देहरादून। उत्तराखंड में सत्ता के दावेदार भाजपा-कांग्रेस पार्टी के अधिकृत उम्मीदवारों के खिलाफ खड़े हुए अपने दल के विद्रोहियों पर नियंत्रण करने में नाकाम रहे। भाजपा के ग्यारह और कांग्रेस के छह विद्रोही चुनाव मैदान में मौजूद हैं। ये कहीं न कहीं पार्टी के अधिकृत उम्मीदवारों के जीत-हार का कारण बनेंगे।
अपने का अनुशासित और औरों से अलग घोषित करने वाली भाजपा के सबसे अधिक 11 विद्रोही अपनी पार्टी के अधिकृत उम्मीदवारों के खिलाफ खम ठोक रहे हैं। कांग्रेस में यह संख्या 6 है। सोमवार को नाम वापसी के बाद यह स्थिति साफ हुई। दोनों पार्टियों ने इनको पार्टी से छह साल के लिए बाहर कर दिया है।
भाजपा जो अपने को सबसे अधिक अनुशासित पार्टी मानती है, उसी में अधिकृत प्रत्याशियों के खिलाफ सबसे अधिक विद्रोह दिखाई दिया है। अभी भाजपा के नेताओं ने बहुत सारे नेताओं को बैठाया भी, इसके बावजूद ग्यारह विद्रोही बने रहे।
राजनीतिक दलों में कई बार अपनी पार्टी से विद्रोह कर चुके नेताओं को सरपराइज टीटमेंट मिल जाता है, इसलिए बहुत सारे नेता विद्रोही बनने का रिस्क भी उठा लेते हैं। यदि सीट निकल गई और पार्टी बहुमत से थोड़ा पीछे रह गई तो विद्रोह कर सीट जीतने वाले को विशेष टीटमेंट मिलता है। कैबिनेट में उसका स्थान पक्का हो जाता है। यदि विद्रोही हार भी गया लेकिन अच्छे खासे वोट लेने में सफल रहा तो अगली बार उसकी पार्टी में वापसी की स्थिति में उसका टिकट पक्का हो जाता है। यही वजह है कि विद्रोह यदि सफल रहा तो विद्रोह करने वाले के लिए यह एक मुफीद सौदा बन जाता है। यही वजह है कि कई बार विद्रोही को अच्छा खासा फायदा हो जाता है, यही वजह है कि कई नेता पार्टी से विद्रोह का रिस्क लेते हैं और उसका लाभ भी उठा लेते हैं। विद्रोह की यही मुख्य वजह लगती है।