महेशा नंद जुयाल
गैरसैंण। विधान सभा परिसर भराडी सैंण से लगा हुआ ब्लाक गैरसैँण का दूरस्थ गांव सारकोट दूधातौली पर्वत के पूर्वी जलागम क्षेत्र में बसा हुआ है। इस गांव के बीचों बीच एक 84 दरवाजों का बहुत पुराना कोठीनुमा भवन है, भवन का 90 फीसदी अवशेष आज भी कभी इसके गुलजार होने की कहानी बयां करता है। इस ऐतिहासिक भवन का बेहतर रखरखाव कर इसे हेरिटेज पर्यटन के रूप में विकसित किया जा सकता है, जिसकी ग्रामीण मांग भी कर रहे हैं, क्या पर्यटन विभाग इसकी सुध लेगा?
प्राचीन मान्यताओं और किवदंतियों के अनुसार सन् 1000 ई0 के आस पास राजस्थान के पशुचारक सूखा और गर्मी के कारण उत्तराखंड की पहाडियों में आये उसमें से कुछ चरवाहे इस उंचाई वाले क्षेत्र में रहने लगे। इनकी जाति सारै होने से इस गांंव को सारी नाम से जाना जाने लगा। 1200 ई में गढ़वाल के राजा द्वारा इस गांव में एक कोर्ट न्यायालय स्थापित किया गया तब इस गांव को लोग सारीकोर्ट के नाम से जानने लगे। बाद में इसका अपभ्रंस हो कर इसे सारकोट के नाम से जाना जाने लगा। जो आज का प्रचलित नाम है।
जिस न्याय भवन कार्ट से गांव का नाम सारकोट प्रचलित हुआ आज वह कोठा अपनी अंतिम सांसें गिन रहा है। एक समय था जब इस भवन में दरवार लगा कर राजा रजवाड़े अदालत लगा कर फैसला सुनाते थें। यहां तक कि मृत्युदंड भी यहां सुनाया जाता था । मृत्युदंड पाये अपराधी को इसी भवन में बने फांसी के तख्त में चढ़ाया जाता था जो आज भी अवशेष के रूप में मौजूद है।
ब्लाक गैरसैंण में 295 परिवारों का 1600 की आवादी वाला सबसे बड़े गांव के ग्राम प्रधान राजे सिंह क्षेत्र पंचायत सदस्य गोबिंद सिंह सहित त्रिलोक सिंह, गोपाल सिंह, गबर सिंह, भवान सिंह आदि समस्त ग्रामीणों का कहना है कि इस भवन को सरकार द्वारा संरक्षित किया जाये और इसे होम स्टे योजना के अन्तर्गत सामूदायिक होम स्टे के रूम में विकसित किया जाये।