डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला
धरती का लगभग पांचवां हिस्सा पहाड़ों से ढका है, जिसमें दुनिया की आबादी का 10वां हिस्सा रहता हैं। इन पहाड़ी क्षेत्रों में दुनिया के कुछ सबसे गरीब समुदायों के लोग रहते हैं। मछली पालन इनकी आजीविका का एक प्रमुख स्रोत है। भारत के हिमालय क्षेत्र में भी कुछ इसी तरह की स्थिति देखने को मिलतीहै।भारतीय हिमालयी क्षेत्र पश्चिम से पूरब तक लगभग 2500 किलोमीटर में फैला हुआ है। जबकि, उत्तर से दक्षिण में हिमालय का विस्तार 200-400 किलोमीटर तक है। इसका क्षेत्रफल लगभग 5,33,604 वर्ग किलोमीटर है। इनमें विभिन्न प्रकार के ठंडे पानी के संसाधन पाए जाते हैं। इनमें मुख्य रूप से ऊपरी धाराओं, नदियों, उच्च और निम्न ऊंचाई में स्थित झीलें और जलाशय शामिल हैं। ये जल संसाधन भारत के पहाड़ी राज्यों में फैले हैं। हिमालय क्षेत्र में लगभग 218 मछली की प्रजातियों को सूचीबद्ध किया गया है। इनमें स्नो ट्राउट, महासीर, माइनर कार्प, बारिल्स, मिननो, कैटफिश, लोचेस और विदेशी ट्राउट महत्वपूर्ण हैं। इन पर्वतीय जल निकायों में देशी और विदेशी शीतजलीय मत्स्य प्रजातियों की बड़ी आबादी है, जिनमें प्राकृतिक दोहन के साथ-साथ मत्स्य पालन की अपार संभावनाएं हैं। हालांकि, पर्वतीय क्षेत्रों में अंतर्देशीय मत्स्य पालन और जलीय कृषि की प्रभावी भूमिका का आकलन अतीत में शायद ही कभी पूरी तरह से किया गया है।
पर्वतीय क्षेत्रों में स्थित झीलों, छोटी एवं बड़ी नदियों और जलाशयों में पाई जाने वाली मत्स्य संपदा पशु प्रोटीन का एक महत्वपूर्ण स्रोत हैं, जिसकी आपूर्ति दूसरे स्रोतों से पहाड़ी क्षेत्रों में हमेशा कम रहती है। लेकिन, ठंडे पानी में मत्स्य पालन की कुछ सीमाएं भी हैं। मसलन पहुंच, कठिन पहाड़ी इलाके, उचित बाजार की कमी इनमें शामिल हैं।हालांकि, भारत के पर्वतीय क्षेत्रों में जलीय कृषि विकसित करने की हालिया सफलता से पता चलता है कि ग्रामीण क्षेत्रों में मछली पालन से ग्रामीणों को काफी लाभ मिल सकता है। जलीय कृषि प्रौद्योगिकियां स्थानीय लोगों के जीवन स्तर में महत्वपूर्ण सुधार ला सकती हैं। चूंकि मत्स्य पालन पर्वतीय क्षेत्रों में लोगों को भोजन और आय प्रदान करने में भूमिका निभाता है, इसलिए उन्हें ग्रामीण विकास और जल संसाधन विकास की पहल के साथ एकीकृत करने से लाभ हो सकता है। ट्राउट मछली पालन के आए बेहतर परिणाम के बाद अब वर्ष 2026 तक इसका उत्पादन प्रतिवर्ष 5000 टन करने का लक्ष्य रखा गया है। सहकारी समितियों के साथ ही युवक मंगल दलों और स्वयं सहायता समूहों को ट्राउट मछली पालन से जोडऩे की योजना है। ट्राउट मछली पालन के लिए उत्तराखंड के पर्वतीय जिलों में बेहतर संभावनाएं हैं. दरअसल ट्राउट मछलियां ठंडे और साफ पानी में मिलती है, ऐसे में ठंडे पर्वतीय क्षेत्रों में इस मछली के उत्पादन की बेहतर परिस्थितियों है. इसी को देखते हुए पिछले कुछ सालों में उत्तराखंड में इस मछली के उत्पादन को प्रोत्साहन दिया गया है और नतीजा यह रहा की अब कई मत्स्य पालक इसी मछली का बड़ी मात्रा में उत्पादन करने लगे हैं. यह मछलियां काफी महंगी बिकती है, इसलिए मत्स्य पालकों के लिए इसका उत्पादन करना फायदे का सौदा भी है.बात यह है कि उत्तराखंड सरकार ट्राउट मछलियों के पालन को लेकर किसानों को आर्थिक मदद देने जा रही है. हालांकि मुख्यमंत्री पहले ही कैबिनेट में ट्राउट प्रोत्साहन योजना को मंजूरी दे चुके हैं, लेकिन अब भविष्य में इसके लिए और भी ज्यादा बजट मिलने की उम्मीद लगाई गई है. फिलहाल जल्द ही इसके लिए 200 करोड़ रुपए मत्स्य विभाग को मिलने वाले हैं, जिससे किसानों को भी इसका लाभ होगा. फिशरीज एंड एक्वाकल्चर इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट फंड के तहत नाबार्ड की मदद से राज्य को करीब 177 करोड़ रुपए इसके लिए मिल सकते है इसके जरिए राज्य में किसानों को मछली पालन के लिए तालाब बनाने को लेकर सब्सिडी दी जाएगी. इसमें किसानों को करीब 70% सब्सिडी देने की योजना है. यानी खर्चे में 70% राज्य सरकार द्वारा वहन की जाने वाली राशि होगी, जबकि किसान को केवल 30% राशि ही लगानी होगी. सचिव मत्स्य पालन विभाग बीवीआरसी पुरुषोत्तम के मुताबिक राज्य में ट्राउट फिश के उत्पादन को लेकर राज्य सरकार की तरफ से प्रयास किए गए हैं, खास तौर पर प्रमुख सचिव आर मीनाक्षी सुंदरम ने इस क्षेत्र में राज्य के किसानों को ट्राउट फिश उत्पादन को लेकर प्रोत्साहित करने के लिए कई कदम उठाए थे. इसलिए किसान मौसम में बदलाव से होने वाले नुकसान के मामले में जोखिम नहीं लेते। उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री भी ट्रैवल प्रोत्साहन योजना की घोषणा पूर्व में कर चुके हैं, ऐसे में जल्द ही 200 करोड़ की राशि पहले चरण में मिलने जा रही है. इस योजना के तहत भारत सरकार के साथ एक अनुबंध भी किया गया है. बड़ी बात यह है कि राज्य में इस योजना के तहत आर्थिक मदद मिलने के बाद 200 मीट्रिक टन ट्राउट फिश उत्पादन में बढ़ोतरी होने का भी दावा किया गया है. उत्तराखंड में पर्वतीय जिलों के लिए ट्राउट मछलियों के पालन को लेकर आर्थिक मदद मिलना राज्य के लिए गेम चेंजर साबित हो सकता है.खास बात यह है कि कई जगहों पर बैंड तालाब में प्राउड मछलियों के अनुकूल वातावरण को तैयार कर भी इन मछलियों का उत्पादन किया जा रहा है. इन मछलियों की कीमतों में बेहद ज्यादा बढ़ोतरी और डिमांड के कारण इनके उत्पादन को किसानों के लिए फायदेमंद माना जाता है. ट्राउट पालन के लिए राज्य के पर्वतीय क्षेत्र में नदियों में दो-ढाई किमी के क्षेत्र लीज पर युवक मंगल दलों व स्वयं सहायता समूहों को देने की योजना है। ये उन्हें आवंटित क्षेत्रों में एंगलिंग कराएंगे। एंगलिग में पकड़ी गई मछलियों की वे बिक्री भी कर सकेंगे। इससे ग्रामीण क्षेत्रों में पर्यटन भी बढ़ेगा। एंगलिंग के लिए आने वाले व्यक्तियों को आसपास के होम स्टे में ठहराया जाएगा। उत्तराखंड मत्स्य पालन विभाग ट्राउट फार्मिंग के लिए राज्य में 1400 से अधिक ट्राउट रेसवेज का निर्माण कर चुका है। साथ ही मत्स्य सम्पदा योजना के तहत उधमसिंहनगर में राज्य स्तरीय एक्वापार्क और एक होल सेल मार्केट का भी निर्माण किया जा चुका है। यही नहीं, विभाग ने स्थानीय मत्स्य पालकों के समूहों और आईटीबीपी के बीच भी मछली आपूर्ति के लिए अनुबंध किया है। इन सब प्रयोग से उत्तराखंड में मछली पालकों की आय बढ़ने की उम्मीद है। *लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं।लेखक वर्तमान में दून विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं।*