डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला
आध्यात्मिक दृष्टिकोण से बेरीनाग की भूमि काफी समृद्वशाली है, इस क्षेत्र में स्थित नाग मंदिरों की श्रृंखला सदियों से परम आस्था का केन्द्र है, शिवालय व शक्ति पीठों की अद्भूत अलौकिक विरासत इस भूमि के विराट आध्यात्मिक महत्व को दर्शाती है झर-झर झरते हुए झरनें, कल-कल धुन में नृत्य करती नदियां, नागाधिराज हिमालय की चोटियां, प्रकृति का अनुपम वातारण, सीढ़ीनुमा सुन्दर खेत, दवेदार, बांज, उतीश, काफल बुरांश के मनोहारी वन कदम कदम पर स्थित लोक देवताओं के मंदिर, साधनाओं हेतु गुफाओं की एकान्तता सहित ,आध्यात्मिक महत्व के अनेका नेक स्थल बेरीनाग अर्थात् नाग भूमि की शोभा को पग-पग पर प्रर्दर्शित करती है, इन्हीं तमाम दिव्य स्थलों के बीच बेरीनाग क्षेत्र में स्थित त्रिपुर सुन्दरी मां भगवती का दरबार सदियों से महान् आस्थाओं का केन्द्र है राईआगर नामक कस्बे से बेरीनाग जाने वाले मार्ग पर स्थित त्रिपुर सुन्दरी अर्थात् त्रिपुरा देवी के प्रति स्थानीय भक्तों में अगाध श्रद्वा है, मान्यता है, कि देवी के इस दरबार में भक्तों द्वारा मांगी गयी मनौती अवश्य पूर्ण होती, दस महाविद्याओं में एक माता त्रिपुरा देवी के बारे में कहा जाता है, कि जगत के पालन हार भगवान विष्णु ने दस हजार वर्षों तक मां की आराधना कर सुन्दर रुप को वरदान स्वरुप मां से प्राप्त किया इस दरबार में स्थित इनके श्री चक्र को श्री यन्त्र भी कहा जाता है, मान्यता है, कि देवी के इस शक्ति दरबार में इनकी साधना से भक्त जो इच्छा करेगा उसे सहज में ही प्राप्त कर लेगा, ये त्रिपुरा समस्त भुवन में सबसे अधिक सुन्दर है, इनकी पलक कभी नही गिरती है, श्याम वर्ण के रुप में काली व गौरे वर्ण के रुप में राज राजेश्वरी इन्हीं को कहा जाता है, सौन्दर्य, रुप, श्रृगार, विलास, स्वास्थ्य सभी कुछ इनकी कृपा से प्राप्त होती है। ये श्री कुल की विद्या है, इनकी पूजा गुरु मार्ग से की जाती है, ये साधक को पूर्ण समर्थ बनाती है. यहां इनकी पूजा के साथ-साथ बाला त्रिपुर सुन्दरी की भी पूजा की जाती है। त्रिपुरा देवी के इस स्थान पर इनकी साधना से साधक की कुण्डलिनी शक्ति खुल जाती है। इन्होंने ही विश्व की रक्षा के लिए बगलामुखी अर्थात् माई पीताम्बरी का रुप धारण किया अपने भक्तों की सभी प्रकार से देखभाल करने वाली दयामयी तथा करुणा रखने वाली त्रिपुरा देवी की महिमा अपरम्पार है। उपनिषदों के भीतर त्रिपुरा देवी की महिमा का वर्णन करते हुए कहा गया है, एक मात्र त्रिपुरा देवी ही सृष्टि से पूर्व थी, उन्होंने ब्रहमाण्ड की सृष्टि की वे कामकला के नाम से बिख्यात है, वे ही श्रृगांरकला कहलाती है, उन्हीं से ब्रहमा उत्पन्न हुए, विष्णु प्रकट हुए, रुद्र प्रादुर्भूत हुए उन्हीं से समस्त मरुद्गण उत्पन्न हुए उन्हीं से गाने वाले गन्धर्व, नाचने वाली अप्सरांए, और बाद्य बजाने वाले किन्नर सब उत्पन हुए सब कुछ शक्ति से ही उत्पन हुआ मनुष्य सहित समस्त प्राणियों की सृष्टि भी उन्हीं से हुई, वे ही अपराशक्ति है, वे ही शाम्भवी विद्या, सहित समस्त विद्याऐं कहलाती है, वे ही रहस्यरुपा है, वे ही प्रणववाच्य अक्षर तत्व है, ऊं अर्थात् सचिदानन्द स्वरुपा है।वे ही वाणी मात्र में प्रतिष्ठित है, वे ही जाग्रत, स्वप्न, और सुषुप्ति इन तीनों पुरों तथा स्थूल, सूक्ष्म और कारण इन तीनों प्रकार से शरीरों को व्याप्त कर बाहर और भीतर प्रकाश फैला रही है, देश, काल, और वस्तु के भीतर अंसग होकर रहती हुई वे महात्रिपुर सुन्दरी प्रत्येक की चेतना है। सत् चित् और आनन्द रुप लहरों वाली श्री महात्रिपुर सुन्दरी बाहर और भीतर प्रविष्ठ होकर स्वंय अकेली ही विराजमान हो रही है, उनके अस्ति, भाति, और प्रिय इन तीन रुपों में जो अस्ति है वह सन्मात्र का बोधक है, जो भांति है वह चिन्मात्र है, और जो प्रिय है, वह आनन्द है, इस प्रकार सब आकारों में श्री महात्रिपुर सुन्दरी ही विराजमान है जगतगुरु शंकरार्चाय ने त्रिपुरा देवी की बड़े ही विधान से यहां पूजा उपासना की त्रिपुरसुन्दरी श्रीयन्त्र के रुप में आराधना चली आ रही है। शंकराचार्य जी ने सौन्दर्य लहरी में माँ त्रिपुर सुंदरी की माहिमाँ का बड़ा ही सुन्दर बखान किया है।भगवान शिव की नाभी से प्रकट कमल पर विराज मान भगवती त्रिपुर सुंदरी के प्र ति जो भी प्राणी अपने आराधना के श्रधा पुष्प अर्पित करता है।वह सब ओर से धन्य माना जाता है।इनके अनेक भक्त हुए जिनमें महर्षि दुर्वासा का नाम प्रमुखता के साथ आता है। नाग भूमि बेरीनाग के भूभाग में स्थित नागों की परम आराध्या माता त्रिपुरा सुन्दरी के दर्शनों के लिए दूर दराज क्षेत्रों से लोग यहां पहुंचते है।बाहरी क्षेत्रों में बसे लोग जब कभी कभार अपने ईष्ट देवों के पूजन हेतु घर आते है।तो वे माता त्रिपुरा सुन्दरी से भेंट करना कदापि नही भूलते है।रहस्य,रोमांच,आस्था की अद्भूत खान माँ त्रिपुरादेवी के प्रति स्थानीय लोगों में अपार श्रद्वा है।नेपाल से आये पुजारी यहां पूजा अर्चना का दायित्व संभाले हुए है सरकार इस पर ध्यान दे तो इसके विकास के साथ ही ग्रामीण क्षेत्र का भी विकास होगा. अब त्रिपुरसुन्दरी को लेकर सरकार को इस ओर पहल करनी चाहिए.
*लेखक वर्तमान में दून विश्वविद्यालय कार्यरत हैं।*












