देहरादून। उत्तराखंड के मुख्यसचिव, मुख्य सूचना आयुक्त समेत तमाम महत्वपूर्ण पदों पर कार्य कर चुके शत्रुघ्न सिंह ने मुख्यमंत्री के मुख्य सलाहकार पद ग्रहण कर लिया है। सरकार के नियंत्रण से लगातार फिसल रही व्यवस्थाओं और बेलगाम नौकरशाही को नियंत्रित करने तीरथ सिंह रावत के प्रयासों के तौर पर इस नियुक्ति को देखा जा रहा है।
शत्रुघ्न सिंह 1983 बैच के आईएएस अधिकारी हैं। वह राज्य में सचिव से लेकर मुख्य सचिव तथा मुख्य सूचना आयुक्त के पदों पर रह चुके हैं। इसके अतिरिक्त नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में पहले दौर की केंद्र सरकार में भी उन्होंने डेपुटेशन में केंद्र में रहकर महत्वपूर्ण जिम्मेदारियां निभाई हैं। लगता है मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत उनके इसी विशाल अनुभव का उपयोग अपनी पटरी से उतर चुकी सरकार को पटरी पर लाने के लिए करना चाहते हैं।
शत्रुघ्न सिंह की पहचान पक्ष विपक्ष के नेताओं और नौकरशाही के बीच समन्वय स्थापित करने वाले अधिकारी की रही है। याद करिये जब भुवन चंद्र खंडूड़ी की सरकार में उनके सचिव रहे आईएएस अधिकारी सारंगी की वजह से विपक्ष ही नहीं सरकारी पक्ष के विधायक भी काफी नाराज हो गए थे, अंततः भुवन चंद्र खंडूड़ी को सारंगी को हटाने का निर्णय लेना पड़ा था, उन विपरीत स्थितियों में शुत्रुघ्न सिंह को ही यह कांटों भरी जिम्मेदारी सौंपी गई थी, उन्होंने यह जिम्मेदारी सभी के बीच संतुलन बैठाते हुए बेहतर तरीके से संभाली थी।
राज्य की नौकरशाही में लंबे समय से बिहारी अफसरों का बोलबाला रहा है, यही स्थिति अब भी बरकार है। इसी वजह से बिहारी अफसरों के भी गुट बनते रहे हैं। वर्तमान में ही खासकर सचिवालय में यही स्थिति है। कई अफसर बिना कुछ किए वाहवाही लूटते रहे हैं। इसी वजह से राज्य की अफसरशाही अपने कर्तव्य से विमुख होती हुई दिखाई दी है। राज्य में नौकरशाही का नेतृत्व कर रहे अफसर अपनी संकीर्णताओं और विवादित सोच की वजह से उनसे बेहतर तरीके से काम ले पाने में विफल साबित हुए हैं। तीरथ सिंह रावत को ये हालात विरासत में मिले हैं। यही वजह से कि बचे करीब नौ माह के कार्यकाल में कुछ बेहतर करने की अपेक्षा से तीरथ सिंह रावत मुख्य सलाहकार के तौर पर उन्हें लाए हैं। इसीलिए उन्हें मुख्य सूचना आयुक्त के कार्यकाल पूरा होने से पहले यहां लाया गया है।
इन हालातों में क्या शत्रुघ्न सिंह पूरी व्यवस्था को पटरी पर ला पाएंगे? जबकि वह मुख्य सचिव नहीं मुख्य सलाहकार की भूमिका में होंगे। महत्वपूर्ण पदों पर बैठे कई अफसर अपने पहाड़ विरोधी रुख के लिए जाने जाते रहे हैं, राज्य के प्रति आज तक उन्होंने कभी समर्पण का भाव दिखाया ही नहीं है। मुख्य सलाहकार के पद पर बैठकर ऐसे अफसरों से बेहतर काम लिया जा सकता है? कई सवाल बने रहेंगे। देखना होगा कि इनके उत्तर क्या आते हैं?