प्रकाश कपरूवाण
राष्ट्रीय नेत्र दान पखवाड़ा हर वर्ष 25 अगस्त से 08 सितम्बर तक मनाया जाता है। इस अभियान का उद्देश्य नेत्र दान के महत्व के बारे में व्यापक स्तर पर जन.जागरूकता पैदा करना है तथा लोगों को मृत्यु के बाद अपने आंखें दान करने की शपथ लेने के लिए प्रेरित करना है।
नेत्र दान पखवाडे के तहत जिला चिकित्सालय गोपेश्वर परिसर में आयोजित जन.जागरूकता कार्याशाला में प्रभारी अपर मुख्य चिकित्सा अधिकारी डा एमएस खाती द्वारा बताया गया कि कार्नियल के कारण दृष्टिहीनता भारत में 50 वर्ष से कम आयु वर्ग के लोगों में अन्धेपन का प्रमुख कारण था, जोकि 37.5 प्रतिशत फीसदी मामलों के लिए जिम्मेदार था और 50 वर्ष के अधिक आयु वर्ग के रोगियों में अन्धेपन का दूसरा प्रमुख कारण था।
ज्यादातर मामलों में दृष्टि के हानि को नेत्र दान के माध्यम से उपचारित किया जा सकता है। किसी व्यक्ति की मृत्यु के बाद उसके विभिन्न अंगों को दान किया जा सकता है तथा उन अंगों को उन रोगियों में प्रत्यारोपित किया जा सकता है। जिन्हें उन अंगों की आवश्कयता है। ऐसा ही एक अंग आंख है। नेत्र दान से कार्निया रहित अन्धा व्यक्ति शल्य प्रक्रिया के माध्यम से कार्निया प्रत्यारोपण द्वारा फिर से देख सकता है। जिसमें क्षतिग्रस्त कार्निया के जगह पर नेत्र दाता के स्वस्थ्य कार्निया को प्रस्थिापित किया जाता है।
कार्यक्रम में नेत्र शल्यक डा0 निर्मल प्रसाद नेत्र शल्यक ने बताया कि स्त्री/पुरूष केवल अपनी मृत्यु के पश्चात् ही नेत्र दान कर सकते हैं। नेत्र दान से केवल कार्निया से ही नेत्र हीन व्यक्ति ही लाभान्वित हो सकते है। कार्निया अन्धापन दृष्टि के नुकसान या कार्निया की क्षति जो कि आंखों की अगली परत है के कारण होता है। कार्निया को मृत्यु के एक घण्टे भीतर निकाला जाना चाहिए। नेत्र दाता दो कार्निया से नेत्रहीन व्यक्तियों की दृष्टि बचा सकता है। नेत्र निकालने में केवल दस से पन्द्रह मिनट लगते है तथा चहरे पर कोई निशान एवं विकृति नहीं होती है।
दान की गई आंखों को खरीदा या बेचा नहीं जाता है, इसलिए नेत्र दान को नहीं न कहें। पंजीकृत नेत्र दाता बनने के लिए अपने नजदीकी नेत्र बैंक से सम्पर्क करें। मधुमेह उच्च रक्तचाप या अस्थमा से पीड़ित रोगी भी अपनी आंखे दान कर सकते हैं। मोतिबिन्द से पीड़ित रोगी भी अपनी आंखें दान कर सकता है, हालांकि संचारित रोगों से पीडित व्यक्ति अपनी आंखे दान नहीं कर सकता है एवं एड्स हिप्पेटाईटिस बी या सी रेबीज टिटनस् मलेरिया जैसे प्रणालीगत संक्रमण से पीडित व्यक्ति नेत्र दान नहीं कर सकते है।
कार्यक्रम में उदय सिंह रावत ने बताया कि समाज में नेत्र दान निम्नलिखित कारणों की वजह से बहुत कम होता है-
1 सामान्य जनता के बीच जागरूकता का आभाव, प्रशिक्षित कर्मियों के बीच दूसरों को प्रेरित करने की क्षमता का अभाव एवं सामाजिक एवं धार्मिक मिथक हैं। जिसके लिए समाज के प्रतिष्ठित व्यक्तियों के माध्यम से लोगों को जन.जागरूक किया जाना जरूरी है। नेत्रदान कोई भी व्यक्ति चाहे वो किसी भी उम्र, लिंग, रक्त समूह और धर्म का हो वह अपनी आंखें दान कर सकता है। नेत्र दान हेतु दाता को परिजनों की लिखित सहमति से दो गवाहों की उपस्थिति में नेत्र दान किया जा सकता है। कार्यक्रम में डा एलसी पुनेठा डा सिखा भटट, अनूप राणा, प्रवीण बहुगुणा उपस्थिति रहे।












