डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला
देश में जंगली हाथियों की पहली बार हुई डीएनए आधारित गणना के मुताबिक इनकी संख्या में 18 फीसदी की कमी आई है। इसके मुताबिक, भारत में जंगली हाथियों की संख्या 22,446 है, जो 2017 के 27,312 से कम है। अखिल भारतीय समकालिक हाथी अनुमान (एसएआईईई) 2025 के अनुसार भारत में जंगली हाथियों की संख्या 18,255 से 26,645 के बीच होने का अनुमान है, जिसका औसत 22,446 है।सरकार ने 2021 में सर्वेक्षण शुरू होने के लगभग चार साल बाद मंगलवार को लंबे समय से लंबित रिपोर्ट जारी की। अधिकारियों ने बताया कि रिपोर्ट जारी करने में देरी जटिल आनुवंशिक विश्लेषण और आंकड़ों के सत्यापन के कारण हुई। रिपोर्ट में दिए गए क्षेत्रवार आंकड़ों के मुताबिक, पश्चिमी घाट 11,934 हाथियों के साथ सबसे बड़ा गढ़ बना हुआ है, इसके बाद उत्तर पूर्वी पहाड़ी और ब्रह्मपुत्र का मैदान 6,559 हाथियों के साथ दूसरे स्थान पर हैं। रिपोर्ट के मुताबिक मध्य और पूर्वी भारत के कुछ हिस्सों में, मध्यप्रदेश (97) और महाराष्ट्र (63) जैसे राज्यों में हाथियों के छोटे, खंडित झुंड हैं।देश में हाथियों के लिए उत्तर पश्चिमी सीमा का अंतिम पड़ाव है उत्तराखंड। एक दौर में यहां से हाथियों की आवाजाही बिहार तक हुआ करती थी। वन विभाग के अखिलेखों के अनुसार इसके लिए हाथी परंपरागत गलियारों अर्थात रास्तों का उपयोग करते थे, लेकिन वक्त के करवट बदलने के साथ ही ये सिमटते चले गए।वर्तमान में कार्बेट व राजाजी टाइगर रिजर्व समेत 13 वन प्रभागों के यमुना से लेकर शारदा नदी तक फैले 6643.5 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में हाथियों का बसेरा है, लेकिन इनकी आवाजाही के चिह्नित 11 परंपरागत गलियारे जगह-जगह बाधित हैं।ऐसे में उन्हें एक से दूसरे जंगल में जाने में कठिनाई का सामना करना पड़ रहा है, जबकि विशेषज्ञों के अनुसार जंगल की सेहत और हाथियों की अच्छी संतति के लिए हाथियों की लंबी प्रवास यात्राएं आवश्यक हैं। यद्यपि, अब वन विभाग ने गलियारों को निर्बाध करने के लिए कदम उठाने के साथ ही हाथियों के लिए वासस्थल विकास पर ध्यान केंद्रित करने की ठानी है।जंगल और विकास के बीच सामंजस्य न होने का असर राज्य में हाथियों के विचरण पर भी पड़ा है। हाथियों की आवाजाही के परंपरागत गलियारों में कहीं मानव बस्तियां उग आई हैं तो कहीं सड़क व रेल मार्गों ने इनमें बाधाएं उत्पन्न की हैं। आवाजाही के रास्ते बाधित होने के कारण हाथी नए रास्तों की तलाश में आबादी की तरफ भी रुख कर रहे हैं। नतीजतन, उनका मनुष्य से टकराव हो रहा है।यद्यपि, पिछले 25 साल से हाथियों के बाधित गलियारों को निर्बाध रखने पर जोर दिया जा रहा है, लेकिन ठोस पहल की प्रतीक्षा है। जानकारों का कहना है कि गलियारे निर्बाध होंगे तो हाथियों का मनुष्य से टकराव टालने में भी मदद मिलेगी।राजाजी टाइगर रिजर्व, कार्बेट टाइगर रिजर्व के अलावा देहरादून, लैंसडौन, कालसी, हरिद्वार, नरेंद्रनगर, तराई पूर्वी, तराई केंद्रीय, रामनगर, हल्द्वानी, तराई पश्चिमी व चंपावत वन प्रभाग।चिह्नित हाथी गलियारेकासरो-बड़कोट, चीला-मोतीचूर, मोतीचूर-गौहरी, रवासन-सोनानदी (लैंसडौन), रवासन-सोनानदी (बिजनौर), दक्षिण पतली दून-चिलकिया, चिलकिया-कोटा, कोटा-मैलानी, फतेहपुर-गदगदिया, गौला रौखड़-गौराई -टाडा, किलपुरा-खटीमा-सुरई।कार्बेट और राजाजी टाइगर रिजर्व से लगे लैंसडौन, हरिद्वार व देहरादून वन प्रभागों को हाथी-मानव संघर्ष के दृष्टिकोण से अधिक संवेदनशील माना जाता है। कारण यह कि इन तीनों वन प्रभागों के जंगल कार्बेट व राजाजी में आने-जाने वाले हाथियों के लिए गलियारे का काम करते हैं। आबादी भी इन प्रभागों से लगे क्षेत्रों में अधिक हैं।‘ मुख्य वन्यजीव प्रतिपालक, उत्तराखंड हाथी गलियारों को निर्बाध रखने के दृष्टिगत प्रभावी कार्ययोजना तैयार कर इसे धरातल पर उतारा जाएगा। इसके साथ ही जंगलों में हाथियों के लिए भोजन-पानी की पर्याप्त उपलब्धता सुनिश्चित हो, इस क्रम में वासस्थल विकास पर ध्यान केंद्रित किया जा रहा है। भारतीय वन्यजीव संस्थान में 36वीं वार्षिक अनुसंधान संगोष्ठी के दौरान हाथी आकलन (डीएनए बेस्ड ऑफ इंडिया सिंक्रोनाइज्ड एलिफेंट एस्टीमेशन) रिपोर्ट जारी की गई है। रिपोर्ट में देश में 22446 हाथी होने का आकलन लगाया गया है। सबसे अधिक 6013 हाथी कर्नाटक में हैं। उत्तर भारत में सर्वाधिक और देश में पांचवें नंबर पर सबसे अधिक 1792 गजराज उत्तराखंड में हैं। इस बार हाथी की संख्या का आकलन मल (डीएनए) के आधार पर किया गया है, यह तरीका अधिक सटीक है और ऐसा पहली बार किया गया है। पहले केवल ऑब्जर्वेशन के माध्यम से होता था। हाथी की आबादी के आकलन का काम 2022 और 2023 में किया गया। नार्थ ईस्ट में 2024 में कार्य किया गया है। भारत की जंगली हाथियों की संख्या अब गंभीर संकट में है. देहरादून से जारी रिपोर्ट के अनुसार, देश में 2017 में 29,964 हाथी थे, जो घटकर 2025 तक 22,446 रह गए हैं. यह आंकड़ा देश का पहला DNA-आधारित हाथी जनगणना सर्वे बताता है, जिससे यह साफ हो गया है कि वनों की कटाई, निवास स्थान का टुकड़े-टुकड़े होना और मानव-संपर्क में वृद्धि हाथियों के अस्तित्व के लिए सबसे बड़ा खतरा बन चुके हैं. वेस्टर्न घाट्स में हाथियों के लिए प्राकृतिक आवास कॉफी और चाय की खेती, विदेशी प्रजातियां, खेती के बाड़ और तेजी से बढ़ती बुनियादी संरचना के कारण खंडित हो रहे हैं. असम के सोनितपुर और गोलाघाट जिलों में वन कटान ने मानव-हाथी संघर्ष को और बढ़ा दिया है.मध्य भारत में, जिसमें झारखंड, ओड़िशा, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, उत्तर बंगाल और आंध्र प्रदेश शामिल हैं, वहां संरक्षित क्षेत्रों के बाहर खनन, कृषि और सड़क-रेल जैसी लाइनों के निर्माण ने हाथियों के निवास को नुकसान पहुंचाया है. यहां केवल 10% हाथी रहते हैं, लेकिन मानव-हाथी संघर्ष में लगभग 45% मौतें इसी क्षेत्र में होती हैं. वाइल्डलाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया के निदेशक ने कहा कि यह आंकड़े पुराने आंकड़ों के साथ सीधे तुलना के लिए नहीं हैं, बल्कि भविष्य की निगरानी का नया वैज्ञानिक आधार हैं. वैज्ञानिकों ने चेताया है कि यह रिपोर्ट विशेष रूप से ओड़िशा, झारखंड और छत्तीसगढ़ में भूमि और जंगल संरक्षण के लिए जागरूकता का संकेत है.” *लेखक विज्ञान व तकनीकी विषयों के जानकार दून विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं*