• About Us
  • Privacy Policy
  • Cookie Policy
  • Terms & Conditions
  • Refund Policy
  • Disclaimer
  • DMCA
  • Contact
Uttarakhand Samachar
  • Home
  • संपादकीय
  • उत्तराखंड
    • अल्मोड़ा
    • उत्तरकाशी
    • उधमसिंह नगर
    • देहरादून
    • चमोली
    • चम्पावत
    • टिहरी
    • नैनीताल
    • पिथौरागढ़
    • पौड़ी गढ़वाल
    • बागेश्वर
    • रुद्रप्रयाग
    • हरिद्वार
  • संस्कृति
  • पर्यटन
    • यात्रा
  • दुनिया
  • वीडियो
    • मनोरंजन
  • साक्षात्कार
  • साहित्य
  • हेल्थ
  • क्राइम
  • जॉब
  • खेल
No Result
View All Result
  • Home
  • संपादकीय
  • उत्तराखंड
    • अल्मोड़ा
    • उत्तरकाशी
    • उधमसिंह नगर
    • देहरादून
    • चमोली
    • चम्पावत
    • टिहरी
    • नैनीताल
    • पिथौरागढ़
    • पौड़ी गढ़वाल
    • बागेश्वर
    • रुद्रप्रयाग
    • हरिद्वार
  • संस्कृति
  • पर्यटन
    • यात्रा
  • दुनिया
  • वीडियो
    • मनोरंजन
  • साक्षात्कार
  • साहित्य
  • हेल्थ
  • क्राइम
  • जॉब
  • खेल
No Result
View All Result
Uttarakhand Samachar
No Result
View All Result

उत्तराखंड का एकमात्र परशुराम मंदिर

29/04/25
in उत्तराखंड, देहरादून
Reading Time: 1min read
58
SHARES
73
VIEWS
Share on FacebookShare on WhatsAppShare on Twitter
https://uttarakhandsamachar.com/wp-content/uploads/2025/11/Video-60-sec-UKRajat-jayanti.mp4

डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला
उत्तराखंड का एक मात्र विष्णु के छठवें अवतार परशुराम जी का एकमात्र मंदिर जनपद में मौजूद है। पुराणों के अनुसार उत्तरकाशी में ही बाबा काशी विश्वनाथ के दर्शन के बाद उनका क्रोध शांत हुआ था। तब भगवान शिव ने परशुराम को आशीवार्द दिया था कि अब इसे सौम्यकाशी के नाम से भी जाना जाएगा।उत्तरकाशी जनपद मुख्यालय में परशुराम का मंदिर बाबा काशी विश्वनाथ मंदिर से करीब 100 मीटर की दूरी पर स्थित है। यहां पर उनकी पूजा विष्णु जी की पाषाण रूप में की जाती है। वहीं यह मूर्ति आठवीं और नवीं सदी की है। वहीं इस मूर्ति और अयोध्या में स्थित राम जी की मूर्ति में कई समानताएं हैं। मंदिर के पुजारी का कहना है कि स्कंद पुराण के केदारखंड में परशुराम जी और उनके पूरा परिवार का उत्तरकाशी के साथ संबंध का विवरण है। पौराणिक कथाओं के अनुसार उत्तरकाशी में ही राजा भागीरथ ने तपस्या की थी और उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्मा जी ने उन्हें वरदान दिया था कि भगवान शिव धरती पर आ रही गंगा को धारण कर लेंगे। तब से यह नगरी विश्वनाथ की नगरी कही जाने लगी और कालांतर में इसे उत्तरकाशी कहा जाने लगा। कहा जाता है कि इस मंदिर की स्थापना परशुराम जी द्वारा की गई थी। टिहरी की महारानी कांति ने सन 1857 में इस मंदिर की मरम्मत करवाई। महारानी कांति सुदर्शन शाह की पत्नी थीं। इस मंदिर में एक शिवलिंग स्थापित है।  मान्यताओं के अनुसार, भगवान परशुराम को भगवान विष्णु का छठा 6वें अवतार माने जाते हैं. परशुराम का उल्लेख रामायण, ब्रह्रावैवर्त पुराण और कल्कि पुराण आदि हैं. धार्मिक मान्यताएं हैं कि अपने क्रोध के लिए जाने जाने वाले भगवान परशुराम ने इस गुस्से पर काबू करने के लिए उत्तरकाशी में भगवान विश्वनाथ की तपस्या की थी. कहा जाता है कि कठोर तप के बाद परशुराम का व्यवहार बहुत ही सौम्य में हो गया था यही वजह है कि उत्तरकाशी को सौम्य काशी के नाम से भी जाना जाता है. भगवान परशुराम की तपस्थली बाराहाट में परशुराम का प्राचीन मंदिर स्थापित है, कहा जाता है कि इसी स्थान पर भगवान परशुराम ने आशुतोष की तपस्या की थी. अक्षय तृतीया के दिन इस मंदिर में परशुराम जयंती बड़े ही धूमधाम से मनाई जाती है, जिसमें देश के कोने कोने से श्रद्धालु यहां पहुंचते हैं. द्वापर युग में भगवान परशुराम पद्मावत राज्य में वेण्या नदी के किनारे रहते थे। जरासंध के हमले के दौरान, बलराम और श्रीकृष्ण ने दक्षिण से मदद लेने के लिए दक्षिण प्रदेश की यात्रा की। श्रीकृष्ण ने बलराम से बात करके परशुरामजी से मिलने का फैसला किया। कई नदियों और जंगलों को पार करने के बाद, वे परशुरामजी के आश्रम पहुंचे। वहां, परशुराम और सांदीपनि ने उनका स्वागत किया। परशुराम ने उन्हें फल खिलाए रहने की व्यवस्था की और बाद में श्रीकृष्ण को सुदर्शन चक्र की दीक्षा दी। परशुराम एक बहुत शक्तिशाली व्यक्ति थे। उन्होंने अलग-अलग युगों में कई महत्वपूर्ण काम किए। सतयुग में उन्होंने गणेश जी का एक दांत तोड़ दिया था। त्रेतायुग में उन्होंने राजाओं का सम्मान किया और राम जी का स्वागत किया। द्वापर युग में उन्होंने कृष्ण का साथ दिया और कर्ण को श्राप दिया। उन्होंने भीष्म, द्रोण और कर्ण को शस्त्र विद्या भी सिखाई। भगवान परशुराम ने यज्ञ करने के लिए एक विशाल सोने की वेदी बनवाई थी। उन्होंने इस वेदी पर कई यज्ञ किए। बाद में महर्षि कश्यप ने उनसे वह वेदी ले ली और उन्हें पृथ्वी छोड़ने को कहा। परशुराम जी ने उनकी बात मानकर समुद्र को पीछे धकेल दिया और महेंद्र पर्वत पर चले गए। माना जाता है कि उन्होंने हैययवंशी क्षत्रियों से धरती जीतकर दान कर दी थी। जब उनके पास रहने के लिए कोई जगह नहीं बची, तो वे वरुणदेव की तपस्या करने लगे। वरुणदेव ने उन्हें दर्शन दिए और एक उपाय बताया. उन्होंने परशुराम को अपना फरसा समुद्र में फेंकने को कहा। जहां तक फरसा गिरेगा, वहां तक समुद्र का जल सूख जाएगा और वह भूमि परशुराम की होगी। ऐसा करने पर केरल राज्य बना। परशुरामजी ने वहां विष्णु भगवान का मंदिर बनवाया, जो आज तिरूक्ककर अप्पण के नाम से प्रसिद्ध है। पंडितों के अनुसार परशुराम जन्मोत्सव का दिन खास होता है इस दिन अच्छे काम करने से शुभ फल प्राप्त होता है। एक कथा के अनुसार जब समस्त देवी-देवता असुरों के अत्याचार से परेशान होकर महादेव के पास गए तो शिव जी ने अपने परम भक्त परशुराम को उन असुरों का वध करने के लिए कहा जिसके पश्चात परशुराम ने बिना किसी अस्त्र शस्त्र के सभी राक्षसों को मार डाला। यह देख शिवजी अत्यंत प्रसन्न हुए और उन्होंने परशुराम को कई शस्त्र प्रदान किये जिनमें से एक फरसा भी था। उस दिन से वे राम से परशुराम बन गए। परशुराम अपने माता पिता की भक्ति में लीन थे वे अपने माता-पिता की आज्ञा की कभी अवहेलना नहीं करते थे। एक बार उनकी माता रेणुका नदी में जल भरने के लिए गयी वहां गन्धर्वराज चित्ररथ को अप्सराओं के साथ विहार करता देख रेणुका कुछ देर तक वहीं रुक गयीं। जिसके कारण उन्हें घर वापस लौटने में देर हो गयी। इधर हवन में बहुत देरी हो चुकी थी। उनके पति जमदग्नि ने अपनी शक्तियों से उनके देर से आने का कारण जान लिया और उन्हें अपनी पत्नी पर बहुत गुस्सा आने लगा। जब रेणुका घर पहुंची तो जमदग्नि ने अपने सभी पुत्रों को उसका वध करने के लिए कहा। किन्तु उनका एक भी पुत्र साहस नहीं कर पाया। तब क्रोधवश जमदग्नि ने अपने चार पुत्रों को मार डाला। उसके बाद पिता की आज्ञा का पालन करते हुए परशुराम ने अपनी माता का वध कर दिया। अपने पुत्र से प्रसन्न होकर परशुराम ने उसे वरदान मांगने को कहा। परशुराम ने बड़ी ही चतुराई से अपने भाइयों और माता को पुनः जीवित करने का वरदान मांग लिया। जिससे उन्होंने अपने पिता का भी मान रख लिया और माता को भी पुनर्जिवित कर दिया। एक और पौराणिक कथाओं में इस बात का उल्लेख मिलता है कि परशुराम ने ही गणेश जी का एक दांत तोड़ा था। इसके पीछे की कथा है कि एक बार परशुराम कैलाश शिव जी मिलने पहुंचे किंतु महादेव घोर तपस्या में लीन थे इसलिए गजानन ने उन्हें भोलेनाथ से मिलने नहीं दिया। इस बात से क्रोधित होकर परशुराम ने उन पर अपना फरसा चला दिया। क्योंकि वह फरसा स्वयं शंकर जी ने उन्हें दिया था इसलिए गणपति उसका वार खाली नहीं जाने देना चाहते थे। जैसे ही परशुराम ने उन पर वार किया उन्होंने उस वार को अपने दांत पर ले लिया जिसके कारण उनका एक दांत टूट गया तब से गणेश जी एकदन्त भी कहलाते है। विरोधी छवि होने के कारण भगवान परशुराम ने सहस्त्रबाहु जैसे अधर्मी क्षत्रियों का संहार किया था। जिसके कारण कुछ समुदाय उन्हें क्रोधी योद्धा मानते हैं। यह छवि उनकी भक्ति को सीमित करती है। सन्यासी स्वरूप होने के कारण, परशुराम एक योद्धा-ऋषि थे, जिनका तप, शास्त्र और धर्म की रक्षा पर केंद्रित था। उनका कोई पारिवारिक या सामाजिक रूप नहीं था, जिसके कारण भक्तों का जुड़ाव कम रहा। क्षेत्रीय भक्ति होने के कारण जैसे उनकी पूजा मुख्य रूप से दक्षिण भारत और कुछ ब्राह्मण समुदायों में होती है। अन्य क्षेत्रों में राम-कृष्ण की भक्ति अधिक लोकप्रिय है। इसके पीछे की पौराणिक कथा यह है कि परशुराम अमर हैं और कलियुग के अंत में कल्कि अवतार को प्रशिक्षित करेंगे, इस कारण उनकी पूजा भविष्य-उन्मुख मानी जाती है। परशुराम जन्मोत्सव धर्म, शास्त्र और शस्त्र की आराधना का महापर्व है। शास्त्रों के अनुसार इस दिन पूजा व्रत करने से साहस, शक्ति और शांति प्राप्त होती है। नि:संतान दंपतियों के लिए यह व्रत संतान प्राप्ति में फलदायी माना जाता है। दान पुण्य का विशेष महत्व है, जो मोक्ष और समृद्धि का मार्ग खोलता है। यह दिन भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त करने का भी अवसर है। *लेखक विज्ञान व तकनीकी विषयों के जानकार दून विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं।*

Share23SendTweet15
Previous Post

अटल उत्कृष्ट राजकीय इंटर कॉलेज कण्वघाटी में कैच द रैन कार्यक्रम हुआ उत्साहपूर्वक संपन्न

Next Post

गंगोत्री और यमुनोत्री धाम के कपाट श्रद्धालुओं के लिए खुले

Related Posts

उत्तराखंड

2027 में आयोजित होने वाले कुम्भ मेला में उत्तराखंड की देवडोलियों तथा लोक देवताओं के प्रतीकों एवं चल विग्रहों के स्नान और शोभा यात्रा की भव्य व्यवस्थाएं सुनिश्चित होंगी

December 6, 2025
7
उत्तराखंड

‘बच्चों के समग्र विकास हेतु शिक्षा के साथ–साथ बौद्धिक व शारीरिक विकास भी अत्यंत आवश्यक’

December 6, 2025
17
उत्तराखंड

कुलपति, उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय हल्द्वानी को किताबों को नई शिक्षा नीति पर रसायन विज्ञान तथा मिलेट्स पर लिखी किताबें भेंट

December 6, 2025
23
उत्तराखंड

पित्रों की अक्षय तृप्ति हेतु श्रीमद् भागवत कथा ज्ञान यज्ञ कलश यात्रा का होगा शुभारंभ

December 6, 2025
10
उत्तराखंड

डोईवाला: केशवपुरी और जौलीग्रांट में खुलेगा आयुष्मान आरोग्य मंदिर

December 6, 2025
7
उत्तराखंड

हर्बल व जड़ी-बूटी सेक्टर में नवाचार, वैल्यू एडिशन और मार्केटिंग पर दिया जाए जोर- मुख्यमंत्री

December 5, 2025
6

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Popular Stories

  • चार जिलों के जिलाधिकारी बदले गए

    67526 shares
    Share 27010 Tweet 16882
  • डोईवाला : पुलिस,पीएसी व आईआरबी के जवानों का आपदा प्रबंधन प्रशिक्षण सम्पन्न

    45762 shares
    Share 18305 Tweet 11441
  • ऑपरेशन कामधेनु को सफल बनाये हेतु जनपद के अन्य विभागों से मांगा गया सहयोग

    38038 shares
    Share 15215 Tweet 9510
  •  ढहते घर, गिरती दीवारें, दिलों में खौफ… जोशीमठ ही नहीं

    37427 shares
    Share 14971 Tweet 9357
  • विकासखंड देवाल क्षेत्र की होनहार छात्रा ज्योति बिष्ट ने किया उत्तराखंड का नाम रोशन

    37306 shares
    Share 14922 Tweet 9327

Stay Connected

संपादक- शंकर सिंह भाटिया

पता- ग्राम एवं पोस्ट आफिस- नागल ज्वालापुर, डोईवाला, जनपद-देहरादून, पिन-248140

फ़ोन- 9837887384

ईमेल- shankar.bhatia25@gmail.com

 

Uttarakhand Samachar

उत्तराखंड समाचार डाॅट काम वेबसाइड 2015 से खासकर हिमालय क्षेत्र के समाचारों, सरोकारों को समर्पित एक समाचार पोर्टल है। इस पोर्टल के माध्यम से हम मध्य हिमालय क्षेत्र के गांवों, गाड़, गधेरों, शहरों, कस्बों और पर्यावरण की खबरों पर फोकस करते हैं। हमारी कोशिश है कि आपको इस वंचित क्षेत्र की छिपी हुई सूचनाएं पहुंचा सकें।
संपादक

Browse by Category

  • Bitcoin News
  • Education
  • अल्मोड़ा
  • अवर्गीकृत
  • उत्तरकाशी
  • उत्तराखंड
  • उधमसिंह नगर
  • ऋषिकेश
  • कालसी
  • केदारनाथ
  • कोटद्वार
  • क्राइम
  • खेल
  • चकराता
  • चमोली
  • चम्पावत
  • जॉब
  • जोशीमठ
  • जौनसार
  • टिहरी
  • डोईवाला
  • दुनिया
  • देहरादून
  • नैनीताल
  • पर्यटन
  • पिथौरागढ़
  • पौड़ी गढ़वाल
  • बद्रीनाथ
  • बागेश्वर
  • मनोरंजन
  • यात्रा
  • राजनीति
  • रुद्रप्रयाग
  • रुद्रप्रयाग
  • विकासनगर
  • वीडियो
  • संपादकीय
  • संस्कृति
  • साक्षात्कार
  • साहित्य
  • साहिया
  • हरिद्वार
  • हेल्थ

Recent News

2027 में आयोजित होने वाले कुम्भ मेला में उत्तराखंड की देवडोलियों तथा लोक देवताओं के प्रतीकों एवं चल विग्रहों के स्नान और शोभा यात्रा की भव्य व्यवस्थाएं सुनिश्चित होंगी

December 6, 2025

‘बच्चों के समग्र विकास हेतु शिक्षा के साथ–साथ बौद्धिक व शारीरिक विकास भी अत्यंत आवश्यक’

December 6, 2025
  • About Us
  • Privacy Policy
  • Cookie Policy
  • Terms & Conditions
  • Refund Policy
  • Disclaimer
  • DMCA
  • Contact

© 2015-21 Uttarakhand Samachar - All Rights Reserved.

No Result
View All Result
  • Home
  • संपादकीय
  • उत्तराखंड
    • अल्मोड़ा
    • उत्तरकाशी
    • उधमसिंह नगर
    • देहरादून
    • चमोली
    • चम्पावत
    • टिहरी
    • नैनीताल
    • पिथौरागढ़
    • पौड़ी गढ़वाल
    • बागेश्वर
    • रुद्रप्रयाग
    • हरिद्वार
  • संस्कृति
  • पर्यटन
    • यात्रा
  • दुनिया
  • वीडियो
    • मनोरंजन
  • साक्षात्कार
  • साहित्य
  • हेल्थ
  • क्राइम
  • जॉब
  • खेल

© 2015-21 Uttarakhand Samachar - All Rights Reserved.