डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला
जिन मुद्दों के लिए राज्य आंदोलनकारियों ने अपना सर्वस्व न्योछावर
किया, उनकी शहादत के दो दशक बाद भी ये मुद्दे जस के तस हैं. प्रदेश
में आज भी मूलभूत सुविधाओं का अभाव है. पहाड़ों से लोग लगातार
पलायन कर रहे हैं. बेरोजगारी का आंकड़ा दिनों-दिन बढ़ता जा रहा है.
इतने साल बीतने के बाद भी जिस परिकल्पना के साथ एक अलग
पहाड़ी राज्य बनाया गया था, वो परिकल्पना साकार नहीं हो पाई है.
उत्तराखंड राज्य गठन के बाद से ही दो राजनीतिक दल ही सत्ता पर
बारी-बारी से काबिज हुए. दोनों ही पार्टियों ने अपने-अपने तरीके से
राज्य के विकास को गति दी, लेकिन जिस परिकल्पना और सपने के
साथ पहाड़ी राज्य की मांग की गई थी वह अभी तक पूरा नहीं हो पाया
है.बरसात के दिनों में पहाड़ में पहाड़ जैसी परेशानी खड़ी हो जाती हैं.
भारी बारिश से सीमांत जिला मुख्यालय में नदी-नाले उफान पर बह
रहे हैं. स्कूली बच्चे जान हथेली में रखकर नदी नाले पार कर रहे हैं. कुछ
ऐसी ही तस्वीर पिथौरागढ़ से सामने आई है. यहां बच्चे उफनती नदी के
किनारे से स्कूल जाते दिखाई दे रहे हैं.पिथौरागढ़ और चंपावत की
सीमा पर घाट क्षेत्र में रामेश्वर मंदिर को जोड़ने वाला पैदल मार्ग एक
दशक बाद भी नहीं बन सका है. जिसका खामियाजा स्कूली बच्चों से
लेकर श्रद्धालु भुगत रहे हैं. स्कूली बच्चे आए दिनों जान जोखिम में
डालकर उफनती सरयू नदी किनारे पत्थरों पर कूदकर विद्यालय जा रहे
हैं रहे हैं. साथ ही छोटी सी चूक बच्चों की जिंदगी पर भारी पड़ सकती
है. पिथौरागढ़ जिला मुख्यालय से करीब 30 किमी दूर घाट क्षेत्र में
गंगोलीहाट के जीआईसी दुबौला विद्यालय है. इस विद्यालय में वर्तमान
में दो सौ से अधिक छात्र-छात्राएं पढ़ रही हैं. बोतड़ी, टिम्टा, नैनी,
सितोला गांव में रहने वाले बच्चे भी पढाई के लिए जीआईसी दुबौला पर
ही निर्भर हैं, लेकिन वर्तमान में इन गांवों के बच्चों के लिए स्कूल पहुंचना
किसी चुनौती से कम नहीं है. गांवों को विद्यालय से जोड़ने के लिए
सड़क नहीं है. लगभग 3 किमी पैदल चलकर रामेश्वर मंदिर होते हुए
छात्र-छात्राएं विद्यालय पहुंचते हैं. बारिश के कारण भूस्खलन से पैदल
मार्ग इन दिनों क्षतिग्रस्त है. इस कारण इन गांवों के छात्र-छात्राएं नदी
किनारे से होकर विद्यालय पहुंच रहे हैं. इससे ग्रामीणों को दुर्घटना का
भय सता रहा है. पिथौरागढ़ जिले में रामेश्वर मंदिर को जोड़ने वाला
पैदल मार्ग साल 2013 से खराब है. ग्रामीणों का कहना है कि साल
2013 के दौरान आई आपदा से पैदल मार्ग ध्वस्त हो गया था, जिसके
बाद अब तक मार्ग दुरुस्त नहीं हो सका है. ग्रामीणों ने ही मिलकर पैदल
मार्ग तैयार किया है. बारिश होते ही मार्ग खस्ताहाल हो जाता
है.जिससे बच्चों को परेशानी होती है. गौर हो कि प्रदेश में लगातार
बारिश से कई संपर्क मार्ग बाधित होने से लोगों को परेशानियों का
सामना करना पड़ रहा है. जबकि भारी बारिश से नदी नाले उफान पर
बह रहे हैं. वहीं बीते दिनों प्रशासन ने भारी बारिश को देखते हुए 1 से
लेकर 12वीं तक के सभी शासकीय, अशासकीय और प्राइवेट स्कूलों के
साथ सभी आंगनबाड़ी केंद्रों में एक दिन का अवकाश घोषित किया था.
पहाड़ में समस्याएं भी पहाड़ जैसी ही गंभीर हैं। पर्वतीय क्षेत्रों के
विद्यार्थी भी इससे अछूते नहीं हैं। मानसून काल में विद्यार्थियों की
दिक्कत तब बढ़ती है जब उन्हें उफनाए नालों और नदियों को जान
जोखिम में डालकर स्कूल पहुंचना पड़ता है। नदियों में पुल न होने से हर
साल यही समस्या सामने आती है लेकिन इसका हल नहीं निकाला
जाता। शिक्षा विभाग तो विद्यार्थियों की परेशानी को बखूबी समझ रहा
है लेकिन वह भी सिस्टम से लाचार है। विद्यालयों के प्रधानाचार्यों ने
दोनों गांवों के विद्यार्थियों और अभिभावकों से साफ तौर पर अधिक
बारिश होने पर स्कूल न आने को कहा है। विभाग इसके अलावा और
कुछ कर भी नहीं सकता है। विद्यार्थियों को हर रोज नदी पार कर स्कूल
पहुंचना पड़ता है। मानसून काल में विद्यार्थियों की सुरक्षा को देखते हुए
बारिश में उनसे विद्यालय न आने को कहा गया है। पढ़ाई के साथ
उनकी सुरक्षा भी जरूरी है। स्वास्थ्य, शिक्षा और रोजगार के मुद्दों को
लेकर राज्य की जनता आए दिन सड़कों पर रहती है। पहाड़ी राज्य की
भौगोलिक परिस्थितियों के हिसाब से उत्तराखंड में योजनाओं को लागू
करने में कई तरह की समस्याएं भी आती हैं।लेकिन जब भी सरकार की
इच्छा शक्ति हुई तो योजना ने परवान चढ़ी, लेकिन जब भी राज्य
सरकार वोटबैंक और अपने राजनीतिक लाभ के लिए विकास कार्यों को
टालती रही तो इसका नुकसान भी जनता को उठाना पड़ा है। आज भी
शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार सरकारों के लिए बड़ी चुनौती बना हुआ
है। *लेखक विज्ञान व तकनीकी विषयों के जानकार दून विश्वविद्यालय में*
*कार्यरत हैं।*