बनाए रखने में मदद मिलती है। इससे हृदयाघात का खतरा काफी कम हो जाता है। जैतून के तेल में एंटी.ऑक्सीडेंट की मात्रा भी काफी होती है। इसमें विटामिन ए, डी, ई, के और बी.कैरोटिन की मात्रा अधिक होती है। इससे कैंसर से लड़ने में आसानी होती है। यह खाना पकाने में, सौंदर्य प्रसाधन के लिये, दवाओं के निर्माण में, साबुन निर्माण में तथा पारम्परिक दीपों को जलाने के लिये तेल के रूप में प्रयुक्त होता है।
जैतून का तेल लगभग पूरे विश्व में प्रयुक्त होता है किन्तु भूमध्य सागरीय क्षेत्रों में इसका प्रयोग अधिक होता है। राजस्थान की मरुभूमि भारत में जैतून के तेल उत्पादन के सूखे को दूर करेगी। इस कहानी की भूमिका राजस्थान में जैतून के हरे.भरे पेड़ों की खेती लिख रही है। एक किसान पेड़ की शाखाओं पर लगे जैतून की तरफ इशारा करते हुए कहता है कि उनकी तरफ देखो वे हरे हैं। धीरे.धीरे वे लाल हो जाएंगे और कुछ ही महीनों में जैतून की फसल तैयार हो जाएगी। उसके बाद तेल निकालने का काम शुरू हो जाएगा। स्पेन जैतून के तेल का सबसे बड़ा उत्पादक है। पिछले साल उसने दुनिया के 50 फीसद तेल का उत्पादन किया। जैतून के तेल को घरेलू और अंतरराष्ट्रीय बाजारों में बढ़ावा देने के लिए लाखों डाॅलर खर्च किए।
भारत को भी अपनी अंतरराष्ट्रीय महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने के लिए उसी तरह की रणनीति अपनानी होगी। इंडियन ऑलिव एसोसिएशन के प्रमुख और लियोनार्दो ऑलिव ब्रांड के मालिक वीएम डालमिया का मानना है कि उपभोग की किसी भी वस्तु के लिए मार्केटिंग प्रोग्राम और सेल्स नेटवर्क की जरूरत होती है। राजस्थान के जैतून तेल को निम्न गुणवत्ता का समझे जाने की छवि से बाहर निकालना होगा। राजस्थान में जैतून की खेती के विस्तार की अपार संभावनाएं हैं। जो ग्रीस के कुल क्षेत्रफल से ढाई गुना ज्यादा है। ग्रीस दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा जैतून उत्पादक देश है। जैतून के तेल का उत्पादन करने के लिए इटली से एक रिफाइनरी लाई जा रही है। इससे भारत के घरेलू बाजारों में जैतून के तेल की बढ़ती मांग को पूरा करने में मदद मिलेगी। मैड्रिड के इंटरनेशनल ऑलिव काउंसलिंग के आंकड़ों के अनुसार स्पेन और इटली से जैतून के तेल का अधिकांश आयात होता है। यह अक्टूबर 2012 से फरवरी 2013 के बीच 48 प्रतिशत तक हो गया है। जैतून के तेल से होने वाले स्वास्थ्य पर संभावित सकारात्मक प्रभावों को लेकर भारत में जागरूकता बढ़ रही है। इससे उच्च.निम्न रक्तचाप, दिल की बीमारियों के खतरे और कैंसर के कुछ खास प्रकारों से बचाव होता है।
राजस्थान ऑलिव कल्टीवेशन लिमिटेड में काम करने वाले इसराइली कृषि विशेषज्ञ गिड्योन पेग कहते हैं कि जब मैं पहली बार यहां आया था तो एक भी बोतल जैतून का तेल खोजना कठिन था। इसकी छोटी बोतलें, त्वचा संबंधी उपयोग के लिए केवल फार्मेसी पर उपलब्ध है। जैतून के तेल उत्पादन में लगे किसानों का कहना है कि पानी की कमी जैतून की खेती के विस्तार में प्रमुख बाधा है। योगेश वर्मा कहते हैं कि सितंबर से हर साल 25 टन जैतून के तेल का उत्पादन होने की उम्मीद है। जैतून का तेल अगले साल से भारतीय दुकानों में उपलब्ध हो जाएगा। नई दिल्ली के सुपर मार्केट में उच्च स्तर का जैतून तेल 750 रुपए में मिलता है। ऐसी उम्मीद है कि घरेलू स्तर पर उत्पादन के बाद कीमतें नीचें गिरेंगी और अधिकांश आबादी इसका उपयोग कर सकेगी।
उत्पादन के बारे में उत्पादन के बाद की अगली चुनौती राजस्थानी जैतून के तेल के मार्केटिंग की होगी। स्पेन जैतून के तेल का सबसे बड़ा उत्पादक है। पिछले साल उसने दुनिया के 50 फीसद तेल का उत्पादन किया। जैतून के तेल को घरेलू और अंतरराष्ट्रीय बाजारों में बढ़ावा देने के लिए लाखों डाॅलर खर्च किए। भारत को भी अपनी अंतरराष्ट्रीय महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने के लिए उसी तरह की रणनीति अपनानी होगी। जैतून जैसा ही करिश्मा राजस्थान खजूर उत्पादन में भी दोहराना चाहता है। जिसका मिडिल ईस्ट के देशों से आयात होता है। वहीं घरेलू उत्पादन में गुजरात आगे है। सालाना आयात लगभग 2,56,000 मीट्रिक टन है।
उत्तराखंड की जलवायु पहली बार जैतून ओलिया यूरोपिया के वृक्ष को रास आई है। भीमताल में जैतून का वृक्ष हरा भरा ही नहीं हुआ है, बल्कि उसमें इन दिनों फल भी आये हैं। विशेषज्ञों की माने तो 2006 की वृक्षों की गणना में पूरे विश्व में मात्र 8.5 करोड़ जैतून के पेड़ हैं। उत्तराखंड में अब तक इस पेड़ की मौजूदगी कहीं दर्ज नहीं कराई गई है। भीमताल में न केवल पेड़ उगा है, बल्कि इसमें इन दिनों फल भी आये हैं। फूल पेड़ विशेषज्ञों के मुताबिक जैतून का पेड़ दो से चार करोड़ वर्ष पूर्व से ही पृथ्वी पर है। आलिव आयल जैतून से ही अंग्रेजी शब्द आयल की उत्पत्ति हुई है। आमतौर पर अरब देशों में उगने वाले पौधे की अधिकतर खेती स्पेन में होती है। विटामिन ई से भरपूर जैतून का तेल दुनिया भर में खाने और दवाईयों के लिये प्रयोग होता है। पेड़ कटिंग लगा कर उगाया जा सकता है। मालूम हो कि 1980 के दशक में इंडो इटेलियन प्रोजेक्ट के तहत ज्योलीकोट में जैतून उगाने का प्रयास किया गया था, जो सफल नहीं हो पाया था।
वहीं भीमताल में अब इस पेड़ ने अपनी उपस्थिति दर्ज कराई है। भीमताल में बड़े पैमाने पर औद्योगिक घाटी में कई संस्थान खाली पड़े हैं। ऐसे में यदि यहां के युवक जैतून के वृक्षों को उगा कर उसका तेल निकालने का कार्य प्रारंभ करें तो भारत वर्ष की जैतून तेल की अधिकांश मांग को पूरा किया जा सकता है। हम यदि अपनी देवभूमि को हरित क्रांति से जोड़ना चाहते हैं तो हमें अपने पुराने नौलों, धारों, खालों, तालों आदि जलसंचयन के संसाधनों को पुनर्जीवित करना होगा। पारंपरिक जल.स्रोत यथा नोले, धारे, चाल, खाल बचाने की मुहिम जलसंचेतना की दिशा में अच्छी पहल है। आज आवश्यकता है चीड़ के स्थान पर चौड़ी पत्तियों वाले बाँज, बुरांश, उतीस, जैतून आदि वृक्षों को लगाए जाने की ताकि भूमिगत जल रिचार्ज हो सके। प्रदेश शासन को इस मुहिम में अपना भरपूर योगदान देना चाहिए। जल समस्या का सबसे बड़ा समाधान है जल के प्रति जनसामान्य के बीच जागरूकता पैदा करना।यह ख़तरा पानी का हैण् पीने के साफ़ पानी की अनुपलब्धता ने भारत के कई राज्यों में दस्तक दे दी हैण् प्रदेश शासन को इस मुहिम में अपना भरपूर योगदान देना चाहिए।जल समस्या का सबसे बड़ा समाधान है जैतून की खेती को बढ़ावा देने के योगदान देना चाहिएण्प्रदेश को जैतून प्रदेश बनाने के लिए इसराइल की तर्ज पर जैतून की खेती को बढ़ावा देना चाहिए। सरकार किसानों को इस पौधे के रखरखाव के लिए सब्सिडी भी देना चाहिए।












