
जहां कुछ समय पहले पुलिस, प्रशासन, एनजीओ, एनडीआरएफ, एसडीआरएफ और देश विदेश से आए लोगों-संगठनों का हुजूम उमड़ा हुआ था। लोगों के इधर-उधर जाने पर भी कई तरह के प्रतिबंध लगे हुए थे, आज वह रैणी-तपोवन क्षेत्र में सन्नाटा पसरा हुआ है। सिर्फ 7 फरवरी के को आई ऋषि गंगा आपदा के खूनी चिन्ह इधर उधर दिखाई देते हैं। यह सन्नाटा किसी डरावने भुतहा फिल्म के किसी डरावने सीने की तरह दिखता है। अभी उस भयावह आपदा को आए दो महीने भी नहीं बीते, लगता है शासन प्रशासन ने सब कुछ भुला दिया है, वहां लोगों को अपने हाल पर छोड़ दिया है। इस क्षेत्र का हाल में दौरा करने गई टीम के दसस्य मुकेश सेमवाल के इस क्षेत्र के मौजूदा हालातों का विवरण कुछ इस तरह दिया है।-
दिनांक 30 अप्रैल, को कुछ साथियों के साथ दूसरी बार रेणी-तपोवन क्षेत्र जाने में का मौका मिला, पहली बार तपोवन आपदा के बाद 12 फरवरी को जाना हुआ था। जैसे हर आपदा के बाद सरकारी गाड़ियां, एंबुलेंस और नेताओं के गाड़ियों के सायरन, विपक्षी पार्टियों के नेताओं का काफिला रहता है, अब सब कुछ नदारद है। आपदा के कुछ दिनों बाद जहां घटनास्थल पर पुलिस जाने से रोक रही थी, आज आप बेरोकटोक घटना स्थल पर जा सकते हो।
तपोवन, रैणी गांव पहुंचकर मैंने जो कुछ प्रत्यक्ष तौर पर अनुभव किया वो मैं आपसे साझा कर रहा हूं.
- घटनास्थल पर कोई भी एनडीआरएफ और एसडीआरएफ के जवान नहीं है, न ही पुलिस के जवान हैं सिर्फ बीआरओ के ध्याडी मजदूर जो ऋषि गंगा नदी से पत्थर निकाल दीवार बनाने का काम कर रहे हैं। पत्थर भी ध्वस्त पावर प्रोजेक्ट की जगह से ही उठा रहे हैं, जिसके मलबे में शायद कुछ मानव अंग भी हो सकते हैं।
- आपदा के बाद ऋषि गंगा पावर प्रोजेक्ट कंपनी के कोई भी कर्मचारी वहाँ नहीं है, गांव के लोग कहते हैं कि वे तो बैंक व इंश्योरेंस बीमा कंपनी में फाइलों का काम कर रहे होंगे, अपने मुनाफे के लिये।
3.ऋषि गंगा नदी का पानी अभी भी मटमैला और धार तेज है, गांव वालों का कहना है काफी सरकारी अधिकारी और वैज्ञानिक ऊपर झील का जिक्र कर रहे हैं।
- कुछ जगह पर लापता लोगों के पोस्टर भी नजर आए जो उनके परिवार वालों ने चिपकाए होंगे।
- रैणी गांव के लोग गौरा देवी चिपको आंदोलन के संघर्ष को आज भी संजोए हुए हैं, पर पावर प्रोजेक्ट कंपनियों ने पैसे और लालच द्वारा लोगों में आपसी फूट पैदा करने में कामयाब रहा।
- इस आपदा के बाद भी बहुत सी संस्थाओं ने कुछ राहत बाटी है, जिसके कारण आपसी मतभेद और मनमुटाव नजर आया। अभी ऋषि गंगा पावर प्रोजेक्ट की स्थिति देखकर नहीं लगता कि वहाँ अब कोई पावर प्रोजेक्ट काम कर पायेगा, लेकिन सरकार व वित्तीय संस्थाओं की मिलीभगत, कोई न कोई कंपनी को जरूर ढूंढ लेंगे, जो फिर से पावर प्रोजेक्ट को वहाँ काम कराये, ऐसा रैणी ग्राम वासियों का मानना है।
यह परियोजनाएँ कई बार ध्वस्त हो चुकी हैं पर विकास की अंधी दौड़ के चलते सरकार इसको फिर से पुनः जीवित कर सकती है। उत्तराखंड के संवेदनशील और जागरूक नागरिकों एवम प्रभावित ग्रामवासियों का जन दबाव ऐसी विनासकारी परियोजनाओं को हमेशा के लिए बंद कर सकता है।
इसके लिए हिमालय बचाओ जन समिति की ओर से आने वाले दिनों में कुछ जागरूकता अभियान पूरा उत्तराखंड में किया जायेगा, अतः आप सभी के सम्मिलित होने की उम्मीद करते हैं।
समिति संयोजक.
मुकेश सेमवाल
मो. 7351549933












