शंकर सिंह भाटिया
उत्तराखंड से लेकर नेशनल कैपिटल एरिया तक नवंबर माह में भूकंप के दो बड़े झटके लोगों को डराने के लिए काफी हैं। हालांकि भूकंप का पूर्वानुमान लगाने की कोई वैज्ञानिक विधि अभी तक इजाद नहीं हो पाई है, इसके बावजूद लोग आने वाले भविष्य में भूकंप के बड़े झटकों की आशंक जताने लगे हैं।
पहले नौ नवंबर को रिक्टर स्केल पर 6.3 क्षमता का झटका और उसके बाद 12 नवंबर को भी 5.4 स्केल के भूकंप के झटके महसूस किए गए हैं। जिससे उत्तराखंड से लेकर राजधानी क्षेत्र दिल्ली तक बड़े झटके महसूस किए गए। लोगों में दिल में ये झटके भय पैदा कर गए। इत्तिफाक यह रहा कि दोनों भूकंप का केंद्र नेपाल में था। पहले झटके में नेपाल में छह लोगों की मौत और मकानों के टूट फूट से लेकर अन्य नुकसान हुआ है। भारत में इससे किसी तरह के नुकसान की खबर नहीं है। लेकिन भविष्य में किसी बड़े खतरे को लेकर आशंका बढ़ गई है।
इन भूकंप पर वाडिया इंस्टीट्यूट के वैज्ञानिकों का कहना है कि यह भारतीय और यूरेशिया प्लेटों के टकराव की वजह से हुआ है। इसीलिए कुछ लोग अनुमान लगा रहे हैं कि दो प्लेटों के टकराव से किसी बड़े भूकंप की भी संभावना बन सकती है। जब-जब भूकंप के झटके आते हैं, तब-तब इस तरह की आशंकाएं जताई जाती हैं।
जहां तक भूकंप का सवाल है जोन 5 और जोन 4 के क्षेत्रों को इसके लिए सबसे अधिक संवेदनशील माना जाता है। जोन 5 में उत्तराखंड, जम्मू कश्मीर का कुछ हिस्सा, गुजरात का कच्छ वाला क्षेत्र और पूरा पर्वोत्तर क्षेत्र आता है। राजधानी क्षेत्र समेत एक बड़ी पट्टी जोन 4 में आता है। माना जा रहा है कि यदि रिक्टर स्केल पर 7 या उससे अधिक क्षमता का भूकंप आया तो यह जोन 4 और जोन 5 का क्षेत्र इसके लिए अत्यधिक संवेदनशील होगा।
निकट पिछले कुछ दशकों में उत्तराखंड दो बड़े भूकंप झेल चुका है। 1991 में उत्तरकाशी भूकंप और 1999 में चमोली भूकंप से राज्य में काफी जन धन की हानि हो चुकी है। इसलिए भूकंप का एक हल्का सा झटका उत्तराखंड में डर पैदा कर देता है।