

पुरोला।…कमल सिराईं के करड़ा गांव में पाँच दिवसीय थात पूजन का धूम.धाम से हुआ समापन। परम्पराओं का अनूठा मेल देखने को मिलता है थात पूजा में।…हर पांच वर्षों में गांव की सुख.शांति व समृद्धि के लिए की जाती है थात पूजा। .
गांव के मिट्टी भूमि, अस्त्र.शस्त्र तथा माता के स्वरूप थात जाग की जाती है पूजा।…गांव के बाहर कच्चे सूत व सात प्रकार के अनाज को मिला कर बुरी आत्माओं से सुरक्षा को लेकर घुमाया जाता है बंधन।…गांव के चार दिशाओं के रास्तों पर की जाती है विशेष पूजा अर्चना। पुरोला विकासखण्ड के कमल सिराईं के करड़ा गांव में चल रहे पांच दिवसीय थात जाग माता की विशेष पूजा अर्चना कर समापन किया गया। थात माता की यह विशेष पूजा अर्चना हर पांच वर्षों में गांव की शुख.शांति व समृद्धि के लिए 5 से 9 दिनों तक की जाती है, हालांकि इस वर्ष कोरोना के चलते केवल 5 दिन तक ही रखा गया था अनुष्ठान।
थात पूजन के इस विशेष पूजन में जंहा संस्कृति की अनुपम झलक देखने को मिलती है। वंही दशकों से चलती आ रही परम्पराओं का नजारा देखने को मिलता है। हिमाचल के मनेवटी गांव से पांडुलिपि के विद्वान पण्डित पांडेय जाति के ब्राह्मण इस अनूठी पूजा को कई पीढ़ियों से करते आ रहे हैं। हस्त लिखित पांडुलिपि के ग्रंथों से ही पण्डित जिन्हें पण्डवाण कहा जाता है 5 से 9 दिनों तक थात के मध्य भाग में प्राचीन काल से बनी हवन कुंड में हवन के साथ साथ विशेष पूजन करते हैं। अंतिम दिवस पर अपने अपने खेतों से हर ग्रामीण मिट्टी एकत्रित कर विशेष पूजा में लाते हैं पूजा के उपरांत उस मिट्टी को पुनः उन्ही खेतों में डाल दिया जाता है जो अन्न धन की समृद्धि का संकेत देता है। वंही अपने घरों में रखे गए लाइसेंसी अस्त्र व कृषि से सम्बंधित पारम्परिक कृषि यंत्रों व औजारों को भी इस विशेष पूजा में पूजन के लिए सामिल किया जाता है। वंही अंतिम दिवस पर बकराएखाडूए मुर्गाएसुवर के साथ साथ श्रीफलएकद्दू आदि कई फलों की गांव के बाहर बंधन करते हुए बली की परंपरा अभी भी कायम है। गांव के पूर्व प्रधान व स्याणा जगमोहन रावतएधीरपाल रावतएविनोद रतूड़ी आदि ने बताया कि यह पूजा हर पांच वर्षों में होती है जिसके लिए पूर्वजों के समय से ही हिमांचल के मनेवटी गांव से पण्डवाण लाये जाते हैं।
वंही थात पूजा के लिए आये पण्डित बबिता पांडेयएविनीत पांडेय व विवेक पांडेय ने बताया कि यह पण्डवाणी लिपि हमारी पारम्परिक व पैतृक धरोहर है जिसको आज हमारी नई पीढ़ी भी संजोए रखने का काम कर रही है हमारे पास पण्डवाणी लिपि में जो साँचा ;ग्रन्थद्ध है यह हस्तलिखित है जो सदियों से ही चलता आ रहा है कहा जाता है कि हिमालयी क्षेत्रों में पांडवों के वनवास काल के समय से ही यह लिपि मिली है जिसकी भाषा संस्कृत से भिन्न हैं। समापन दिवस पर ग्राम प्रधान अंकित रावत, नेपाल सिंह रावत, मनोज रतूड़ी, जवाहर सिंह भंडारी, बुद्धि सिंह भंडारी, गंगाराम, रणदास, प्रताब रावत, जगदीश, प्रकाश, गोपाल सिंह, सरदार सिंह आदि ग्रामीण उपस्थित रहे।