डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला
पाताल भुवनेश्वर गुफा की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यहां भगवान
शिव और गणेशजी के साथ-साथ तैंतीस कोटि देवी-देवता विराजमान
हैं। इस गुफा के भीतर बद्रीनाथ, केदारनाथ और अमरनाथ के भी दर्शन
होते हैं। बद्रीनाथ में बद्री पंचायत की शिला रूप मूर्तियां देखी जा सकती
हैं जिनमें यम, कुबेर, वरुण, लक्ष्मी, गरुड़ और गणेशजी शामिल
हैं।भारत में भगवान गणेश को घरों और सार्वजनिक पंडालों में विराजने
की तैयारियां जोरों पर है. इस समय मूर्तिकार पूरे जोर-शोर से मूर्तियां
बना रहे हैं. इसमें घरों में स्थापित होने वाली छोटी मूर्ति से लेकर
पंडालों में विराजने वाली बड़ी मूर्तियां भी शामिल हैं. भगवान गणेश के
विभिन्न रूप जैसे बाल गणेश, सिद्धिविनायक और राजा गणपति की
मूर्तियों की डिमांड सबसे ज्यादा रहती है.आगामी 27 अगस्त को गणेश
चतुर्थी का पर्व पूरे देश में मनाया जाएगा. जगह-जगह मूर्तियां बनाई
जा रही हैं और उत्तराखंड की राजधानी देहरादून में इको-फ्रेंडली मूर्तियां
तैयार की जा रही हैं. इन्हें बनाने के लिए बंगाल के मूर्तिकार पहुंचे हैं. ये
मूर्तियां खास हैं क्योंकि इन्हें पुरानी, बांस और मिट्टी से बनाया जाता है.
पिछले कई दशकों से देहरादून के लोग बंगाल के इन कलाकारों का हुनर
देख रहे हैं. यहां आपको ₹2500 से लेकर ₹25000 तक की मूर्तियां
मिल जाएंगी.देहरादून की बंगाली लाइब्रेरी में मिट्टी से गणेश भगवान
की मूर्तियां तैयार करने वाले गौमुख पाल ने बताया कि वह पश्चिम
बंगाल से हैं और बचपन से इस काम में लगे हुए हैं. उन्होंने यह काम
अपने बड़ों से सीखा था. वह पिछले 10 से 15 सालों से मिट्टी से मूर्तियां
बनाने के लिए देहरादून आ रहे हैं. इस बार उनके साथ चार और
मूर्तिकार देहरादून पहुंचे हैं. हर साल गणेश चतुर्थी से तीन महीने पहले
ही वह देहरादून आ जाते हैं और फिर भगवान गणेश की मूर्तियां तैयार
करते हैं. इस बार वह जुलाई के महीने में देहरादून आ गए थे. मिट्टी से
गणपति बप्पा और मां दुर्गा की मूर्तियां तैयार करते हैं. उन्होंने बताया
कि ये इको-फ्रेंडली मूर्तियां होती हैं, जो मिट्टी से बनाई जाती हैं. वह
कुछ सामान कोलकाता से लाते हैं, जो नदियों को दूषित होने से बचाती
हैं जबकि अन्य चीजों से बनी मूर्तियां विसर्जन के दौरान नदियों को
दूषित करती हैं. मिट्टी के साथ ही इन्हें बनाने के लिए पराली, जूट,
कपड़ा आदि का प्रयोग करते हैं. ये पानी के संपर्क में आते ही घुलने
लगती हैं और इन मूर्तियों को काफी पसंद किया जाता है. उनकी मूर्तियां
खरीदने के लिए देहरादून के सहस्त्रधारा, राजपुर और दूर-दूर इलाकों से
लोग यहां आते हैं. उन्होंने बताया कि छोटी मूर्तियां 2 से 3 दिन में
तैयार होती हैं जबकि एक बड़ी मूर्ति को तैयार करने में 8-10 दिन का
समय लग जाता है. मूर्तियों के दाम उस पर किए गए काम पर निर्भर
करते हैं, इसका मतलब है कि जिस मूर्ति को अधिक सजाया जाएगा
और उनका आकार बड़ा होगा, तो उनका दाम भी अधिक होगा. उनके
पास ₹2500 से लेकर ₹25000 तक की मूर्तियां उपलब्ध हैं. गणेश
उत्सव पूरे देश में बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है. भाद्रपद मास की
शुक्ल पक्ष की चतुर्थी काफी खास होती है, क्योंकि इस दिन से अगले 10
दिनों तक गणेश उत्सव मनाया जाता है. गणेश चतुर्थी के पहले दिन
भक्तगण धूमधाम से गणेश जी को घर लेकर आते हैं और उनकी
विधिवत पूजा अर्चना करते हैं. इसके साथ ही बप्पा की सेवा करने के
साथ ही भव्य पंडाल भी बनाते हैं. गणेश जी की सेवा भक्त 10 दिनों
तक विधिवत तरीके से करते हैं. गणेश उत्सव पूरे देश में बड़ी धूमधाम
से मनाया जाता है. भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष की चतुर्थी काफी खास
होती है, क्योंकि इस दिन से अगले 10 दिनों तक गणेश उत्सव मनाया
जाता है. गणेश चतुर्थी के पहले दिन भक्तगण धूमधाम से गणेश जी को
घर लेकर आते हैं और उनकी विधिवत पूजा अर्चना करते हैं. इसके साथ
ही बप्पा की सेवा करने के साथ ही भव्य पंडाल भी बनाते हैं. गणेश जी
की सेवा भक्त 10 दिनों तक विधिवत तरीके से करते हैं. अनंत चतुर्दशी
के दिन उन्हें जल में प्रवाहित करने के साथ अगले साल आने का न्योता
भी देते हैं. गणेश चतुर्थी हिंदू धर्म का एक त्यौहार है, जो समृद्धि, बुद्धि
और विध्यनहर्ता हाथी के सिर वाले देवता गणेश के जन्म के उपलक्ष्य में
मनाया जाता है. त्यौहार की शुरुआत में गणेश की मूर्तियों को घरों में
छोटे मंदिर या भव्य रूप से सजाए गए सार्वजनिक मंदिर, पंडालों में
ऊंचे चबूतरे में स्थापित किया जाता है. शहर भर में कारीगर कई
महिनों से गणेश भगवान की मूर्तियां बनाने में जुट जाते हैं. इनमें छोटी
मूर्ति से लेकर बड़ी बड़ी मूर्तियां बनाई जाती हैं. महाराष्ट्र के रायगढ़
जिले का पेन शहर गणेश प्रतिमाओं के निर्माण के लिए विश्व प्रसिद्ध है.
यहां की मूर्तियां अपनी आंखों की बारीक नक्काशी, भावपूर्ण चेहरे और
सात्विक भाव के लिए जानी जाती हैं. मूर्ति निर्माण की परंपरा एक सदी
से अधिक पुरानी है, और बड़े पैमाने पर उत्पादन 1950 के दशक में
शुरू हुआ. हर साल लाखों मूर्तियां देशभर और विदेशों—अमेरिका,
थाईलैंड, फीजी, बैंकॉकमें भेजी जाती हैं. निर्माण प्रक्रिया में ढलाई,
पेंटिंग और चित्रकारी शामिल है, जिसमें पूरे परिवार की भागीदारी
होती है. पेन की गणेश मूर्तियों को जीआई टैग प्राप्त है, जो उनकी
प्रामाणिकता और विशिष्टता को प्रमाणित करता है. गणेश चतुर्थी का त्योहार न
केवल धार्मिक भावनाओं को प्रकट करता है बल्कि यह समाज में भाईचारे और एकता की
भावना को भी मजबूत करता है। यह अवसर लोगों को एकत्र होने,
मिलजुल कर उत्सव मनाने और सामूहिक रूप से आनंदित होने का
अवसर प्रदान करता है।गणेश चतुर्थी, एक ऐसा त्योहार है जो हमें
भगवान गणेश की भक्ति के साथ-साथ सांस्कृतिक विविधता और
सामाजिक समरसता की भावना को भी सिखाता है। इस प्रकार, यह न
केवल एक धार्मिक उत्सव है बल्कि एक सांस्कृतिक धरोहर भी है, जो
हर साल हमें आनंद और उत्साह का अनुभव कराती है।भारत का हर
कोना रहस्यों और पौराणिक कथाओं से भरा हुआ है। उत्तराखंड की
वादियों में बसी पाताल भुवनेश्वर गुफा ऐसा ही एक दिव्य और अद्भुत
स्थल है। मान्यता है कि जब भगवान शिव ने क्रोध में आकर गणेशजी
का सिर धड़ से अलग कर दिया था, तब माता पार्वती के आग्रह पर
उन्होंने हाथी का मस्तक लगाकर गणेशजी को पुनर्जीवित किया। इसके
बाद भगवान शिव ने कटे हुए सिर को इस गुफा में सुरक्षित रखा।पाताल
भुवनेश्वर गुफा उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले में स्थित है। यह गुफा
पहाड़ के लगभग 90 फीट अंदर है और अंदर जाने के लिए संकरी
सीढ़ियों से होकर गुजरना पड़ता है। यहां भगवान गणेश की शिलामूर्ति
विराजमान है जिसे आदि गणेश के नाम से पूजा जाता है। मान्यता है कि
इस गुफा का उल्लेख स्कंद पुराण के मानस खंड में भी मिलता है।ऐसा
कहा जाता है कि इस गुफा की खोज सबसे पहले त्रेता युग में अयोध्या के
सूर्यवंशी राजा ऋतुपर्ण ने की थी। वे शिकार करते-करते यहां पहुंचे और
गुफा के अंदर महादेव समेत तैंतीस कोटि देवताओं के दर्शन किए। बाद
में 1191 ईस्वी में आदि शंकराचार्य ने इस गुफा को पुनः जगत के सामने
प्रस्तुत किया और इसे आध्यात्मिक दृष्टि से प्रसिद्धिदिलाई।
। *लेखक विज्ञान व तकनीकी विषयों के जानकार दून विश्वविद्यालय में कार्यरत*
*हैं।*