
शंकर सिंह भाटिया
देहरादून। बेरोजगारी उत्तराखंड में सबसे बड़ा मुद्दा है, लेकिन युवाओं को रोजगार देने के लिए राज्य के नौकरशाह किस तरह से खेल खेलते हैं, इसका उदाहरण है मुख्य सचिव के निर्देशों को रद्दी की टोकरी में डालकर विभिन्न विभागों द्वारा निजी एजेंसियों के माध्यम से नौकरी आउटसोर्स करने की खुली छूट देना। गौरतलब है कि ये सभी एजेंसियां राज्य के बाहर की हैं, यहां यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि क्या विभागीय प्रमुख अवैधानिक कार्य कर एजेंसियों से कोई मोटी रकम वसूल रहे हैं?

14 फरवरी 2021 को तत्कालीन मुख्य सचिव ने सभी अपर मुख्य सचिवों, प्रमुख सचिवों, सचिवों, सभी जिलाधिकारियों, मंडलायुक्तों तथा विभागाध्यक्षों को संबोधित एक आदेश जारी किया था, जिसमें उन्होंने स्पष्ट उल्लेख किया था कि उनके संज्ञान में आया है कि कतिपय विभागों द्वारा निजी आउटसोर्स एजेंसियों से आउटसोर्स के माध्यम से कार्मिकों को प्रायोजित किया जा रहा है, जो कि उक्त शासनादेश में निहित प्रावधानों का उल्लंघन है। इसलिए शासनादेश संख्या-630/xvii-5/18-09(17)2004 में प्रदत्त निर्देशों का पालन सुनिश्चित किया जाए। विभाग केवल उपनल के माध्यम से ही आउटसोर्स करें।

तत्कालीन मुख्य सचिव ओम प्रकाश द्वारा जारी यह आदेश साफ तौर पर कह रहा है कि निजी एजेंसियों से आउटसोर्स न करने का 2004 के शासनादेश का कई विभाग उल्लंघन कर रहे हैं। हम यहां पर चार एजेंसियों का विवरण दे रहे हैं, जो विभिन्न विभागों में कार्मिक आउटसोर्स कर रहे हैं, सभी एजेंसिंया राज्य के बाहर की हैं।-
1-लखनउ की ए स्क्वायर एजेंसी महिला एवं बाल विकास विभाग में कार्मिक आउटसोर्स कर रही है।
2-मोहाली पंजाब की टीडीएस मैनेजमेंट कंसलटेंसी गु्रप एम्स ऋषिकेश को कार्मिक आउटसोर्स कर रही है।
3-मुंबई की टीएंडएम कंपनी राष्टीय स्वास्थ्य मिशन एनएचएम को कार्मिक आउटसोर्स कर रही है।
4-नोएडा की विजन इंडिया कंपनी अटल उत्कृष्ट विद्यालयों में कार्मिक आउटसोर्स कर रही है।
और भी कई एजेंसियां हैं, इनकी संख्या एक दर्जन से अधिक बताई जाती है, जो उत्तराखंड के विभिन्न सरकारी विभागों में कार्मिक आउटसोर्स कर रही हैं। अभी अटल आदर्श विद्यालयों की स्थापना हुए छह माह भी नहीं हुए हैं, राज्य में सौ से अधिक अटल आदर्श विद्यालयों की स्थापना हो रही है, इन विद्यालयों में सभी टेक्निकल पदों को इस निजी एजेंसी से आउटसोर्स करने की पूरी तैयारी की जा चुकी है।

गौरतलब यह भी है कि आउटसोर्स करने वाली एक भी निजी एजेंसी उत्तराखंड की नहीं है, अन्य जितनी भी एजेंसियां यह काम कर रही हैं, वे सभी भी राज्य से बाहर की हैं। एक एजेंसी का खुलासा आम आदमी पार्टी के नेता कर्नल अजय कोठियाल ने किया। लखनउ की इस एजेंसी का मालिक एक टस्ट भी संचालित करता है, यहां जाब पाने के लिए पहली शर्त यही है कि उस टस्ट को 25 हजार का डोनेशन देना होगा, तब बिना कोई जांच पड़ताल के एजेंसी विभाग में जाब दिला देती है। एजेंसी हर साल कार्मिकों के दो माह का वेतन मांगती है, न देने पर नौकरी से निकाल देती है, नए कार्मिक नियुक्त कर उनसे डोनेशन जमा करवा लेती है।
आउटसोर्स की इस अवैध खेल की जानकारी शासन को भी थी, इसीलिए मुख्य सचिव आदेश जारी करते हैं, लेकिन आदेश जारी करने से अधिक वह कोई एक्शन नहीं लेते। इसका क्या अर्थ लगाया जाए। सरकार की नाक के नीचे नौकरी दिलाने का इतना बड़ा खेल चल रहा है, सरकार क्यों मौन है? सवाल उठता है कि अवैध काम करने वाले किसी विभागाध्यक्ष के खिलाफ कोई एक्शन किया गया? एक्शन लेने की बात तो दूर की है, उन्हें जानबूझकर सबकुछ करने की छूट दी जाती रही है।
सवाल यह उठता है कि निजी एजेंसियों से आउटसोर्स करने के पीछे कोई बड़ा खेल हो रहा था? इस खेल में कौन कौन शामिल था? जिस राज्य में देश में सबसे अधिक 23 प्रतिशत बेरोजगारी हो उस राज्य में रोजगार को लेकर हो रहा यह खेल क्या साबित करता है? चुनाव से ठीक पहले रोजगार से जुड़ा यह बहुत बड़ा घपला-घोटाला सामने आया है, तो सरकार को इसका जवाब देना ही होगा।