डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला
आजादी के 78 वर्ष बाद भी उत्तराखंड के लोगों को जान हथेली पर रखकर आवाजाही करनी पड़ रही है. उत्तराखंड के पहाड़ी जिलों से अक्सर ऐसी तस्वीरें आती रहती हैं. यहां लोग आज भी उफनती नदियों को बल्ली और लकड़ियों के पुल के सहारे क्रॉस करने के लिए मजबूर हैं. यहांअस्सी गंगा घाटी के अगोड़ा गांव के ग्रामीणों को घट्टूगाड में ऊफान पर बह रही नदी के ऊपर जर्जर ट्राली से आवाजाही करनी पड़ रही है. ग्रामीणों का कहना है कि कभी भी कोई बड़ी दुघर्टना हो सकती है. अगोड़ा गांव निवासी ने बताया घट्टूगाड नदी के दूसरी ओर ग्रामीणों की मुख्य खेती सहित गौशालाएं हैं. हर दिन ग्रामीण वहां पर अपने खेती सहित अन्य कार्यों से आवाजाही करते हैं. घट्टूगाड के ऊपर बने पुल वर्ष 2012 की आपदा में बह गया था. उसके बाद ग्रामीणों ने कुछ वर्ष जान जोखिम में डालकर ही नदी को आरपार कर आवाजाही की. ग्रामीणों की मांग के बाद लोक निर्माण विभाग ने वहां पर एक ट्राली लगाई, लेकिन रखरखाव के आभाव में अब वह जर्जर हो चुकी है. उस ट्राली की रस्सी को खींचने और उसमें जाने में नदी में गिरने का खतरा बना रहता है.लेानिवि के अधिशासी अभियंता ने बताया घटूटगाड़ में 36 मीटर लंबे स्पैन के पुल का डिजाइन तैयार हो गया है. इसके साथ ही डीपीआर भी तैयार हो चुकी है. जल्द ही इस पर आगे कार्रवाई की जाएगी. लोक निर्माण विभाग के अधिशासी अभियंता ने कहा जिस स्थान पर इस पुल के निर्माण की बात हो रही है, वह क्षेत्र वन विभाग के अंतर्गत आता है. यह सड़क लोक निर्माण विभाग की सीमा में नहीं आती, इसलिए विभाग की ओर से इस पुल निर्माण को लेकर फिलहाल कोई कार्रवाई नहीं की जा सकती. उन्होंने आगे कहा पुल निर्माण और भूमि हस्तांतरण से संबंधित प्रस्ताव को उच्च स्तर पर रखा जाएगा. उच्चाधिकारियों से निर्देश प्राप्त होने के बाद नियमानुसार कार्रवाई की जाएगी. उत्तरकाशी जिले में मोरी विकासखंड के दूरस्थ गावं पवाणी, ओसला और गंगाड़ सहित हर की दून को जोड़ने वाले चिलूड़ गदेरे पर पवाणी घराट के समीप लकड़ी का पुल बना हुआ है. ये पुल अब काफी जर्जर हो चुका है. इस पर चलने के कारण कभी भी कोई बड़ी दुघर्टना हो सकती है. इलाके के लोगों का आरोप है कि वन विभाग की ओर से इसकी स्थिति सुधारने के लिए किसी प्रकार का कदम नहीं उठाया जा रहा है. ग्रामीणों का कहना है कि शायद विभाग वहां पर किसी बड़ी दुघर्टना का इंतजार कर रहा है. गोविंद वन्य जीव विहार की ओर से ओसला, गंगाड़ सहित पवाणी और हर की दून को जोड़ने के लिए पवाणी घराट में चिलूड़ गदेरे पर एक लकड़ी के पुल का निर्माण किया गया था. इस पुल से तीन गांवों के लोग आवाजाही करते हैं. साथ ही यहां पर हर दिन पर्यटक हर की दून ट्रेक पर जाते हैं. लेकिन पुल की देखरेख नहीं होने के कारण वह अब जर्जर स्थिति में पहुंच गया है. उस पर लगे लकड़ियों के तख्ते सड़ गए हैं. साथ ही उसके एबेंडमेंट में लगे पत्थर भी उखड़ने लगे हैं. एक और ग्रामीण ने बताया कि अब बरसात में गदेरे का जलस्तर बढ़ चुका है. इससे इस पुल के बहने का खतरा भी बना हुआ है. उन्होंने कहा कि इस जीर्ण-शीर्ण स्थिति में पड़े पुल पर पहले भी कई दुर्घटनाएं हो चुकी हैं. वन विभाग से इस संबंध में कई बार मांग की जा चुकी है कि इस पुल की स्थिति को सुधारा जाए, लेकिन उसके बावजूद भी कोई कार्रवाई नहीं हो रही है. ग्रामीणों ने बताया की 9 गांवों की खेती नदी के दोनों तरफ है. आम दिनों में ग्रामीण अपने हल बैल नदी को पार करके ले जाते हैं, लेकिन बरसात में नदी का जलस्तर बढ़ने से लगभग 7 किलोमीटर की अतिरिक्त दूरी नापकर खेतों में पहुंचना पड़ता है. ग्रामीणों ने बताया कि चक चंदेली व खलाड़ी छानी को जोड़ने वाली यह पुलिया 9 गांवों की खेती किसानी की सहूलियत के लिए साल 1993 में कमल नदी पर बनाया गया था. योजनाएं बनती है योजनाओं पर विचार भी होता है बजट भी तैयार किया जाता है, लेकिन सवाल तो यही है की योजनाएं धरातल पर क्यों नहीं उतरती है.। *लेखक विज्ञान व तकनीकी विषयों के जानकार दून विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं।*











