डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला
उत्तराखंड की पहाड़ी ककड़ी सामान्यतः ककडी या खीरा नाम से जानी जाती है, लेकिन उच्च पर्वतीय क्षेत्र उगायी जाने वाली ककडी अपने खास स्वाद की वजह से आज अपने आप में एक ब्रांड है, जिसको सिर्फ खाने पश्चात ही समझा जा सकता है। उड़द ककड़ी की बड़ी में प्रोटीन, विटामिन बी थायमीन, राइबोफ्लेविन और नियासिन, विटामिन सी, आयरन, कैल्शियम, घुलनशील रेशा और स्टार्च पाया जाता है। उड़द वीर्य वर्द्धकए हृदय को हितकारी है। यह वात, अर्श का नाश करती है। यह स्निग्ध, विपाक में मधुर, बलवर्द्धक और रुचिकारी होती है। उड़द की दाल अन्य प्रकार की दालों में अधिक बल देने वाली व पोषक होती है। इसमें बहुत सारा आयरन होता है, जिसे खाने से शरीर को बल मिलता है। यह उन महिलाओं के लिये उपयुक्त है जिन्हें भारी महावारी होती है, क्योंकि उनके अंदर आयरन की कमी हो जाती है। इसमें रेड मीट के मुकाबले कई गुना आयरन होता है और न हाई कैलोरी होती है और न ही फैट होता है। वैसे तो हर दालों की बड़ी में भारी प्रोटीन होता है। वे लोग जो पैसे की कमी की वजह से मीट मछली नहीं खा पाते उनके लिये यह एक सस्ता आहार माना जाता है।
शरीर के पूरे विकास और मासपेशियों की मजबूती के लिये प्रोटीन बहुत जरुरी है। प्रोटीन त्वचा, रक्त, मांसपेशियों तथा हड्डियों की कोशिकाओं के विकास के लिए आवश्यक होते हैं। जिन लोगों की पाचन शक्ति प्रबल होती है, वे यदि इसका सेवन करें, तो उनके शरीर में रक्त, मांस, मज्जा की वृद्धि होती है। इसमें बहुत सारे घुलनशील रेशे होते हैं जो कि पचने में आसान होते हैं। हृदय स्वास्थ्य. कोलेस्ट्रॉल घटाने के अलावा भी उड़द ककड़ी की बड़ी स्वास्थ्य वर्धक होती है। यह मैगनीशियम और फोलेट लेवल को बढा कर धमनियों को ब्लॉक होने से बचाती है। मैगनीशियम, दिल का स्वास्थ्य बढाती है, क्योंकि यह ब्लड सर्कुलेशन को बढावा देती है।
भारत के बारे में कहा जाता है कि यह विविधताओं से भरा देश है। खासकर देश के अलग.अलग हिस्सों में खाने.पीने की आदतों के बारे में तो यह कहा ही जा सकता है। यहां देश के हर कोने में खान.पान की अपनी अलग आदतें होती हैं। उत्तराखंड के कुमाऊं क्षेत्र की भी अपनी खान.पान की खास आदतें हैंण् हालांकि यह बहुत ज्यादा मशहूर नहीं हैंए लेकिन जिन्होंने यहां के स्वादिष्ट भोजन का लुत्फ लिया है वे जानते हैं कि इनकी क्या खूबी हैण्कुमाऊं क्षेत्र के लोग दुनिया में चाहे कहीं भी रहेंए वे अपने स्थानीय भोजन का स्वाद अक्सर लेते रहते हैंण् कुमाऊं में नैनीताल आदि पर्यटन स्थलों का दौरा करने वाले पर्यटक भी यहां पहाड़ी खाने की मांग करते हैं और एक बार इसका स्वाद मुंह लगने के बाद वे कभी उस जायके को नहीं भूलतेण् पहाड़ के इस बेहद प्रचलित उत्पाद को विदेशों तक पहुंचा रही हैं नैनीताल जिले की लीला साह जो कि लोकल फॉर वोकल का नारा बुलंद कर रही हैं। वे मूंग और उड़त की पौष्टिक बड़ियां बना कर और उनको बेच कर अपने लिए रोजगार पैदा कर रही हैं। नैनीताल की लीला साह पिछले कई सालों से बड़ियों को खुद बनाकर बेच रही हैं। कोरोना काल में इन बड़ियों की मांग और भी अधिक बढ़ गई है और यह अब विदेशों में भी आर्डर पर भेजी जा रही हैं। यह बड़ियां और मंगौड़े भूजा, ककड़ी, लौकी, पापड़ के साथ उड़द और मूंग दाल से तैयार होती है जो कि बेहद पौष्टिक है और इम्यूनिटी बढ़ाने में बेहद कारगर होती हैं। इस स्वादिष्ट और हेल्दी पहाड़ी उत्पाद की डिमांड देश के साथ विदेशों से भी आ रही हैं और लीला साह द्वारा बनाई गई बड़ियों को अब विदेशों में भी लोगों द्वारा काफी पसंद किया जा रहा है।
डॉक्टर का कहना है कि इन बड़ियों के अंदर पेट संबंधी बीमारियों के साथ अन्य बीमारियों और वायरल को खत्म करने की भी क्षमता होती है। यह ऑर्गेनिक होती हैं और इनके अंदर प्रचुर मात्रा में वाइटमिन्स, प्रोटीन, कैल्शियम, आयरन और कार्बोहाइड्रेट्स मौजूद होता है। कुल मिला कर यह मूंग और उड़त की बड़ियां स्वास्थ्य के लिए बहुत लाभदायक हैं इसलिए विदेश में भी इस पहाड़ी उत्पाद की डिमांड लगातार बढ़ती ही जा रही है। पहाड़ी उत्पादों को बाजार मुहैया कराने और किसानों को उत्पाद का उचित मूल्य प्रदान करने के लिए मंडी समिति और विपणन बोर्ड ने पहल शुरू की है। बोर्ड किसानों से संपर्क साधकर उत्पाद खरीदने से लेकर बिक्री में सक्रिय भूमिका निभाएगा। यही नहीं उत्पादों के भंडारण को भी विभिन्न क्षेत्रों में व्यवस्था की जाएगी। उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्र में उत्पादित कृषि उत्पाद पौष्टिकता से लबरेज हैंए मगर किसानों को इनके विपणन के लिए बाजार उपलब्ध नहीं हो पा रहा। ऐसे में घर पर ही सही दाम मिलने के साथ ही मार्केटिंग के लिए उचित मंच मिल जाए तो इससे बेहतर क्या होगा। इसी थीम पर आगे बढ़ते हुए चकबंदी के लिए समर्पित संगठन गरीब क्रांति अभियान एकीकृत आधार के साथ कृषि क्रांति के माध्यम से विकास ने पहाड़ प्रतिष्ठा के साथ पहाड़ी क्षेत्रों में कृषि को बढ़ावा देना की पहल की है। इसकी शुरुआत की गई देहरादून से, जहां पहाड़ नाम से आउटलेट खोला गया है। इसमें चार पहाड़ी जिलों के 800 किसानों से कृषि उत्पाद लेकर इनकी बिक्री की जा रही है। पहाड़ी उत्पादों से जहां लोग जड़ों से जुड़ाव का अहसास कर रहेए वहीं पहाड़ में किसान खेती की तरफ उन्मुख होने लगे हैं।












