डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला
उत्तराखंड में राज्य गठन के बाद खाद्यान्न उत्पादन तो बढ़ा है, लेकिन खेती का रकबा साल दर साल घटा है। कृषि क्षेत्रफल दो लाख हेक्टेयर कम होने के बाद भी उत्पादन में एक लाख मीट्रिक टन की बढ़ोतरी हुई है। शहरीकरण के चलते देश दुनिया में प्रसिद्ध देहरादून बासमती की खुशबू गायब हो गई। वहीं, मोटे अनाज, जैविक व सगंध फसलों की खेती से उत्तराखंड को फिर से वैश्विक स्तर पर पहचान मिली है।राज्य गठन के समय उत्तराखंड में कृषि का कुल क्षेत्रफल 7.70 लाख हेक्टेयर था। जो 25 साल में घटकर 5.68 लाख हेक्टेयर पर पहुंच गई है। शहरीकरण, अवस्थापना विकास, पलायन, जंगली जानवरों की समस्या भी कृषि क्षेत्र में कमी का मुख्य कारण रहा है। जिससे परती भूमि का क्षेत्रफल (ऐसी भूमि जिस पर पहले खेती होती थी) भी 1.07 हेक्टेयर से बढ़कर तीन लाख हेक्टेयर तक पहुंच गई है। 2000-01 में राज्य में खाद्यान्न उत्पादन 16.47 लाख मीट्रिक टन था। जो बढ़कर 17.52 लाख मीट्रिक टन पहुंचा है। राज्य बनने से पहले देहरादून व आसपास के क्षेत्रों में बड़े स्तर पर बासमती चावल की खेती होती थी। इसके अलावा देहरादून में चाय की पैदावार की जाती थी। लेकिन राज्य बनने के बाद तेजी से शहरीकरण हुआ। खेती की जमीनों पर आवासीय व व्यावसायिक भवनों का निर्माण हो गया, जिससे बासमती चावल की खुशबू भी समाप्त हो गई। प्रेमनगर के समीप चाय बागान भी झाड़ियों में तब्दील हो गए। राज्य बनने से पहले उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों में मोटे अनाज के रूप में मंडुवा, झंगोरा बड़े पैमाने पर होता था। लेकिन इसका इस्तेमाल लोग अपने ही करते थे। 25 साल में फिर से राज्य के मोटे अनाजों को अंतरराष्ट्रीय बाजार में पहचान मिली है। मंडुवा व झंगोरा के व्यंजन आज फाइव स्टार होटल में परोसे जा रहे हैं। शहरों में बड़े-बड़े मॉल में भी मंडुवा बिक रहा है। मोटे अनाजों को प्रोत्साहित करने के लिए प्रदेश सरकार ने राज्य मिलेट मिशन शुरू किया है। मंडुवे को जीआई टैग प्रमाणीकरण किया गया। उत्तराखंड के जैविक उत्पादों की मांग लगातार बढ़ रही है। प्रदेश में 4.50 लाख से अधिक किसान जैविक खेती कर रहे हैं। 2.50 लाख हेक्टेयर पर किसान जैविक खेती कर रहे हैं। प्रदेश सरकार हाउस ऑफ हिमालयाज ब्रांड के माध्यम से जैविक उत्पादों को मार्केटिंग को बढ़ावा दे रही है। उत्तराखंड जैविक उत्पाद परिषद के माध्यम से भी राज्य के जैविक उत्पादों को राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मार्केटिंग व ब्रांडिंग की जा रही है। उत्तराखंड के हर्षिल, मुनस्यारी, जोशीमठ व चकराता की राजमा स्वाद के लिए प्रसिद्ध है। वहीं, उत्तरकाशी का लाल चावल की अपनी पहचान है। प्रदेश के पर्वतीय क्षेत्रों में गहत, काला भट्ट, तुअर दाल का उत्पादन होता है। विषम भौगोलिक परिस्थितियों वाले चमोली और अल्मोड़ा जिलों में कृषि के समक्ष अनेक चुनौतियां मुंहबाए खड़ी हैं। अल्मोड़ा जिला पलायन की मार से सर्वाधिक प्रभावित है तो चमोली के तमाम गांवों को मौसम की मार से जूझना पड़ता है। इस सबका असर खेती-किसानी पर पड़ा है।खेती में कम उत्पादकता, आजीविका के अपेक्षाकृत कम संसाधनों के चलते क्रय शक्ति में कमी, सिंचाई व्यवस्था का अभाव, कौशल विकास व उद्यमिता को प्रभावी उपाय न होने समेत अन्य कारणों से यह दोनों जिले अन्य जिलों की अपेक्षा पिछड़े हैं। इस बीच केंद्रीय कैबिनेट ने कृषि की दृष्टि से देशभर में 100 आकांक्षी जिलों के प्रस्ताव को हरी झंडी दी। इसमें अल्मोड़ा व चमोली को भी शामिल किया गया है।दोनों जिलों को प्रधानमंत्री धन धान्य कृषि योजना के तहत सरसब्ज बनाया जाएगा। इसके लिए छह साल की अवधि तय की गई है। विभिन्न विभागों की योजनाओं के क्रियान्वयन के दृष्टिगत केंद्र ने नोडल अधिकारी भी नामित कर दिए हैं।केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्रालय में संयुक्त सचिव को अल्मोड़ा और पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्रालय में संयुक्त सचिव को चमोली का नोडल अधिकारी नामित किया है। इन जिलों में प्रधानमंत्री धन धान्य कृषि योजना के तहत किए जाने वाले कार्यों की निगरानी नीति आयोग करेगा। पहाड़ों में स्थानीय संसाधनों को ध्यान में रखकर कुटीर उद्योगों को बढ़ावा दिया जाना चाहिए। स्थानीय रोजगार मिलने से पलायन में कुछ कमी आयेगी व कुछ लो जो पलायन कर चुके हैं उनके भी वापस आने की संभावना बन सकती है। स्कूली शिक्षा में कौशल विकास की शिक्षा जैसे इलेक्ट्रैशियन, कारपेंटर, राज मिस्त्री, स्कूटर मोटर साइकिल मैकेनिक आदि क्षेत्र में दी जानी चाहिए जो कि पहाड़ों पर जरूरत है। सूचना क्रांति के युग में भी पहाड़ों पर टेलीफोन व व इंटरनेट की समुचित सुविधा नहीं है जो सुविधा है उसकी गुणवत्ता में सुधार की जरूरत है। कृषि इनपुट (आदानों) का सचल वाहनों के माध्यम से सीजन के शुरू में संपूर्ण पहाड़ी क्षेत्रों में उपलब्धता सुनिश्चित की जानी चाहिए। साथ में पैदावार का किसानों को उचित मूल्य मिले। यह सुनिश्चत किया जाना चाहिए। उत्तराखंड सरकार को हल्दी, अदरक, मिर्च आदि का समर्थन मूल्य सुनिश्चित कर इनकी समय पर खरीददारी की जानी चाहिए व सभी सरकारी विभागों में इनकी आपूर्ति की जानी चाहिए।यदि हो सके तो आर्गेनिक ब्राडिंग पर मिशन मोड में कार्य शुरू किया जाना चाहिए। वन पंचायतों का यदि समुचित प्रबंध किया जाये तो यह भी आय के अच्छे साधन हो सकते हैं और जो पत्ते आग से जलते हैं उनसे आर्गेनिक खाद बनाई जा सकती है या अन्य उपयोगी चीजें भी बनाई जा सकती हैं। बेमौसमी फल व सब्जी से अत्यधिक आय हो सकती है बशर्ते प्रयास दिखावा मात्र न हो और समूह चाहे गांवों का हो या विकास खंडों का हो एक फसल का चयन कर उत्पादन कराया जाये ताकि विपणन हेतु समुचित मात्रा हो। एक ब्लाक एक फसल जैसी योजना बनाकर किसानों को प्रोत्साहित किया जाये किसानों की हैंड होल्डिंग करके योजनाओं को धरातल पर उतारना होगा। प्रवासी उत्तराखंडियों को कम से कम एक दो माह उत्तराखंड में रहना चाहिए। मुख्यतया जो स्वस्थ सेवानिवृत लोग हैं ताकि उनके आगमन से क्षेत्र के लोगों को उनकी खरीदारी से कुछ आर्थिक सहायता मिलेगी साथ ही साथ उनके ज्ञान से बौद्धिक विकास में भी मदद मिलेगी। मेरा मानना है कि ऐसा करके हम कह पायेंगे कि चलो देर है पर अंधेर नहीं।पहाड़ों में स्थानीय संसाधनों को ध्यान में रखकर कुटीर उद्योगों को बढ़ावा दिया जाना चाहिए। स्थानीय रोजगार मिलने से पलायन में कुछ कमी आयेगी व कुछ लो जो पलायन कर चुके हैं उनके भी वापस आने की संभावना बन सकती है। स्कूली शिक्षा में कौशल विकास की शिक्षा जैसे इलेक्ट्रैशियन, कारपेंटर, राज मिस्त्री, स्कूटर मोटर साइकिल मैकेनिक आदि क्षेत्र में दी जानी चाहिए जो कि पहाड़ों पर जरूरत है। सूचना क्रांति के युग में भी पहाड़ों पर टेलीफोन व व इंटरनेट की समुचित सुविधा नहीं है जो सुविधा है उसकी गुणवत्ता में सुधार की जरूरत है। कृषि इनपुट (आदानों) का सचल वाहनों के माध्यम से सीजन के शुरू में संपूर्ण पहाड़ी क्षेत्रों में उपलब्धता सुनिश्चित की जानी चाहिए। साथ में पैदावार का किसानों को उचित मूल्य मिले। यह सुनिश्चत किया जाना चाहिए। उत्तराखंड सरकार को हल्दी, अदरक, मिर्च आदि का समर्थन मूल्य सुनिश्चित कर इनकी समय पर खरीददारी की जानी चाहिए व सभी सरकारी विभागों में इनकी आपूर्ति की जानी चाहिए।यदि हो सके तो आर्गेनिक ब्राडिंग पर मिशन मोड में कार्य शुरू किया जाना चाहिए। वन पंचायतों का यदि समुचित प्रबंध किया जाये तो यह भी आय के अच्छे साधन हो सकते हैं और जो पत्ते आग से जलते हैं उनसे आर्गेनिक खाद बनाई जा सकती है या अन्य उपयोगी चीजें भी बनाई जा सकती हैं। बेमौसमी फल व सब्जी से अत्यधिक आय हो सकती है बशर्ते प्रयास दिखावा मात्र न हो और समूह चाहे गांवों का हो या विकास खंडों का हो एक फसल का चयन कर उत्पादन कराया जाये ताकि विपणन हेतु समुचित मात्रा हो। एक ब्लाक एक फसल जैसी योजना बनाकर किसानों को प्रोत्साहित किया जाये किसानों की हैंड होल्डिंग करके योजनाओं को धरातल पर उतारना होगा। प्रवासी उत्तराखंडियों को कम से कम एक दो माह उत्तराखंड में रहना चाहिए। मुख्यतया जो स्वस्थ सेवानिवृत लोग हैं ताकि उनके आगमन से क्षेत्र के लोगों को उनकी खरीदारी से कुछ आर्थिक सहायता मिलेगी साथ ही साथ उनके ज्ञान से बौद्धिक विकास में भी मदद मिलेगी। मेरा मानना है कि ऐसा करके हम कह पायेंगे कि चलो देर है पर अंधेर नहीं। *लेखक विज्ञान व तकनीकी विषयों के जानकार दून विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं*












