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अत्यधिक दोहन से रतनजोत संकट में

12/11/19
in उत्तराखंड, हेल्थ
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https://uttarakhandsamachar.com/wp-content/uploads/2025/11/Video-60-sec-UKRajat-jayanti.mp4

डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला
जड़ी.बूंटियों में शक्तिशाली औषधीय गुण होते हैं, इसलिए बहुत सारी बीमारियों को ठीक करने के लिए जड़ी.बूंटियों का सेवन करना लाभकारी होता है। भारत में आयुर्वेद के अनुसार प्राचीन काल से ही हर्ब्स का उपयोग बीमारियों को ठीक करने में किया जाता रहा है। रतनजोत बोरेजिनेसी पादप कुल का एक अत्यन्त महत्त्वपूर्ण औषधीय पौधा है, जिसको अनेक प्रकार की औषधियाँ बनाने तथा भोजन में मसाले के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। जंगलों से इसके अत्यधिक दोहन के कारण इसका अस्तित्व संकट में आ चुका है, इसलिये सरकार ने जंगलों से इसके दोहन पर रोक लगा दी है। रतनजोत के अलावा इसे कई अन्य नामों से भी जाना जाता है, जैसे.हिमालयन आर्नेबिया, महारंगी, महारंगा, उल्टे भूतकेश, लालजड़ी, अंजनकेशी, रक्तदल और दामिनी बालछड़ आदि। कुछ अन्य पौधों को भी रतनजोत के नाम से बाजार में जाना जाता है, जिनमें जेट्रोफा कर्कस तथा ओनोस्मा ब्रैक्टिएटम शामिल हैं। इन दोनों पौधों के रूप, आकार तथा गुण इस रतनजोत से बिल्कुल भिन्न होते हैं।
जेट्रोफा अपने बीजों से निकलने वाले एक इंडस्ट्रियल तेल के लिये प्रसिद्ध है तथा इसका पौधा झाड़ीनुमा होता है जो अधिक पुराना होने पर छोटे पेड़ के आकार का हो जाता है। इसके बीजों से निकलने वाला तेल जहरीला होता है तथा किसी भी रूप में खाने में प्रयोग नहीं किया जाता है। इस तेल का इस्तेमाल बायोडीजल बनाने में किया जाता है। रतनजोत के नाम से जाना जाने वाला अन्य पौधा ओनोस्मा ब्रैक्टिएटम एक बड़ा पेड़ होता है जो खुद एक संकटग्रस्त पौधा है। इसका प्रयोग कैंसर की दवाइयाँ बनाने में किया जाता है। इस लेख में वर्णित रतनजोत लगभग एक मीटर की ऊँचाई के आकार का होता है और ऊँचे पहाड़ों पर 3 से 4.5 हजार मीटर की ऊँचाई तक पाया जाता है, जबकि अन्य दोनों पौधे मैदानी इलाकों में पाये जाते हैं। अतः पाठकों को इन तीनों पौधों में अन्तर होने का ज्ञान होना आवश्यक है अन्यथा इनके विपरीत गुणधर्म होेने के कारण प्रयोग करने के दौरान कुप्रभावों का सामना करना पड़ सकता है।
इस लेख में उस रतनजोत का वर्णन किया जा रहा है जिसका नाम आर्नेबिया बेन्थामाई है जिसकी ऊँचाई आमतौर पर 50 से 60 सेंटीमीटर परन्तु अधिकतम एक मीटर तक हो सकती है। इसका पौधा मजबूत तने युक्त होता है जिस पर घने रोएँदार लम्बी पतली तथा अग्रभाग पर नुकीली पत्तियाँ तथा लाल.बैंगनी रंग के पुष्प खिलते हैं। पुष्प मई से जुलाई महीने के दौरान खिलते हैं। यह पौधा हिमालय में कश्मीर से नेपाल तक प्राकृतिक रूप में उगता हुआ देखा जा सकता है। इस पौधे को खेत या किचन.गार्डन में उगाने के लिये बसन्त ऋतु के समय बीजों को ग्रीन.हाउस या छायादार स्थान पर नर्सरी में बोया जाता है। नर्सरी तैयार करने के लिये मिट्टी में गोबर या फॉर्म की खाद मिलाकर अच्छी तरह बारीक करके मिला लेना चाहिए। ध्यान रहे कि बीजों की बुआई के समय मिट्टी में पर्याप्त नमी होनी चाहिए। उसके बाद मिट्टी में बीजों की बुआई करके नमी को संरक्षित करने के लिये ऊपर से घास.फूस से ढँक देना चाहिए। नर्सरी में बुआई के 15 दिन से 2 महीने के अन्दर पौध, खेत या किचन गार्डन में रोपाई के लिये तैयार हो जाती है। मिट्टी में पोषक तत्वों की पर्याप्त मात्रा सुनिश्चित करने के लिये मिट्टी की जाँच करना आवश्यक है, ताकि पौधों की बढ़वार के समय पौधे अपनी सम्पूर्ण वानस्पतिक वृद्धि प्राप्त कर सकें। पौधों की उचित बढ़वार के लिये आवश्यकतानुसार पानी लगाते रहना चाहिए। चूँकि आमतौर पर पहाड़ों पर पथरीली तथा कंकर.पत्थरयुक्त भूमि होती है जिसकी जल धारण क्षमता कम होती है, अतः सिंचाई हल्की तथा जल्दी.जल्दी करने की आवश्यकता होती है। फसल परिपक्व होने पर ज्यादा सूखने से पहले ही फसल को काटकर बीजों को एकत्रित कर लिया जाता है, अन्यथा बीजों के खेत में ही झड़ने की आशंका बनी रहती है रतनजोत के अनेक उपयोग हैं।
इसका सबसे प्रचलित उपयोग सब्जी की करी को लाल रंग प्रदान करने के लिये माना जाता है। इसकी जड़ से लाल रंग का पदार्थ प्राप्त होता है, जिसका प्रयोग खाद्य पदार्थों को लाल रंग देने के लिये होता है, जैसे भारत के केरोगन जोश व्यंजन की करी का लाल रंग अक्सर इससे तैयार किया जाता है। इसके अलावा दवाइयों, तेलों, शराब आदि में भी इसके लाल रंग का इस्तेमाल किया जाता है। कपड़े रंगने के लिये भी इसका प्रयोग किया जाता है।
वास्तव में रतनजोत नाम इस पौधे की जड़ से निकलने वाले रंग का है लेकिन कभी.कभी पूरे पौधे को भी इसी नाम से पुकारा जाता है। आधुनिक काल में 103 के नामांकन वाला खाद्य रंग जिसे अल्कैनिन भी कहते हैं, इसी से बनता है। देश के अलग.अलग हिस्सों में अलग.अलग लोगों द्वारा रतनजोत को अनेक स्वास्थ्य लाभों तथा समस्याओं के लिये उपयोग में लाया जाता है, जैसे मसाले के रूप में उपयोग के अलावा रतनजोत का उपयोग आँखों की रोशनी सुधारने और बालों को काला करने के लिये भी किया जाता है। इसके लिये सबसे पहले मेंहदी का पेस्ट बनाया जाता है। इसके बाद इस पेस्ट में रतनजोत मिलाकर गर्म करते हैं। जब यह गर्म हो जाय तो ठंडा होने के लिये रखा जाता है और ठंडा होने पर इसे बालों में लगाकर कम.से.कम 15 से 20 मिनट के लिये छोड़ा दिया जाता है और अन्त में सिर को पानी से धो लिया जाता है। जिस वनस्पति तेल का हम घरों में प्रयोग करते हैं, उस तेल में रतनजोत के थोड़े से टुकड़े डालकर अच्छी तरह से मिलाएँ। इसके मिलाने से तेल का रंग तो सुन्दर होता ही है साथ ही इसे बालों में लगाने से बाल स्वस्थ और काले भी बने रहते हैं। इसके साथ ही इस तेल का प्रयोग करने से मस्तिष्क की ताकत भी बढ़ती है। बालों को स्वस्थ रखने के लिये एक किलोग्राम सरसों का तेल, 100-100 ग्राम मेंहदी के पत्ते, जल भांगर के पत्ते और आम की गुठलियों को आपस में मिलाकर, सरसों के तेल को छोड़कर कूट लें। जब यह कूट जाय तो इसे निचोड़ लें। निचोड़ने के बाद इसे सरसों के तेल में इतना उबाल लें कि इसका पानी खत्म हो जाय और केवल तेल बचे। अब इस तेल को छानकर अलग कर लें। इस तरह से यह एक औषधि तैयार है।
इस तेल को रोजाना सिर पर लगाने से बाल काले हो जाते हैं। इस तेल को लगाने के साथ.ही.साथ कम.से.कम 250 ग्राम दूध का सेवन करना चाहिए। यह उपचार बेहद कारगर बताया जाता है।आँवले को पीसकर बारीक चूर्ण बना लें। इस चूर्ण में नीबू का रस और रतनजोत मिलाकर मिश्रण बनाएँ। इस तैयार मिश्रण को बालों में लेप की तरह लगा लें। इस लेप को लगभग 15 से 20 मिनट तक रखें और सिर धो लें। ऐसा करने से बाल काले हो जाते हैं। आँवला और लौह चूर्ण को आपस में मिलाकर पानी के साथ पीस लें। इसे अपने बालों में लगा लें और कुछ समय बाद सिर धो लें। ऐसा करने रतनजोत के उपरोक्त वर्णित परम्परागत उपयोगों के अतिरिक्त बाजार में उपलब्ध अनेक औषधियों में भी एक अवयव के रूप में इसका उपयोग दर्दनिवारक, एंटीफंगल तथा घाव भरने के गुणों के लिये किया जाता है। आधुनिक वैज्ञानिक शोधों के अनुसार भी इसकी जड़ से प्राप्त तेल में घुलनशील लालरंग का पदार्थ जिसे शिकोनिन के नाम से जाना जाता है, अनेक औषधीय गुण रखता है। इसके अन्य औषधीय गुणों में पेट के कीड़े निकालने, बुखार उतारने, गले की समस्या, दिल की बीमारी, उत्तेजक, शक्तिवर्धक, खाँसी.निवारक, रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने, एंटी.कैंसर तथा एंटी.सेप्टिक गुण शामिल हैं। रतनजोत से बायो डीजल बनता है जो कि पर्यावरण के लिए आशीर्वाद साबित हो सकता है। खासकर के भारत जैसे देश में जहां प्रदूषण का लेवल दिन ब दिन बढ़ता जा रहा है यहीं वजह है कि रतनजोत की खेती बढ़ाने के लिए केंद्र और राज्य दोनों सरकारें किसानों को प्रोत्साहित कर रही है।

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