डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला:
हल्द्वानी मंडी समिति का स्थापना 1982 में हुई थी मगर उत्तराखंड राज्य बनने के बाद मंडी समिति का पुनर्गठन पहली बार हो रहा है। इसके लिए तहसील वार राजस्व क्षेत्र को शामिल करने को अभिलेख जुटाए जा रहे हैं। मंडी मंडी क्षेत्र में हल्द्वानी, कालाढूंगी, खनस्यू, नैनीताल, लालकुआं, धारी, कौश्या कुटौली, बेतालघाट का समस्त क्षेत्र शामिल हैं और अल्मोड़ा और बागेश्वर का क्षेत्र भी हल्द्वानी मंडी समिति से संबद्ध है। लेकिन शर्त यह भी होगी उत्तराखंड मंडी बोर्ड का अध्यक्ष वही बन सकेगा जो कि किसान होगा।पहाड़ में फल-सब्जी संग्रह केंद्र बनाए जाने से किसानों व बागवानों को अपनी उपज मंडी तक पहुंचाने में सुविधा मिलेगी।
वर्तमान में खराब मौसम व दुर्गम रास्तों के चलते उपज बर्बाद हो रही है। इस संबंध में मंडी समिति हल्द्वानी ने शासन से धनराशि उपलब्ध कराने की मांग की है।पहाड़ी आलू सहित विभिन्न सब्जियों की मांग बाजार में सबसे ज्यादा होती है। इसके अतिरिक्त पहाड़ी फल आड़ू, पुलम, खुमानी, नाशपाती, सेब आदि की पैदावार को भी सही समय पर बाजार देने के लिए इस तरह के केंद्र काफी मुफीद साबित होंगे। जहां किसान अपनी उपज को कुछ समय तक स्टोर कर सकता है।
गांव के करीब बने इन केंद्रों से मुख्य सड़क तक पहुंचने का मार्ग आसान होगा। जिससे बरसात के दिनों में भी किसान व बागवान आसानी से अपनी उपज मंडी तक ले जा सकेगा। आम तौर पर बरसात के दिनों में गांव के रास्ते खराब हो जाते हैं। जिससे कृषि उपज मंडी तक पहुंचने से पहले ही सड़कर नष्ट हो जाती है। पहाड़ी से मलबा सड़क पर आने के चलते रास्ते बाधित हो जाते हैं। काश्तकारों का कहना है कि बीते साल भी कोरोना महामारी के कारण काफी नुकसान हुआ था. इस बार भी कोरोना के चलते उन्हें आर्थिक नुकसान उठाना पड़ रहा है. उनके द्वारा जो फल हल्द्वानी मंडी भेजा जा रहा है.
उनका उन्हें उचित मूल्य नहीं मिल पा रहा है. संग्रह केंद्र के लिए मिलने वाली धनराशि के आधार पर सुविधाओं का विस्तार होगा। जिसमें छोटे स्तर पर ग्रेडिंग यूनिट भी लगाई जा सकती है। मुख्य मार्ग तक पहुंचने वाले रास्ते के पास होने के चलते किसान को मौसम से उपजी स्थितियों से भी राहत मिलेगी। इसके चलते पहाड़ों से आने वाले फलों की डिमांड मंडियों में नहीं हो पा रही है. इसका सीधा असर पहाड़ के काश्तकारों पर पड़ रहा है. काश्तकार अपने उत्पादन को मंडी तक ला तो रहे हैं, लेकिन मंडी में माल बिक्री नहीं होने के चलते उनको उचित दाम नहीं मिल पा रहे हैं. आड़ू और पुलम की 10 किलो की पेटी जहां अन्य सालों में ₹300 से लेकर ₹400 तक बिकती थी जो इस समय 250 से लेकर ₹300 तक बिक था. उत्तराखंड के नैनीताल जिले के रामगढ़, धारी और मुक्तेश्वर के आड़ू, पुलम की मिठास मुंबई, दिल्ली सहित कई मंडियों में पहुंचती जा है गांव के करीब बने इन केंद्रों से मुख्य सड़क तक पहुंचने का मार्ग आसान होगा।
जिससे बरसात के दिनों में भी किसान व बागवान आसानी से अपनी उपज मंडी तक ले जा सकेगा। कहीं रोड न होने से फसल शहर नहीं पहुंचती, तो कहीं बुनियादी सुविधा न होने से औने-पौने दाम पर आलू और दूसरी फसलों को बेचने की मजबूरी है। किसानों की इस बेबसी की वजहें तो कई हैं, लेकिन अगर जिले का कोल्ड स्टोर काम करने की स्थिति में होता तो किसानों की कमाई जरूर बढ़ती।यहां से सात किमी दूर मुड़ियानी के कोल्ड स्टोर भवन का निर्माण उस वक्त हुआ जब न चंपावत जिला था और नहीं उत्तराखंड राज्य बना था।
पिथौरागढ़ और मौजूदा चंपावत जिले के आलू, सेब और सिटरस उत्पादकों के चेहरों पर मुस्कान लाने के लिए 19 नाली 7 मुट्ठी जमीन पर इसे बनाया गया था। 77.77 लाख रुपये लागत से 1995 में यह छह मंजिला कोल्ड स्टोर भवन बनकर तैयार हुआ, लेकिन भवन निर्माण के अलावा दूसरा कोई काम नहीं हुआ।न तापमान को ठंडा करने के लिए रेफ्रिजरेशन लगा और नहीं वुडन वर्क हो सका, जिस कारण इतनी मोटी रकम खर्च होने के बाद भी दो हजार मीट्रिक टन क्षमता वाला भवन अवशीतन गृह के रूप में काम नहीं कर सका।
कोल्ड स्टोर होने से किसानों को मिलने वाले फायदे नहीं मिल सके। कोल्ड स्टोर भवन का उपयोग सब्जी, फल आदि को स्टोर करने के लिए नहीं हो सका है। अलबत्ता इस भवन का सबसे अधिक उपयोग अल्मोड़ा की विवेकानंद पर्वतीय कृषि अनुसंधान संस्थान ने किया। संस्थान ने इस इमारत का इस्तेमाल बीज और खाद्य प्रसंस्करण के लिए किया। संस्थान ने जून 2009 से मार्च 2015 तक इसका उपयोग किया। इससे पहले पुलिस और पूर्ति विभाग ने गोदाम के रूप में उपयोग किया था।मुड़ियानी कोल्ड स्टोर भवन में रेफ्रिजरेशन और वुडन वर्क नहीं हो सका। सिर्फ सिविल वर्क ही हुआ, जिस कारण इसका उपयोग नहीं हो पा रहा है.












