डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला
केदारनाथ और बदरीनाथ धाम सहित आधे गढ़वाल मंडल को जोड़ने वाला मुख्य मार्ग राष्ट्रीय राजमार्ग एक बड़ी समस्या की जद में है. इस समस्या का हाल ही में पता चला है. सामरिक दृष्टि से भी ये मार्ग महत्वपूर्ण है. ये समस्या अगर आ गई तो गढ़वाल की लाइफ लाइन ऋषिकेश-बदरीनाथ नेशनल हाईवे का फिर कोई विकल्प नहीं होगा. गढ़वाल की जीवन रेखा ऋषिकेश-बदरीनाथ नेशनल हाईवे को रास्ता देने वाली तोता घाटी की. तोता घाटी एक जगह ही नहीं, बल्कि यह उत्तराखंड के इतिहास और हिमालय क्षेत्र की विषम भौगोलिक परिस्थितियों का जीता जागता उदाहरण है. लेकिन अब भौगोलिक गतिविधियों पर नजर रखने वाले लोगों को यहां एक समस्या बहुत परेशान कर रही है. अगर जल्द ही इस समस्या का समाधान या विकल्प नहीं ढूंढा गया तो भविष्य में स्थिति काफी विकट हो सकती है. तोता घाटी’ उत्तराखंड के ऋषिकेश–बदरीनाथ नेशनल हाईवे पर देवप्रयाग और व्यासी के बीच साकणी धार से पहले पड़ती है. इसका रोचक इतिहास 1930 के दशक से जुड़ा है. इतिहासकार बताते हैं कि 1931 में ऋषिकेश से कीर्तिनगर तक सड़क बनाने की योजना थी. लेकिन तोता घाटी की उलझी हुई लाइम स्टोन की चट्टानें इतनी कठोर थीं कि कोई ठेकेदार उस समय की दर पर काम करने को तैयार नहीं था. अंत में प्रतापनगर के ठेकेदार तोता सिंह रांगड़ ने पहाड़ को चीरने का बीड़ा उठाया तोता घाटी के आज की परिस्थितियों की बात की जाए तो ऑल वेदर रोड और सड़क चौड़ीकरण के चलते एक बार फिर तोता घाटी को छेड़ा गया, जो अब निर्माण एजेंसियों के गले पर बन आई है. वैज्ञानिकों ने तोता घाटी में बड़ी दरारें पाई हैं. जियोलॉजिस्ट ने बताया कि आज प्रदेश के सामने तोता घाटी एक नई और बड़ी समस्या बनकर सामने है. हमें राज्य के इतिहास से सीखते हुए भविष्य के लिए सोचना चाहिए. तोता घाटी का अपना एक इतिहास है, लेकिन आज के परिदृश्य में अगर बात की जाए तो इस जगह की भौगोलिक बनावट लाइमस्टोन रॉक से निर्मित है. यहां पर हाल ही में कई बड़े-बड़े फ्रैक्चर और दरारें देखी गई हैं. इस बात की जानकारी हमें भी नहीं थी कि यहां पर इतनी बड़ी दरारें हैं. यह बड़ा फिनोमिना है कि लाइमस्टोन में फ्रैक्चर और क्लिंट्स पाए जाते हैं और यह समय के साथ खुलते रहते हैं. तोता घाटी में जहां पर सड़क क्रॉस करती है, उससे 300 मीटर ऊपर जाएं, तो पहाड़ के टॉप पर चार बड़ी दरारें हैं. इन दरारों का आकार इतना बड़ा है कि एक भूवैज्ञानिक के नजरिए से ये दरारें डराने वाली हैं. ये दरारें तकरीबन ढाई से 3 फीट चौड़ी हैं. पहाड़ी पर उनकी लंबाई काफी ज्यादा है तो गहराई इतनी ज्यादा है कि इसका अंदाजा लगाया जाना बेहद मुश्किल है. तोता घाटी पर इन दरारों का फॉर्मेशन इस तरह का है कि अगर ये दरारें बढ़ती हैं या फिर टूटती हैं, तो पहाड़ी का एक पूरा हिस्सा साफ हो जाएगा. ऐसे में कई महीनों के लिए ऋषिकेश-बदरीनाथ नेशनल हाईवे पूरी तरह से ठप हो जाएगा. दरारों के चलते अगर यह रॉक फॉल होता है, तो पूरा पहाड़ नीचे गंगा में समा जाएगा और पूरे गढ़वाल की लाइफ लाइन ठप हो जाएगी. तोता घाटी का पहाड़ ढहा तो मिट जाएगा एनएच का नाम-ओ-निशानउन्होंने कहा कि आसपास कोई भी वैकल्पिक मार्ग यहां मौजूद नहीं है. उन्होंने अपनी चिंता मुख्य सचिव के सामने भी रखी है और कहा कि हमें यहां पर एक सुरक्षित वैकल्पिक मार्ग को लेकर सोचना चाहिए. यहां पर मौजूद तोता घाटी के इस जियोलॉजिकल डेवलपमेंट को लेकर उत्तराखंड लोक निर्माण विभाग की नेशनल हाईवे शाखा भी सकते में हैं. भू वैज्ञानिकों द्वारा किए गए विश्लेषण और दरारों की हालत को देखते हुए लोक निर्माण विभाग अब तोता घाटी पर ज्यादा एहतियात बरत रहा है. चीफ इंजीनियर ने बताया कि तोता घाटी शुरू से ही चुनौती भरी रही है. जब उनके द्वारा सड़क चौड़ीकरण किया गया, तो उस वक्त भी देखा गया कि एक शार्प रिज के चलते यहां पर काम किया जाना बेहद खतरनाक साबित हो रहा था. कार्यदायी संस्था द्वारा इस जगह पर लगातार आ रही चुनौतियों को देखते हुए भू वैज्ञानिकों से संपर्क किया गया. जब जियोलॉजिस्ट टीम यहां पर पहुंची, तो निरीक्षण के दौरान पाया गया कि तोता घाटी जैसी बाहर से दिखती है, उससे कई ज्यादा खतरनाक अंदर से है. इन दरारों को देखते हुए वहां पर कोई काम करने के लिए राजी नहीं था. अब डिस्प्लेसमेंट मीटर के साथ पूरा लैंडस्लाइड अर्ली वॉर्निंग सिस्टम लगाया गया है, जिसके बाद छोटी सी भी गतिविधि इक्विपमेंट के माध्यम से पता चल जाती है. उन्होंने बताया कि अभी कुछ ही दिन पहले डिस्प्लेसमेंट मीटर इन दरारों में लगाए गए हैं, जिस में अभी फिलहाल किसी तरह की कोई खास हलचल नजर नहीं आ रही है. रिकॉर्ड के अनुसार तोता घाटी में स्थित ऋषिकेश-बदीरनाथ नेशनल हाईवे पर 2014-15 के दौरान रोजाना 3909 वाहनों की आवाजाही होती थी. वर्ष 2026-27 में इसके बढ़कर लगभग दोगुना यानी 7019 होने की आशंका है. आज प्रदेश के सामने तोता घाटी एक नई और बड़ी समस्या बनकर सामने है. हमें राज्य के इतिहास से सीखते हुए भविष्य के लिए सोचना चाहिए. । *लेखक विज्ञान व तकनीकी विषयों के जानकार दून विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं।*











