थराली से हरेंद्र बिष्ट।
पिंडर घाटी में वैशाख मेलों की श्रृंखला के तहत इस विकासखंड के माल बज्वाड़ गांव के मलियाल थोक में आयोजित मलियाल मेले का भव्य आयोजन किया गया।इस मौके पर मलिया दानू सहित अन्य देवी.देवताओं के पशुवाओं ने जमकर नृत्य किया।
बैसाखी के पर्व से अलग.अलग स्थानों पर पंजाब की तर्ज पर बिखोती मेलों का दशकों से आयोजन किया जाता है। इसके तहत बैसाखी के पहले दिन कुलसारी एवं पन्ती में मेलों का आयोजन होता हैं। यहां पर अलग.अलग गांव के ग्रामीणों के द्वारा अपने अपने कुल देवी एवं देवताओं के प्रतिकों को पिंडर नदी में स्नान करवाने के साथ ही ढोल नगाड़ों, बाजे भुकरों की धुन पर खूब नृत्य किया जाता है। इसके साथ ही अन्य स्थानों पर भी मेलों का आयोजन किया जाता है। इसी के तहत मलयाल थोक में मलियाल देवता की पूजा अर्चना करने के साथ ही नृत्य किया जाता है।
सोमवार को भी यहां पर एक भव्य मेले का आयोजन किया गया। जिसमे भारी संख्या में लोगों ने भाग लिया। दशकों से मलियाल थोक के सात गांवो ने ग्रामीणों के द्वारा मेले का आयोजन किया जाता हैं। एक लोकगाथा के अनुसार गढ़वाल पर गोरखाओं ने आक्रमण कर गढ़वाल के 52 गढ़ियों में सुमार बधाणगढ़ी पर अपना आधिपत्य स्थापित कर लिया था और वर्षों तक उनका इस क्षेत्र पर शासन रहा। किंतु बाद में गढ़वाल के राजा के द्वारा गौरखाओं से युद्ध कर एक बार पुनः अपना आधिपत्य स्थापित कर लिया। इसी लड़ाई के दौरान कई गौरखा सैनिक मारे गए और कई भाग खड़े हुए। किंतु मलियाल नाम जो कि जाति से दानू था। युद्ध के दौरान मलियाल थोक के जंगलों में ही फंस गया था। कुछ वर्षों तक यही रहने के दौरान अचानक उसकी रहस्यमय तरीके से मौत हो गई। कहा जाता है कि कालांतर में इस थोक के वासिंदों को जंगलों में आने.जाने कुछ दिक्कतें होने लगी तो स्थानीय बुजुर्गों ने जब इस का पता लगाया तो मालूम चला कि मलियाल दानू की आत्मा के कारण दिक्कतें पैदा हो रही हैं तो उन्होंने इसके मंदिर का निर्माण कर विधिवत पूजा अर्चना की और इस स्थान पर बैसाख महिने में मलियाल मेले का आयोजन शुरू कर दिया।
माना जाता हैं कि यहां पर जिस ढाल एवं तलवार के साथ आज भी मलियाल का पशुवा नृत्य करता वह उसी मलियाल नामक सैनिक का है।जिसका वह युद्ध के दौरान उपयोग करते थे। इस मौके पर माल बज्वाड़ के ग्राम प्रधान जितेन्द्र रावत, मेला कमेटी के अध्यक्ष डॉ राजेन्द्र रावत, पंचायत सदस्य बबीता देवी, बलवंत सिंह रावत, महिपाल फर्स्वाण, राकेश भारद्वाज, कलम सिंह कनवासी, नरेंद्र भंडारी, लक्ष्मण रावत आदि ने विचार व्यक्त किए।
प्रति वर्ष आयोजित होने वाले मलियाल मेले में की एक अनोखी परंपरा जारी हैं। यहां पर एक वर्ष मलियाल के वृद्ध एवं अगले वर्ष युवा के रूप में पूजा की जाती है। इसी के तहत एक साल वृद्ध एवं एक साल युवा पशुवा नृत्य करते हैं।