डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला
देवभूमि उत्तराखंड के कुमाऊं अंचल में स्थित मुन्स्यारी के सौन्दर्य के बारे में स्थानीय कुमाऊँनी भाषा में एक उक्ति प्रसिद्ध है “सार संसार, एक मुनस्यार”। जिसका अर्थ है कि सारा सात महाद्वीपों युक्त संसार एक तरफ और मुन्स्यारी का सौंदर्य एक तरफ यानि चाहे आप सारे संसार का भ्रमण कर लें, लेकिन यदि आपने मुन्स्यारी नहीं देखा तो फिर पूरा संसार नहीं देखा। वास्तव में ही मुन्स्यारी की पूरी खूबसूरती इसके सामने हिमाच्छादित पर्वत श्रृंखलाओं और नजदीक के सुन्दर प्राकृतिक स्थलों और यहां की मोहक सांस्कृतिक विरासत में निहित है।उत्तराखंड के पूर्वी पहाड़ी जिले पिथौरागढ़ में स्थित मुनस्यारी, पूर्व की ओर नेपाल तथा उत्तर में तिब्बत की सीमा से लगे सीमांत क्षेत्र में छोटा सा पहाड़ी कस्बा है, जिसे ‘लिटिल कश्मीर’ के नाम से भी जाना जाता है। यह क्षेत्र प्रकृति प्रेमियों, साहसिक खेल प्रेमियों और पर्वतारोहियों के लिए एक तीर्थस्थल के समान है। यहाँ से हिमालय पर्वतमाला की पंचचूली हिम-श्रृंखला का एक मनमोहक दृश्य मन को प्रफ़ुल्लित कर देता है। विस्मयकारी हिमालय की पांच चोटियों वाली पंचाचूली पर्वतमाला, जिसे कोई पांच पांडवों के स्वर्गारोहण करने के दौरान प्रयोग की गई पांच चूलियां (कुमाऊँनी में चुल्हा) कहते हैं और यह भी कहते हैं की पांडवों ने अपनी अंतिम यात्रा में स्वर्ग की ओर बढ़ने से पहले हिमालय क्षेत्र में आखिरी बार यहीं पर खाना बनाया था। तो कोई इन चोटियों को हिमालय पर साक्षात रहने वाले देवों के देव महादेव के पंचमुखी पांच रूप मानते हैं। उत्तराखंड के मुनस्यारी का राजमा देशभर में प्रसिद्ध है. इसका स्वाद, बनावट और गुणवत्ता इसे बाजार में सबसे अलग बनाती है लेकिन कुछ समय से बाजार में दूसरे राजमा को मुनस्यारी के नाम पर बेचा जा रहा है, जिससे उपभोक्ता मुनस्यारी के असली राजमा की जगह महंगे दाम पर दूसरा राजमा खरीद रहे हैं. ऐसे में जरूरी है कि उपभोक्ता कुछ अहम बातों से मुनस्यारी के असली राजमा की पहचान कर सकें. उत्तराखंड के मुनस्यारी के राजमा की पहली खासियत यह है कि यह पकने में अन्य सामान्य राजमा की तुलना में कम समय लेता है. जब इसे पकाया जाता है, तो यह बेहद नरम और घी की तरह मुलायम हो जाता है. इसका स्वाद भी बेहद उम्दा और अलग होता है. अगर राजमा उबालने पर ज्यादा समय लेता है और ज्यादा कड़ा महसूस होता है, तो समझिए यह मुनस्यारी का राजमा नहीं है.बागेश्वर निवासी जानकार ने कहा कि मुनस्यारी के राजमा को भौगोलिक संकेत टैग मिला है, जो इसे विशिष्टता प्रदान करता है. यह टैग यह साबित करता है कि यह उत्पाद मुनस्यारी क्षेत्र में ही पैदा हुआ है और उसकी गुणवत्ता, उत्पादन प्रक्रिया और परंपरा उस क्षेत्र से जुड़ी हुई है. जब भी आप मुनस्यारी का राजमा खरीदें, तो पैकिंग पर GI टैग या संबंधित प्रमाणपत्र की जांच अवश्य कर लें. उन्होंने कहा कि मुनस्यारी का राजमा आमतौर पर लाल रंग का और एक समान आकार का होता है. इसके दाने चमकदार होते हैं और छूने में चिकने लगते हैं. बाजार में कई बार मिलते-जुलते दिखने वाले राजमा को मुनस्यारी का राजमा बताकर बेचा जाता है लेकिन उसकी बनावट में असमानता, रंग में हल्कापन और आकार में भिन्नता देखी जा सकती है.असली उत्पादकों को भी नुकसान
उन्होंने आगे कहा कि बाजार में बढ़ती मांग को देखते हुए कई व्यापारी लाभ कमाने के लिए मुनस्यारी के नाम पर नकली राजमा बेच रहे हैं. इससे न सिर्फ उपभोक्ता ठगा जा रहा है बल्कि असली उत्पादकों को भी नुकसान हो रहा है. ऐसे में उपभोक्ताओं को जागरूक रहना चाहिए और बताए गए तरीकों से जांच कर ही मुनस्यारी का राजमा खरीदना चाहिए. इस प्रकार थोड़ी सी सावधानी और जानकारी अपनाकर आप मुनस्यारी के असली राजमा का स्वाद ले सकते हैं और नकली उत्पादों से बच सकते हैं. इससे न केवल आपके पैसे की बचत होगी बल्कि स्वास्थ्य और स्वाद का भी पूरा आनंद मिलेगा. यह राजमा आमतौर पर करीब 500 रुपये प्रति किलो मिलता है. सात हजार फीट से अधिक ऊंचाई वाले उच्च हिमालयी आदि गांवों में पैदा होने वाली राजमा को मुनस्यारी के राजमा नाम से जाना जाता है। अपने स्वाद के चलते विशेष पहचान रखती है। मैदानी क्षेत्रों में पैदा होने वाली राजमा से आकार में कुछ बड़ी सीमांत की राजमा पूरी तरह जैविक तरीके से उत्पादित की जाती है। इसके उत्पादन में किसी तरह की रासायनिक खाद का उपयोग नहीं होता है। मुनस्यारी राजमा की खेती की प्रक्रिया इस भौगोलिक क्षेत्र की विशिष्टता है। ग्रामीण समुदाय पीढ़ियों से चली आ रही पारंपरिक खेती और उत्पादन विधियों को सख्ती से अपनाता है। पहाड़ी क्षेत्र पर ऊंचाई और ढलान होने के कारण जमीन में ज्यादातर काम हाथ से ही किये जाते हैं। चूँकि इस क्षेत्र में सर्दियों के मौसम में और अप्रैल तक अच्छी बर्फबारी होती है, बर्फ पिघलने के बाद मिट्टी सही मात्रा में नमी से समृद्ध होती है। अच्छी गुणवत्ता वाले कार्बनिक पदार्थ से मिट्टी का स्वास्थ्य उत्कृष्ट है। यहां पाई जाने वाली अच्छी जल निकास वाली दोमट मिट्टी राजमा की खेती के लिए उपयुक्त है। राजमा की खेती मई से सितंबर के बीच होती है। लाल रंग का मुनस्यारी राजमा भारतीय व्यंजनों में मुख्य भोजन है, जिसे मुख्य रूप से उबले हुए चावल के साथ परोसा जाता है। इसमें प्रोटीन की मात्रा अधिक होती है, खनिज, मैंगनीज, तांबा का समृद्ध स्रोत होता है और इसमें आहार फाइबर होता है। मुनस्यारी राजमा प्रकृति की देन है। इसमें अन्य दालों और फलियों जैसे मटर और फलियों की तुलना में कम सूखा पदार्थ और लगभग आधा पानी होता है। राजमा की प्रोटीन युक्त गुणवत्ता भी सभी दालों और फलियों की तुलना में बहुत बेहतर होती है, जिसका श्रेय इसके नाइट्रोजन और अमीनो एसिड के उच्च प्रतिशत को दिया जा सकता है। राजमा या रेड बीन्स प्रोटीन और मिनरल से भरपूर होते हैं। राजमा विभिन्न प्रकार के व्यंजनों के पीछे मुख्य सामग्री है और जो लोग अपने रक्तचाप को बनाए रखना चाहते हैं उनके लिए यह स्वस्थ है उत्तराखंड की सीमांत तहसील मुनस्यारी और धारचूला में आठ हजार हजार से दस हजार फीट की ऊंचाई पर बसे गांवों के ग्रामीण राजमा का उत्पादन करते हैं। दोनों तहसीलों में सफेद और चितकबरे रंग की राजमा उत्पादित होती है। उच्च हिमालय की विशेष जलवायु में पैदा होने वाली यह राजमा जहां पौष्टिकता से भरपूर होती है, वहीं मैदानी क्षेत्रों में होने वाली राजमा की तुलना में इसका स्वाद विशेष होता है। जल्द पकने वाली यह राजमा पाचन में भी आसान होती है। इन्हीं गुणों के चलते मुनस्यारी और धारचूला में उत्पादित होने वाली राजमा की विशेष मांग रहती है। नवंबर मध्य तक यह बाजार में पहुंच जाती है। मुनस्यारी राजमा की खेती इस भौगोलिक क्षेत्र की विशिष्ट है। यहाँ का ग्रामीण समुदाय पीढ़ियों से चली आ रही पारंपरिक खेती और उत्पादन पद्धतियों को सख्ती से अपनाता है। पहाड़ी क्षेत्र की ऊँचाई और ढलान के कारण, यहाँ ज़्यादातर काम हाथ से ही किए जाते हैं। चूँकि इस क्षेत्र में सर्दियों के मौसम में और अप्रैल तक अच्छी बर्फबारी होती है, इसलिए बर्फ पिघलने के बाद मिट्टी पर्याप्त मात्रा में नमी से भरपूर होती है। यहाँ की मिट्टी का स्वास्थ्य उत्तम है और इसमें अच्छी गुणवत्ता वाले कार्बनिक पदार्थ मौजूद हैं। यहाँ पाई जाने वाली अच्छी जल निकासी वाली दोमट मिट्टी राजमा की खेती के लिए उपयुक्त है। राजमा की खेती मई से सितंबर के बीच होती है। राजमा की खेती आलू और मक्के के खेतों में मिश्रित फसल के रूप में की जाती है। रिकॉर्ड बताते हैं कि मुनस्यारी क्षेत्र में लगभग 100-120 हेक्टेयर भूमि पर राजमा की खेती होती है, जिसका वार्षिक उत्पादन 1000-1200 क्विंटल होता है और अनुमानित मूल्य 50-60 लाख रुपये प्रति वर्ष है। मुनस्यारी राजमा की कीमत बाज़ार में बिकने वाली अन्य किस्मों की तुलना में 5-10 रुपये प्रति किलोग्राम अधिक होती है।यह देशी राजमा पोषक तत्वों से भरपूर है और पारंपरिक व्यंजनों का एक अभिन्न अंग है। चूँकि यह दाल खनिज समृद्ध मिट्टी में उगाई जाती है, इसलिए यह घुलनशील फाइबर, प्रोटीन और फाइटोकेमिकल्स का एक बड़ा स्रोत है। इसका ग्लाइसेमिक इंडेक्स कम होता है और यह ऑक्सीडेटिव तनाव, हृदय रोगों, मधुमेह और कैंसर से बचाता है।इस छोटे आकार के राजमा की बनावट, कोमलता, मिठास और सुगंध अनोखी और सूक्ष्म होती है और इसे पकाने में राजमा की अन्य किस्मों की तुलना में 25 से 30 मिनट कम समय लगता है। सफेद राजमा आकार में बड़ा होता है और इसका छिलका पतला और सफेद होता है। इसमें आयरन, कैल्शियम, मैग्नीशियम, पोटेशियम और जिंक जैसे खनिज प्रचुर मात्रा में होते हैं *लेखक विज्ञान व तकनीकी विषयों के जानकार दून विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं।*












